दो चरित्र का बोझ उठाते ये 'सकारात्मक' दिखने वाले लोग

डॉ. छाया मंगल मिश्र
आपका परिचय दो तरह की महिलाओं से करवाना चाहती हूं। ये आपको अपने घर, ऑफिस, नाते-रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोस, परिचय में कहीं भी मिल जाएगीं। 
 
एक हैं श्रीमती शालिनी(छद्म नाम) .... नाम के अनुरूप उन्हें शालीन दिखने और कहलाने का शौक है और अपनी शालीनता(ऐसा इनको लगता है) और सीधेपन के आगे इन्हें बाकी सब तेज तर्रार और चालाक लगते हैं। इनका दोहरा चरित्र देखकर आपको चक्कर आ जाएंगे। शालिनी जैसे लोग सामने ऐसा शो करेंगे जैसे ये सबसे शर्मीले हैं और लोकप्रियता से बचकर चलने वाले हैं जबकि इनके भीतर की वास्तविक कुंठा यह है कि ये आगे बढ़ना चाहते हैं बढ़ नहीं पाते हैं, ये लोकप्रिय होना चाहते हैं पर रिश्ते इनको काटते हैं। दूसरों का सुख इनके दुखों का कारण है। किसी को जो बातें इन्हें सख्त नापसंद है वही बात इनको खुद में स्वाभाविक लगती है। ये चाहे बरसों बरस आपकी वॉल पर न आए पर आपसे ये उम्मीद रहेगी कि आप इन्हें लाइक भी करें, कमेंट भी करें और सराहें भी...

सही मायनो में ये ऐड़े बन कर पेड़े खाने वाले लोग हैं। आपको लगेगा कि सही में सीधे हैं पर इन जैसे टेढ़े से बचकर ही रहें। ये मन से कुंठित स्त्रियां हैं जो सामने हर किसी को भाई, भैया जैसे शब्दों से नवाज कर सती सवित्री बनेगी पर दूसरी महिला के पति को आकर्षित करने की इनकी भरपूर कोशिश रहेगी। उनसे संदेश आदान प्रदान में इन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। इन्हें तकलीफ महिलाओं से हैं, वो भी खुलकर खिलकर हंसने बोलने वाली महिलाओं से...मन ही मन कुढ़ती-घुलती ये महिलाएं अपने घर की समस्याओं से आंखें मूंदकर दूसरों की तरक्की से जलती हैं। 
 
दरअसल ये किसी की सगी नहीं होती, कल्पना लोक में विचरती हैं वास्तविकता से भागती हैं और अपनी कमियों को आंखें खोलकर देखना नहीं चाहती हैं, पीठ पीछे इन्हें दूसरों का ग्राफ गिराने में मजा आता है। 
 
दूसरी हैं शुभा(छद्म नाम), इन्हें हर तरह का हुनर आता है, आगे बढ़ने का भी, आगे बने रहने का भी, दूसरों को पीछे रखने का भी... इन्हें भरपूर लोकप्रियता मिलती है, वे बहुत आगे बढ़ती हैं लेकिन इनकी एक ही समस्या है कि सारी दुनिया बस इन्हीं से जलती है, सबको इनसे तकलीफ है, सबको इनकी प्रगति से जलन है.. सब इनको ऐसा वैसा समझती हैं जबकि ये वैसी है नहीं...हर विधा में इनको पारंगत होना है, हर वो चीज जो आपके पास है वो इनको भी चाहिए। अपनी मेहनत, ईमानदारी का ढिंढोरा पीटते हुए ये दर्शाना यह चाहती है कि सारी दुनिया इनके पीछे पड़ी है। कोई कुछ कह दें तो तिलमिला जाती है। असल में इनसे पूछना चाहिए कि जब सार्वजनिक जीवन में आने का इतना शौक है तो इतनी छुईमुई मानसिकता को काहे लेकर आई... इसे तो अपने अहाते में रख कर आएं ना... महत्वाकांक्षा इतनी प्रबल कि अगर किसी को इन्होंने मान लिया कि ये इतनी आगे क्यों, मैं क्यों नहीं तो फिर ये हाथ धोकर पीछे पड़ जाएंगी... उनके जैसी साड़ी से लेकर, हेयर स्टाइल, जैसा वो लिखे वैसा मैं लिखूं, जैसा वो दिखे वैसा मैं दिखूं... और फिर जिसकी कॉपी कर रही हूं उसे ही नीचा दिखाने का अवसर तलाश लूं... जिनका हाथ पकड़ कर ये आगे बढ़ती हैं उन्हीं से दामन छुड़ाने के लिए बेचैन हो जाती हैं... 
 
असुरक्षित इतनी कि आपकी छोटी सी कामयाबी भी पचा नहीं पाएंगी और रात दिन बस अपने ही अपने गुण गाए जाएंगी.... अपनी तारीफ ये इतनी नफासत से करेंगी कि अतिरिक्त विनम्रता की चाशनी से आपको घबराहट हो जाए। अमुमन पुरुष ऐसी स्त्रियों को पहचान नहीं पाते हैं और इनके मायामंडल, आभामंडल के आगे लहालौट हो जाते हैं और ये इस अवस्था में उन्हें देख आत्ममुग्धता की हर सीमा पार कर जाती हैं। ये अपनी तारीफ दूसरों के माध्यम से इतनी खूबी से कर लेती हैं कि बात भी पंहुच जाए और ये विनम्रता का लबादा भी ओढ़े रखे। 
 
जो कमियां इनमें होती हैं ये दूसरों में देखती हैं। कामयाबी इनसे पचाई नहीं जाती और दूसरों की तो देखी नहीं जाती... इन्हें सिर्फ मैं और मैं का मंत्र आता है... सामने से मीठा अतिरिक्त मीठा बोलने वाली ये स्त्रियां घातक है हर क्षेत्र के लिए.... 
 
मैं महिला सशक्तिकरण की हिमायती हूं पर कभी-कभी इन अजीब सी क्रत्रिम और नकलीपन से सजी महिलाओं को देखकर महिला विनम्रीकरण का नारा बुलंद करने को जी चाहता है.... आप भी देखना कहीं आपके आसपास तो नहीं है शालिनी और शुभा... 
 
ऐसे कई (कु)चरित्र हमारे जीवन में टकराते हैं।फिलहाल तो दो रूप ही काफी हैं सच्चाई का आईना दिखाने। आगे और रूबरू होंगें इन बहुरूपियों के गुणों के बखान के लिए...

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