आपके, हमारे और देश के कई क्षेत्रों में आमतौर पर सुबह के नाश्ते के रूप में सबसे ज्यादा प्रचलित भोज्य पदार्थ जिसे हर कोई शौक से खाना पसंद करता है, वह है पोहा। जी हां, वही पोहा जिसे महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश, खासतौर पर मालवा में बेस्ट कॉमन ब्रेकफास्ट के रूप में ख्याति प्राप्त है।
पोहे की इसी लोकप्रियता को देखते हुए 7 जून को पोहा दिवस के रूप में मनाया जाता है यानी आपका और हमारा पोहा अब अपनी नई पहचान के रूप में हम सबके सामने है। आइए, पोहा दिवस पर नजदीक से जानते हैं हम सबके इस पसंदीदा नाश्ते के बारे में कुछ रोचक जानकारियां -
चावल से तैयार किया जाने वाला पोहा एक ऐसे भोज्य पदार्थ के रूप में अपनी पहचान बना चुका है जिसे सुबह के नाश्ते के अलावा किसी भी समय हल्के भोजन के तौर पर लिया जा सकता है। चावल से तैयार होने के कारण इससे पेट भी जल्दी भर जाता है और देर तक भूख भी नहीं लगती। इसके अलावा इसे खाने के बाद आपको अपने पाचन तंत्र से भी लड़ने की जरूरत नहीं होती, ये आसानी से पच भी जाता है।
हालांकि चावल से बनने के कारण ठंडी तासीर के लोगों को कभी-कभी इससे कब्जियत की समस्या भी हो जाती है, चूंकि मालवा में खासतौर पर इंदौर में इसे भाप में पकाया जाता है जिससे गैस की समस्या भी हो सकती है। लेकिन इसके बावजूद सामान्य से लेकर हाईक्लास सोसायटी तक पोहा समान रूप से लोकप्रिय है और मुख्य रूप से पसंद किया जाने वाला एवं आसानी से उपलब्ध होने वाला भोजन है।
• पोहा एक, नाम अनेक- वैसे तो पोहा हर जगह एक ही तरह से पसंद किया जाता है लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों एवं बनाने के तरीकों के अनुसार इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पोहे के अलावा इसे पीटा चावल या चपटा चावल के नाम से भी जाना जाता है।
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में इसे पोहा, पोहे, चिवड़ा या तलकर बनाए जाने पर चूड़ा भी कहा जाता है। इसके अलावा तेलुगु में अटुकुलू, तमिल व मलयालम में अवल, बंगाली व असम में चीडा, मैथिली, नेपाली, भोजपुरी तथा छत्तीसगढ़ी और बिहार तथा झारखंड के कुछ क्षेत्रों में चिउरा, हिन्दी में पोहा या पौवा, नेवाडी में बाजी, मराठी में पोहे, कोंकणी में फोवू, कन्नड में अवालक्की और गुजराती में इसे पौआ या पौंवा के नाम से जाना जाता है।
केवल भारत ही नहीं, बल्कि नेपाल और बांग्लादेश के अलावा विश्व के अन्य देशों में भी पोहा काफी लोकप्रिय है तथा हर जगह इसे अपने-अपने अलग तरीकों से बनाया जाता है।
कहीं-कहीं पर इसे दूध या पानी में नमक या शकर के साथ पकाकर खाया जाता है तो कहीं पर इसे भिगोकर प्याज व अन्य मसालों के साथ बनाकर या फिर सूखा तलकर खाया जाता है या फिर किशमिश व इलायची के साथ मीठा बनाया जाता है। कई स्थानों पर इसे पानी के साथ पकाकर दलिया बनाया जाता है। छत्तीसगढ़ के कुछ गांवों में इसे पकाकर व गुड़ मिलाकर खाया जाता है।
• महाराष्ट्र व मप्र : पोहे को राई, जीरा, मूंगफली व मसालों के साथ प्याज डालकर पकाया जाता है और मालवा के साथ सागर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, भोपाल, होशंगाबाद के अलावा पूरे मालवा क्षेत्र में पोहे को सेंव या नमकीन डालकर विशेष रूप से जलेबी के साथ खाया जाता है जिसके बगैर पोहे का स्वाद अधूरा माना जाता है।
• केरल : दूध, चीनी, जमीन नारियल और केले के टुकड़ों के साथ बनाया जाता है जिसमें मूंगफली या काजू इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा इसे घी में तलकर, गुड़, दाल, काजू, मूंगफली और नारियल के साथ भी बनाया जाता है।
• बिहार और ओडिशा : पोहे को नरम बनाने के लिए पानी के साथ साफ किया जाता है, फिर दही और चीनी डालकर नमकीन बनाया जाता है। बिहार और ओडिशा में मकर संक्रांति के त्योहार के दौरान इसे प्रमुख भोजन के रूप में खाया जाता है।
• नेपाली : नेपाल में पोहे को दही चिउरा के रूप में पका केला, दही और चीनी के साथ मिश्रित कर बनाया जाता है। काठमांडू में इसे अलग-अलग तरह से मसालेदार आमलेट के साथ बनाया जाता है जिसे अंडा पुलावी या अंडा चिउरा कहा जाता है।
• ओडिशा : ओडिशा में इसे चूडा कडाली चकाटा के रूप में धोकर, दूध व पके केले, चीनी या गुड़ मिलाकर बनाया जाता है, जो कि ओडिशा का एक पारंपरिक नाश्ता या भोजन है।