महिलाओं के हित में कानून

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भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के कई प्रावधान भी उत्पीड़ित महिलाओं के हितार्थ हैं। दहेज हत्या, आत्महत्या या अन्य प्रकार के अपराधों में महिला के 'मरणासन्न कथन' दर्ज किए जाते हैं। यह प्रावधान महिला को उत्पीड़ित करने वाले को दंडित करने हेतु अत्यधिक उपयोगी है। स्त्री धन में वैधानिक तौर पर विवाह से पूर्व दिए गए उपहार, विवाह में प्राप्त उपहार, प्रेमोपहार चाहे वे वर पक्ष से मिले हों या वधू पक्ष से तथा पिता, माता, भ्राता, अन्य रिश्तेदार और मित्र द्वारा दिए गए उपहार स्वीकृत किए गए हैं।

विवाहित हिन्दू स्त्री अपने धन की निरंकुश मालिक होती है। वह अपने धन को खर्च कर सकती है। सौदा कर सकती है या किसी को दे सकती है। इसके लिए उसे अपने पति, सास, ससुर या अन्य किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं है। बीमारी या कोई प्राकृतिक आपदा को छोड़कर स्त्री का पति भी उसके धन को खर्च करने का कोई अधिकार नहीं रखता। इन परिस्थितियों में खर्च किए गए स्त्री धन को वापस करना ससुराल पक्ष की नैतिक जिम्मेदारी होगी। परिवार का अन्य सदस्य किसी भी स्थिति में स्त्री धन खर्च नहीं कर सकता। उच्चतम न्यायालय ने एक प्रकरण में कहा है कि स्त्री द्वारा माँग किए जाने पर इस प्रकार के न्यासधारी उसे लौटाने के लिए बाध्य होंगे। अन्यथा धारा 405/406 भा.द.वि के अपराध के दोषी होंगे।

धारा 363 में अपहरण के अपराध के लिए दंड देने पर 7 साल का कारावास और धारा 363 क में भीख माँगने के प्रयोजन से किसी महिला का अपहरण या विकलांगीकरण करने पर 10 साल का कारावास और जुर्माना, धारा 365 में किसी व्यक्ति (स्त्री) का गुप्त रूप से अपहरण या व्यपहरणकरने पर 7 वर्ष का कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों, धारा 366 में किसी स्त्री को विवाह आदि के लिए विवश करने के लिए अपहृत करने अथवा उत्प्रेरित करने पर 10 वर्ष का कारावास, जुर्माने के प्रावधान हैं। धारा 372 में वेश्यावृत्ति के लिए किसी स्त्री को खरीदने पर10 वर्ष का कारावास, जुर्माना, धारा 373 में ेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए महिला को खरीदने पर 10 वर्ष का कारावास, जुर्माना एवं बलात्कार से संबंधित दंड आजीवन कारावास या दस वर्ष का कारावास और जुर्माना, धारा 376 क में पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ पृथक्करण के दौरान संभोग करने पर 2 वर्ष का कारावास अथवा सजा या दोनों।

धारा 376 ख में लोक सेवक द्वारा उसकी अभिरक्षा में स्थित स्त्री से संभोग करने पर 5 वर्ष तक की सजा या जुर्माना अथवा दोनों, धारा 376 ग में कारागार या सुधार गृह के अधीक्षक द्वारा संभोग करने पर 5 वर्ष तक की सजा या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान, धारा 32 (1) में मरे हुए व्यक्ति (स्त्री) के मरणासन्न कथनों को न्यायालय सुसंगत रूप से स्वीकार करता है बशर्ते ऐसे कथन मृत व्यक्ति (स्त्री) द्वारा अपनी मृत्यु के बारे में या उस संव्यवहार अथवा उसकी किसी परिस्थिति के बारे में किए गए हों, जिसके कारण उसकी मृत्यु हुई हो। धारा 113 ए में यदि किसी स्त्री का पति अथवा उसके रिश्तेदार के द्वारा स्त्री के प्रति किए गए उत्पीड़न, अत्याचार जो कि मौलिक तथा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित हो जाते हैं, तो स्त्री द्वारा की गई आत्महत्या को न्यायालय दुष्प्रेरित की गई आत्महत्या की उपधारणा कर सकेगा। धारा 113बी में यदि भौतिक एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्यों द्वारा यह प्रमाणित हो जाता है कि स्त्री की अस्वाभाविक मृत्यु के पूर्व मृत स्त्री के पति या उसके रिश्तेदार दहेज प्राप्त करने के लिए मृत स्त्री को प्रताड़ित करते, उत्पीड़ित करते, सताते या अत्याचार करते थे तो न्यायालय स्त्रीकी अस्वाभाविक मृत्यु की उपधारणा कर सकेगा अर्थात दहेज मृत्यु मान सकेगा।

पिछले दशक से महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो कानूनी कवच दिया गया है, वह नई चुनौतियों के आगे अपने को लाचार पा रहा है। ये कानून ठीक तरह से लागू हों, इसके लिए सजग रहना होगा। लेकिन आने वाली सदी में महिलाओं की जगह क्या हो, इस बारे में एक समग्रदृष्टि विकसित करनी होगी। आज आवश्यकता जरूरत से ज्यादा कानूनों के थोड़े सपालन की नहीं, बल्कि थोड़े से कानून के अच्छी तरह पालन करने की है।

कानून कहता है कि-

* पुरुष व स्त्री को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले

* महिला कर्मचारियों के लिए पृथक शौचालय व स्नानगृहों की व्यवस्था हो

* किसी महिला के साथ दास के समान व्यवहार नहीं किया जा सकता

* बलात्कार के आशय से किए गए हमले से बचाव हेतु हत्या तक का अधिकार महिला को है

* विवाहित हिन्दू स्त्री अपने धन की निरंकुश मालिक है, वह उसे जैसे चाहे खर्च कर सकती है

* दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध है

भारतीय दंड संहिता की धारा 41 (सी) के अंतर्गत संज्ञेय अपराध, वे अपराध हैं जिनमें पुलिस को प्रत्यक्ष रूप से बयान देने व बिना वारंट के
धारा 363 में अपहरण के अपराध के लिए दंड देने पर 7 साल का कारावास और धारा 363 क में भीख माँगने के प्रयोजन से किसी महिला का अपहरण या विकलांगीकरण करने पर 10 साल का कारावास और जुर्माना
गिरफ्तार करने का अधिकार है। इसके विपरीत जिन प्रकरणों में प्रत्यक्ष रूप से पुलिस को संज्ञान लेने व बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है, असंज्ञेय अपराध कहलाते हैं। धारा 47 (ए) के अंतर्गत गिरफ्तारी से बचने के लिए यदि कोई व्यक्ति किसी मकान में छिपता है या प्रवेश करता है तो गिरफ्तार करने वाला व्यक्ति या पुलिस अधिकारी विहिनियमों के अनुसार मकान में प्रवेश कर सकता है और उस मकानकी तलाशी भी ले सकता है, परंतु धारा 47 (बी) के अंतर्गत यदि उस मकान में या उसके किसी भाग में ऐसी महिला का निवास है जिसकी गिरफ्तारी नहीं की जानी हो तो गिरफ्तार करने वाला अधिकारी, उस महिला से, उस मकान या स्थान से हट जाने के लिए आग्रह करेगा या उसे जाने देगा।

धारा 51 (1) (2) के अंतर्गत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की तलाशी विहित नियमों द्वारा ली जा सकेगी किंतु यदि गिरफ्तार व्यक्ति महिला है तो पूरी शिष्टता के साथ किसी अन्य महिला द्वारा ही तलाशी ली जा सकेगी, धारा 53 (2) के अंतर्गत पुलिस अधिकारी की प्रार्थना पर किसीस्त्री अभियुक्त का शारीरिक परीक्षण किसी महिला चिकित्सा व्यवसायी द्वारा किया जा सकेगा। धारा 98 के अंतर्गत किसी स्त्री या 18 वर्ष से कम आयु की बालिका को विधि विरुद्ध प्रयोजन के लिए रखे जाने या निरुद्ध रखे जाने पर और शपथ पर ऐसा परिवाद किए जाने पर, जिला मजिस्ट्रेट, उपखंड मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट विधि विहित नियमों में उसे स्वतंत्र करने का आदेश दे सकता है। धारा 100 (3) के अंतर्गत यदि कोई महिला अपने पास कोई चीज छिपाती है तथा उसकी जामा तलाशी करना है तो उसकी तलाशी पूरी शिष्टता के साथ अन्य कोई महिला द्वारा ही की जाना चाहिए।