हर साल 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है। मैं कहती हूं कि विश्वभर को महिला दिवस मनाने की आवश्यकता ही नहीं है। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में देवी की पूजा नहीं होती है। भारत में कई रूपों में देवियों का पूजन किया जाता है। देवी दुर्गा, माता पार्वती, मां भगवती, मां बगलामुखी, माता कालिका या फिर अन्य कई देवियों का पूजन ही क्यों न हो? हमारा देश देवी को पूजता भी है और हमारे सम्माननीय नारियों और देवियों के लिए नतमस्तक भी है।
लेकिन फिर भी हमें महिला दिवस नहीं मनाना चाहिए, क्योंकि जहां मां, पुत्री, बेटी, लड़की, महिला या स्त्री के शील धर्म की रक्षा नहीं की जा सकती, वहां महज एक दिन महिलाओं के प्रति वफादारी दिखाने का क्या औचित्य है?
बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, जहां गर्भ में आते ही बेटियों को मार दिया जाता है, वो तो इस सबसे ऊपर बहुत अधिक भयावह और लज्जित होने वाली बात है। हमें इस बात के प्रति सजग होते हुए गर्भ में पल रहीं बेटियों की रक्षा करनी चाहिए ताकि आने वाले समय में भारत कहीं बेटियों के स्नेह और प्यार से वंचित न रह जाएं।
8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आते ही सिर्फ एक दिन के लिए महिलाओं का गुणगान करके उन्हें सम्मान देना और दूसरी ओर उनको छलना, उनके साथ कपट भाव रखना, रास्ते चलते छेड़छाड़ करना, स्त्री को लज्जित करना, शराब पीकर महिलाओं के साथ मारपीट करना... यह सब हमें शोभा नहीं देता। इससे अच्छा यही होगा कि हम महिला दिवस मनाना ही भूल जाएं।
अगर सच में हमारे मन में महिलाओं के प्रति आदर और सम्मान है, तो सबसे पहले हमें चाहिए कि हम उन मां, बहन, बेटियों, बहुओं और उन मासूम बच्चियों के प्रति अपना नजरिया बदलें और उन्हें हीन दृष्टि से देखना बंद करें। पराए घर की किसी महिला या लड़की को हम हमारी घर की बेटी समझकर उन्हें भी उसी नजरिए देखें, जो नजरिया हम अपनी मां और बहनों के लिए रखते करते हैं।
महिला दिवस मनाने का केवल यह मतलब नहीं है कि एक दिन तो बहुत ऊंचे स्थान पर बैठाकर मान-सम्मान दे दिया जाए और दूसरे ही दिन राह चलती लड़कियों से छेड़खानी शुरू कर दी जाए। यहां युवा तो युवा, बुजुर्ग भी इन मामलों में पीछे नहीं हैं। रास्ते चलते लड़कियों पर फब्तियां कसना इनकी आदत शुमार में है और सबसे ज्यादा शर्मनाक बात तो तब हो जाती है, जब हैवानों का दल 3-5 साल की मासूम बच्चियों को भी अपना निशाना बनाने में नहीं चूकते और मौका देखते ही उनका शीलहरण करके उन्हें नारकीय जीवन में पहुंचा देते हैं।
कभी टॉफी का लालच देकर तो कभी अन्य बहानों से बहला-फुसलाकर अपने गंदे नापाक इरादों को उन मासूमों पर थोप दिया जाता है। चाहे वो फिर अपने पड़ोसी की जान-पहचान की बच्ची हो या फिर कोई और... उन्हें इस कदर रौंद दिया जाता है कि वे न जीने लायक बचती है और न ही समाज में अपना मुंह किसी को दिखाने लायक। हमारे प्रोफेशनल समाज को चाहिए कि वह इस तरह दरिंदगी का शिकार हुई बच्चियों और महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदले और उन्हें अपने घरों में बेटी या बहूओं का स्थान देने की पहल करें।
महिला दिवस सिर्फ एक दिन मनाकर अपने कर्तव्य से इतिश्री न करें, महिला के मान-सम्मान के प्रति हर दिवस, हर पल सजग रहें ताकि किसी भी घर की बेटी, बहू या और कोई भी हो उसके साथ कुछ भी, कहीं भी गलत न हो सकें। इसके लिए पुरुषों को इस मामले में ठोस कदम उठाना चाहिए, क्योंकि नारी सम्मान की बात घर से ही शुरू की जानी चाहिए ताकि बाकी भी इस सम्मान को बरकरार रखने में पूरी तरह सहयोग दे सकें।
आज महिलाएं, युवतियां घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर हर क्षेत्र में जहां अपना परचम बखूबी लहरा रही हैं, वहीं अगर पुरुष वर्ग भी उनके प्रति अपना नजरिया बदल देंगे तो निश्चित ही भारत की हर बेटी-बहू का मान-सम्मान, इज्जत-आबरू की रक्षा होगी। इतना ही नहीं, कोई भी उनके प्रति गलत भावना अपने मन में नहीं ला पाए, ऐसा अपने मन में सौ प्रतिशत निर्णय लेकर ही निश्चय करना होगा ताकि हम इस दिवस को मनाने के योग्य बन सकें।
मेरी ओर से सभी को International Women's Day की सस्नेह शुभकामनाएं!