मानव जीवन में दिशाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन को सुखी एवं समृद्धिशाली बनाने में इनका स्थान सर्वोपरि है, अन्यथा सुख-शांति एवं सफलता प्राप्ति में कई अवरोधों का सामना करना पड़ता है। हमारा प्राच्य विज्ञान भी दिशाओं के महत्व को दर्शाता है।
जानिए जीवन में इनके क्रियाकलाप : * जब शयन कक्ष में आप निद्रा ले रहे हैं, तो आपका मस्तिष्क दक्षिण दिशा में होना चाहिए। शयन कक्ष में झूठे बर्तन रखना अहितकर है।
* मुख्य दरवाजा घर के अंदर से खुलना चाहिए तथा मुख्य दरवाजा दो पाटों का होना अत्यावश्यक है।
* दवाइयाँ रखने का स्थान उत्तर दिशा में हितप्रद रहता है।
* शौच पर जाते वक्त शौचकर्ता का मुँह पूर्व दिशा में कभी नहीं होना चाहिए।
Devendra Sharma
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* अध्ययन करते समय पढ़ने वाले का चेहरा पूर्व दिशा में रहना चाहिए।
* देवी-देवताओं का आराधना स्थल पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में होना चाहिए तथा पूजागृह यदि दक्षिण की ओर हो तो उसका विपरीत असर गिरता है।
* कुआँ या बोरिंग ईशान, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना हितकारी है।
* दक्षिण-पश्चिम दिशा की दीवारें पूर्व व उत्तर दिशा की दीवारों से बड़ी व मोटी होनी चाहिए।
* भवन की जमीन का ढलान पूर्व व उत्तर दिशा की तरफ की होनी चाहिए।
* दक्षिण-पश्चिम दिशा को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए, यह स्थल सर्वाधिक भारी रहना चाहिए।
* स्नानागार पूर्व दिशा की ओर होकर उसके फर्श की ढलान उत्तर-पूर्व या ईशान कोण की ओर हो तथा रसोईघर दक्षिण-पूर्व दिशा के कोण में होना चाहिए।
* सीढ़ियों के नीचे कभी भी तिजोरी नहीं रखनी चाहिए।
* घर के सामने किसी मंदिर का प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए।
* भोजन करते समय भोजनकर्ता का मुँह दक्षिण दिशा की ओर कतई नहीं होना चाहिए।
* भवन में महाभारत या युद्ध के दृश्य वाली तस्वीर लगाना सर्वाधिक अनुचित है।
* पूजा स्थल में बैठने हेतु ऊनी आसन का उपयोग करना चाहिए तथा रसोईघर में आराधना स्थल कतई निर्मित नहीं करें।
* तहखाना (बेसमेंट) उत्तर व पूर्व दिशा में होना जरूरी है।
* घर के सम्मुख कोई गड्ढा या द्वार भेद नहीं रहे अन्यथा अनेक विपदाएँ घर कर लेती हैं।
* मेहमानों या आगंतुकों का आदर-सत्कार करते समय अपना मुँह उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें ताकि कोई अनिष्ट न हो।
इस प्रकार यह कहने में कोई संकोच नहीं कि दिशाओं के बलबूते पर चलने और कार्यारंभ करने पर आने वाले सभी अवरोधों से निजात मिल जाती है।