दया की मूर्ति :- मदर टेरेसा

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ईश्वर हर इंसान में बसता है। मानव मात्र की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है। निर्धन व असहाय लोगों की सेवा में मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। लोगों ने भी इनकी ममता को सम्मान देते हुए इन्हें मदर का दर्जा दिया।

चेहरे पर झुर्रियाँ, लगभग पाँच फुट लंबी, गंभीर व्यक्तित्व वाली यह महिला असाधारण सी थी। पैर में साधारण सी चप्पल पहने तथा कंधे पर दवाइयों का झोला टाँगे मदर टेरेसा असाध्य बीमारियों से पीडि़त लोगों को दवाइयाँ देकर उनकी सेवा करती थीं।

जीवन का सफर :-
27 अगस्त 1910 को मैकेडोनिया गणराज्य की राजधानी स्कोप्ज में एक कृषक दंपत्ति के घर इस महान विभूति का जन्म हुआ था। मदर टेरेसा का असली नाम 'अगनेस गोंजे बोयाजिजू' था। बचपन में ही अगनेस ने अपने पिता को खो दिया। बाद में उनका लालन-पालन उनकी माता ने किया।

सेवा भावना की अनूठी मिसाल मदर टेरेसा ने 5 सितम्बर 1997 को दुनिया को अलविदा कह दिया। मदर का पार्थिव शरीर 'मदर हाउस' में दफनाया गया।

समाजसेवा की ओर रुझान :-
महज 18 वर्ष की छोटी उम्र में ही मदर टेरेसा ने समाज सेवा को अपना ध्येय बनाते हुए मिस्टरस ऑफ लॉरेंटो मिशन से स्वयं को जोड़ा। सन् 1928 में मदर टेरेसा ने रोमन कैथोलिक नन के रूप में कार्य शुरू किया। दार्जिलिंग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मदर टेरेसा ने कलकत्ता का रुख किया।

24 मई 1931 को कलकत्ता में मदर टेरेसा ने 'टेरेसा' के रूप में अपनी एक पहचान बनाई। इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी त्यागने का फैसला किया। मदर टेरेसा ने कलकत्ता के लॉरेंटो कान्वेंट स्कूल में एक शिक्षक के रूप में बच्चों को शिक्षित करने का कार्य भी किया।

सन् 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए 'मिशनरिज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की। जिसे 7 अक्टूबर 1950 में रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी।

मदर टेरेसा ने 'निर्मल हृदय' और 'निर्मला शिशु भवन' के नाम से आश्रम खोले। जिनमें वे असाध्य बिमारी से पीडित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थी। जिसे समाज ने बाहर निकाल दिया हो। ऐसे लोगों पर इस महिला ने अपनी ममता व प्रेम लुटाकर सेवा भावना का परिचय दिया।


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सम्मान :-
मदर टेरेसा के सेवा कार्यों की सराहना करते हुए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

सन् 1969 में उन्हें 'नोबेल शांति पुरस्कार', 1962 में 'पद्म श्री', 1973 में 'टेम्पलटन पुरस्कार' व 'मैटर सट मैगरेस्ट पुरस्कार', 1976 में 'देशिकोत्तम पुरस्कार', 1980 में 'भारत रत्न', 1983 में ब्रिटेन की महारानी द्वारा 'आर्डर ऑफ मेरिट', 1992 में 'राजीव गाँधी सद्भावना पुरस्कार', 1993 में 'यूनेस्को शांति पुरस्कार' तथा 1997 में 'रैमन मैग्सेसे' सम्मान से नवाजा गया।

सुर्खियों में रही मदर :-
मानवता की सेविका मदर टेरेसा भी आरोपों से अछूती नहीं रहीं। कभी इनकी संस्था के कार्यों में धाँधली के आरोप लगे तो कभी अपनी धार्मिक विचारधारा के कारण यह महिला सुर्खियों में आई।

  चेहरे पर झुर्रियाँ, लगभग पाँच फुट लंबी, गंभीर व्यक्तित्व वाली यह महिला असाधारण सी थी। पैर में साधारण सी चप्पल पहने तथा कंधे पर दवाइयों का झोला टाँगे मदर टेरेसा असाध्य बीमारियों से पीडि़त लोगों को दवाइयाँ देकर उनकी सेवा करती थीं।      
स्वयं को ईश्वर की सेविका मानने वाली मदर टेरेसा स्वयं ईश्वर के अस्तित्व में यकीन नहीं करती थीं। यह तथ्य 'मदर टेरेसा कम, बी माय लाइट' पुस्तक से उजागर होते हैं। जिसमें मदर टेरेसा के कई व्यक्तिगत पत्रों को प्रकाशित किया गया है जो उन्होंने अपने करीबी लोगों को लिखे थे।

पादरी ब्राएन कोलोडाईचुक ने इन पत्रों को एकत्र कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है। जिसे पढ़ने पर मदर टेरेसा का एक अलग ही रूप हमारे सामने आता है।

इन पत्रों में कितनी सच्चाई है। इसके बारे में तो हम कुछ कह नहीं सकते। परंतु इस महिला ने दुनिया के समक्ष सेवा कार्य का जो उदाहरण प्रस्तुत किया। वह अद्वितीय है जिसके लिए मदर टेरेसा का नाम सदियों तक याद रखा जाएगा।