महिला दिवस को मनाए जाने के पूर्व वेबदुनिया टीम ने हर आम और खास महिला से भारत में नारी सुरक्षा को लेकर कुछ सवाल किए। हमें मेल द्वारा इन सवालों के सैकड़ों की संख्या में जवाब मिल रहे हैं। हमारी कोशिश है कि अधिकांश विचारों को स्थान मिल सके। प्रस्तुत हैं वेबदुनिया के सवाल और उन पर मिली मिश्रित प्रतिक्रियाएं....
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प्रस्तुत है अमेरिका से प्रकाशित अप्रवासी भारतीयों की पत्रिका हिन्दी चेतना की संपादक सुधा ओम ढींगरा के विचार-
* भारतीय महिलाओं का सही मायनों में सशक्तिकरण आप किसे मानते हैं? -आर्थिक स्वतंत्रता -दैहिक स्वतंत्रता -निर्णय लेने की स्वतंत्रता
आर्थिक स्वतंत्रता तो हर महिला को मिलनी चाहिए। शिक्षा और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता ही उसे उसके 'स्त्रीत्व' को सशक्त करने में सहायता करती है। शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता से महिलाओं में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है और स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। इसके लिए परिवार और समाज का भी उत्तरदायित्व है कि वह महिला को अबला नहीं इंसान समझे। महिलाएं अपनी ऊर्जा पुरुषों का मुकाबला करने की बजाए स्वयं को, भीतर की औरत को मज़बूत करने में लगाएं तो समाज में नारी शक्ति के रूप में उभर सकती है।
* घरेलू हिंसा के लिए मुख्य रूप से महिलाओं की खामोशी या सहनशक्ति जिम्मेदार है, क्या आप इससे सहमत हैं?
जी ख़ामोशी और सहनशक्ति दोनों ज़िम्मेदार हैं। बचपन से जब यह सिखाया जाता है कि जिस घर में डोली गई है वहीं से अर्थी उठनी चाहिए, बड़े होकर ये संस्कार निकाल फेंकने मुश्किल हो जाते हैं।
* बॉलीवुड की बालाओं का भारत की ग्रामीण बालिकाओं पर नकारात्मक असर पड़ता है?
ग्रामीण, शहरी, बालिग़-नाबालिग़ सब पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। देह की प्रदर्शनी, देह की स्वतंत्रता उन्हें आकर्षित करती है। कच्ची उम्र अपनी बुद्धि अनुसार अर्थ निकाल लेती है। नारी को तो देह ही माना जाता है और कुछ नहीं।
* महिला सुरक्षा के लिए खुद महिला को ही सक्षम होना होगा या सामाजिक स्तर पर सोच में बदलाव लाया जा सकता है?
महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए और सक्षम होना होगा। सामाजिक स्तर पर महिलाओं के प्रति अगर सोच नहीं बदली तो सुरक्षा और सशक्तिकरण में कठिनाइयां आएंगी।
* क्या बदलते दौर में आने वाली पीढ़ी के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान संभव नहीं है?
सम्मान परिवार के संस्कारों पर निर्भर करता है। घर में मां, बहन, बेटी और बहु की अगर इज्ज़त की जाती है तो बच्चा वही देखता है और वही समाज को देगा। सबसे पहले महिलाओं को अपनी जात के प्रति सम्मान भाव रखना होगा। महिलाओं को स्वयं अपनी इज्ज़त करनी होगी, आने वाली पीढ़ी सम्मान करेगी ही।
* बलात्कार जैसी घटनाएं रोक पाना संभव है? अगर हां तो कैसे, और नहीं तो क्यों?
सख्त कायदे-कानून, सामाजिक सजगता, पारिवारिक शिक्षा सब मिल कर चलें तो इन्हें रोका जा सकता है।
* बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं और क्यों?
आदिकाल से चला आ रहा गंभीर प्रश्न है। पितृसत्ता के वर्चस्व के चलते नारी को सिर्फ मादा समझना और कुरमुराता सामाजिक ढांचा बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार है, जिसमें जागरूकता लाने की ज़रूरत है। कानून की अवहेलना से भी इन घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है।
* मासूम बच्चियों के साथ बढ़ती बलात्कार की वारदातों के पीछे आखिर कौन सी विकृति होती है?
मानसिक विकृति एक रोग होता है, जिसके प्रति अनभिज्ञता घातक परिणाम देती है। इस रोग को खाद-पानी मिलता है विकृत सामाजिक परिवेश, फिल्मों में बढ़ती अश्लीलता और बलात्कार के कामुक दृश्यों, विकृत राजकीय माहौल और स्तर से गिर रही शिक्षा प्रणाली से। ऐसे लोगों को कर्मों की सज़ा न मिलना, पीड़िता के परिवार और समाज का चुप्पी साध लेना कई बार इन वारदातों को बढ़ावा देता हैं।
* क्या विदेशों में महिलाओं की स्थिति भारत से बेहतर है?
जी, बिलकुल बेहतर हैं, महिलाएँ अपने प्रति और अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं, जागरूक हैं। यह नहीं कि यहां महिलाएँ प्रताड़ित नहीं होती और बलात्कार नहीं होते, अच्छे बुरे लोग हर देश में होते हैं। पर कानून व्यवस्था का डर है। सामाजिक संचेतना है। नारी जाति का सम्मान है।