तीन बहनों की भूख से उठे सवाल !

-सुधीश पचौर

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आजू-बाजू बड़े-बड़े, भव्य, करोड़ों की कीमत वाले मकानों के बीच एक मकान में एक लड़की मर चुकी थी। इकतीस साल की लड़की के साथ दो बहनें और रहीं, जो पता नहीं कब से भूखी थीं। इतने सारे चैनल हैं और सारे के सारे दिल्ली में लेकिन जनाब, इन तीन लड़कियों की भूख यहाँ खबर लायक नहीं बनी।

कवि दिनकर की 'वैभव की दीवानी दिल्ली' अब मेट्रो वैभव-भाव की दीवानी है। दुनिया के मेट्रो शहरों में इसका नाम आता है। एशियाई मेट्रोज में तो यह अनिवार्य नाम है ही। इतनी चमक-दमक, इतनी ताकत वाली दिल्ली में अगर भूख है तो भी वह तरह-तरह की है और 'तरह-तरह की' इतनी तरह की भूख होती है कि असल भूख का पता नहीं लगता कि वह कहाँ रहती है। फिर अचानक भूख अपना पता दे जाती है अपना चेहरा दिखा जाती है। तब दिव्य-भव्य दिल्ली की चमक को अचानक नाटकीय शर्म के बेशर्म पल में इधर-उधर देखना पड़ता है और ज्यों ही बेशर्म भूख सामने से हटी कि वह फिर अपनी रफ्तार में आ जाती है, अपनी लय-गति में आ जाती है और हर तरफ जगर मगर बन जाती है।

दिल्ली की भूख गगनचुंबी पाँच सितारा होटलों की भरे पेट की वह भूख है जो देर रात लगकर अलसुबह तक खाती-पीती वमन करती है। दिल्ली की भूख अकूत ताकत की, दिखावट की, खरीद-बिक्री की, पैसा उड़ाने की, तेज रफ्तार सड़क पर गाड़ी दौड़ाते निकलने की, गुड़गाँव के मॉल्स की, नोयडा के मल्टीप्लेक्सों और मॉल्स की वह भूख है, जिसमें कुलबुलाती आँतें और क्षीण होते गरीब शरीर नजर नहीं आते। जाड़ा आने दीजिए। आपको कुछ मरे लोग नजर आने लगेंगे। आप घोर जाड़े में लाल किले के सामने, दरियागंज में सड़क के किनारे के फुटपाथों पर किसी शरीर को अगर अकड़ा पाएँ और उसे गाड़ी न उठा ले गई हो तो उस भूख के दर्शन कर सकते हैं जो जाड़ों की निष्ठुर रात ने पैदा की है। लेकिन गरमी में दक्षिण दिल्ली में भूख? 'क्या बात करते हैं आप?' कोई कहेगा।

दक्षिण दिल्ली। सबसे पॉश इलाका, सबसे महँगा। जहाँ मकान करोड़ों में मिला करते हैं। परम मोटे, लाल पड़े हुए स्वस्थ बच्चे-बच्चियाँ जिम जा-जाकर अपनी तंदुरुस्ती बनाते हैं, जितना ज्यादा खा लिया है, उसे पचाते हैं। वहाँ भूख? हो ही नहीं सकता! लेकिन भूख अचानक नजर आई। तमाम दिव्य खबरों को थप्पड़-सा मारती हुई अचानक आई। कालकाजी इलाके में तीन बहनें कई बरस से एक वक्त के खाने पर गुजारा कर रही थीं, फिर जब धीरे-धीरे सब चुक-बिक गया तो वे नमक, चीनी, पानी पर रहने लगीं और जब शरीर ने साथ नहीं दिया तो भूख मौत में बदल गई। नीरू एक दिन भूख नहीं सह सकी और चल बसी। बाकी दो बहनें भी सूखकर काँटा हो चली थीं लेकिन वे अपनी बहन की लाश को ठिकाने लगाने के लिए किसी पड़ोसी के पास नहीं गईं। वे बंद ही रहीं। उस छोटे-से घर में वे इस तरह तब तक रहीं जब तक कि पड़ोस को उस घर से तेज बदबू नहीं आने लगी। पड़ोसियों ने दरवाजा खुलवाया तो नीरू की लाश सड़ने लगी थी। दो बहनें डॉली और पूनम सूखी पिंजर नजर आती थीं।

तीनों पढ़ी-लिखी थीं। उनमें से दो ने नौकरी भी की थी मगर माता-पिता के गुजरने के बाद वे अचानक डिप्रेशन में आ गईं। बड़ी बहन डॉली ने
विदर्भ की भूख, कालाहांडी की भूख, सोमालिया-अफ्रीका की भूख नजर आती है। मेट्रोज, महानगरों और नगरों की भूख नजर नहीं आती, उसका सही वर्णन नहीं होता
शादी नहीं की तो उसकी देखा-देखी छोटी बहनों ने भी शादी नहीं की। मुहल्ले वाले बताते हैं कि वे बाहर कम निकलती थीं, मुहल्ले में ज्यादा घुलती-मिलती नहीं थीं, अपने में बंद रहती थीं। कभी-कभार एक लड़की निकलती थी और कुछ सामान लेकर घर में बंद हो जाती थी। जब कुछ न बचा तो भूख के साम्राज्य में वे अपने अंत का इंतजार करने लगीं। अगर पहली की लाश की बदबू न आती तो वे दोनों भी देर-सबेर इसी अंत को प्राप्त होतीं। वे कितनी कृशकाय थीं, इसका अंदाजा उन चित्रों से लगता है जो अखबारों ने दिए।

मीडिया में ताकतवर लोग खबर थे। आतंकवादी कार्रवाई तो ताकत वालों की थी और सलमान दो सौ करोड़ की ताकत वाले! वे जो मारे गए, उनकी मौत दहशत को बताती थी। मौत को उतना नहीं बताती थी। मौत एक आँकड़ा बन चली थी। आँकड़े दर्द नहीं जगाते। हमें सहने का आदी बनाते हैं।

अचानक कमलेश्वर की याद आ गई। कभी कानपुर की तीन बहनों ने दहेज के कारण एक साथ पंखे से लटककर आत्महत्या कर ली थी। कमलेश्वर तब दूरदर्शन पर 'बंद फाइल' कार्यक्रम देते थे और उन्होंने इस कार्यक्रम में उन लड़कियों का मामला उठाया था। अब इतने सारे चैनल हैं और सारे के सारे दिल्ली में लेकिन जनाब, इन तीन लड़कियों की भूख यहाँ खबर लायक नहीं बनी। वे कौन-से कारण रहे होंगे जिनसे यह भूख पैदा हुई, जिसे दिल्ली ने भूख ही नहीं माना? सरकार ने ध्यान देने योग्य नहीं माना? पुलिस ने एक अस्पताल में लड़कियों को भर्ती करा दिया। कुछ एनजीओ अचानक दौड़ पड़े मदद को। वे लड़कियाँ, जिनको अचानक खाना मिला तो टूट पड़ीं और पचा नहीं सकीं! जिनका इलाज जारी है।

विदर्भ की भूख, कालाहांडी की भूख, सोमालिया-अफ्रीका की भूख नजर आती है। मेट्रोज, महानगरों और नगरों की भूख नजर नहीं आती, उसका सही वर्णन नहीं होता। भूख का वर्णन करने के लिए कितने शब्द चाहिए? बताइए, कितने शब्द, कितने आँसू चाहिए और कितनी बेशर्मी, कितनी निष्ठुरता चाहिए इस जगत में?