बैलगाड़ी की शॉपिंग

मंगलवार, 23 अगस्त 2011 (16:27 IST)
शर्माजी जब भी कोई नई वस्तु खरीदते, हमेशा मुझे साथ ले जाते। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें से ज्यादातर तो सिर्फ उनके भ्रम ही हैं। उदाहरण के लिए, यह भ्रम कि मुझे चीजों की परख है। मुझे पता है कि कौन-सी चीज कब, कहाँ अच्छी और सस्ती मिलेगी। मेरी पहचान बहुत है। इससे कीमत में छूट मिल जाती है। पैसे कम पड़ जाएँ तो उधारी की सुविधा मिल जाती है।

मेरी इतनी क्रेडिट है कि क्रेडिट कार्ड की जरूरत ही नहीं पड़ती वगैरह-वगैरह! इसमें कितना सच है, कितना झूठ, यह वही जानें, पर यह जरूर है कि अब तक मुझ पर उनका विश्वास (या भ्रम) कायम है।

एक दिन सुबह वही शर्माजी मेरे घर आ धमके। मैं समझ गया, आज उनका फिर कोई नई चीज खरीदने का विचार है, पर इस बार उन्होंने जिस चीज का नाम बताया, मैं तो आश्चर्यचकित रह गया। इस बार उन्हें बैलगाड़ी खरीदना थी! मेरे पूछने पर कि आखिर बैलगाड़ी किसलिए, उनका जवाब था कि पेट्रोल-डीजल के रोज-रोज भाव बढ़ने से वे तंग आ चुके हैं, इसलिए अपनी सब (!) गाड़ियाँ बेचकर एक बैलगाड़ी खरीदना चाहते हैं।

मैंने उन्हें बैलगाड़ी न खरीदने के लिए राजी करने में दो घंटे खर्च किए। उनसे कहा, "मैंने जीवन में कभी बैलगाड़ी नहीं खरीदी है तो उस लाइन में मेरी कोई पहचान नहीं है। मुझे तो यह भी नहीं पता कि अपने शहर में बैलगाड़ी मिलती भी है या नहीं, यदि मिलती है तो कहाँ। बैलों की नस्ल के बारे में जानकारी के अभाव में हो सकता है कि हमें कोई ठग ले।

बैलों की कीमतों के बारे में भी मुझे ठीक-ठाक पता नहीं है, हो सकता है कि हम जरूरत से ज्यादा दाम दे बैठें। जहाँ तक मुझे पता है इंटरनेट या समाचार-पत्रों में भी इसकी कोई जानकारी नहीं मिलेगी। मान लीजिए हमने यहाँ-वहाँ से किसी तरह जानकारी हासिल कर भी ली, और फायदे का सौदा कर लिया, बैलगाड़ी ले आए तो उसे चलाने का झंझट। क्या आपने कभी बैलगाड़ी चलाई है। बैलों के खाने-पीने, साफ-सफाई का काम भी बढ़ जाएगा। उनके चारे-पानी का खर्च, पेट्रोल से ज्यादा बैठेगा।

शहर की इस भीड़-भाड़ में जहाँ दुपहिया वाहनों के लिए पार्किंग की समस्या है, वहाँ बैलगाड़ी कहाँ पार्क होगी? बैलगाड़ी में बैठकर आप सपरिवार कहीं जा भी नहीं सकते। शायद पत्नी, बच्चों को यह सवारी पसंद भी न आए। बारिश के दिनों में तो यह बेकार ही हो जाएगी। इससे लाँग ड्राइव तो असंभव ही होगी। यदि चलते रस्ते बैल कहीं अड़ गए या किसी से भिड़ गए तो घर बैठे मुसीबत!

यदि आप बैलगाड़ी से ऑफिस के लिए निकलेंगे तो लंच टाइम तक पहुँच पाएँगे और तुरंत ही आपको घर के लिए निकलना पड़ेगा, ताकि अँधेरा होने से पहले घर पहुँच सकें, क्योंकि बैलगाड़ी में हेडलाइट तो होते नहीं।" पेट्रोल-डीजल के बढ़ते भावों से परेशान शर्माजी पर मेरे दो घंटे के लेक्चर का भी कोई असर नहीं हुआ। वे तो अपने बैलगाड़ी खरीदने के फैसले पर डटे हुए थे।

मेरे सामने यह प्रश्न था कि शर्माजी की नजरों में अब तक बनी मेरी छबि (!) को कैसे कायम रखा जाए, क्योंकि उन्हें एक अच्छी-सी बैलगाड़ी दिलवाना मेरे बस में नहीं था और बैलगाड़ी न दिलवाने की स्थिति में मेरी छवि बिगड़ना तय था।

मैं इसी कशमकश में था कि टीवी पर एक समाचार देखा; "पेट्रोल-डीजल के भाव 12 पैसे कम होने के आसार।" मैंने झट से टीवी का वॉल्यूम बढ़ा दिया ताकि यह शुभ समाचार शर्माजी को भी सुनाई दे। फिर इसी समाचार को ब्रेकिंग न्यूज की तरह हाईलाइट करते हुए मैंने 12 पैसे का गणित समझाया और शर्माजी को बैलगाड़ी न खरीदने के लिए मना लिया।

इस बार वे दो मिनट में ही मान भी गए और "कभी खुशी, कभी गम" वाले भाव के साथ विदा हुए। उस दिन के बाद अब जब भी पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ने की खबर सुनता या पढ़ता हूँ, मुझे बैलगाड़ी की आवाज सुनाई देने लगती है।

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