जब उन्हें पता चला कि उन्हें कैंसर है तो यह उनकी खुशहाल जिंदगी के लिए बहुत बड़ा झटका था लेकिन वे हिम्मत नहीं हारीं। यह सब कुछ अचानक हुआ कि उज्जैन में पंडित राधेश्याम के एक कैंप में अपनी कीमोथैरिपी के दौरान ही उन्होंने योग सीखा और बदल गया उनका जीवन। योग ने उनके भीतर जीने की एक नई चाहत और ऊर्जा भर दी। फिर क्या था वह खुद से जुड़ती गईं और योग होता गया।
महिमा ने कहा कि कैंसर रोगियों के लिए प्राणायाम और मेडिटेशन सबसे लाभदाय होता है। दरअसल, कीमोथैरेपी के बाद आपकी स्ट्रैंथ घट जाती है और आप शारीरिक रूप से भी कमजोर महसूस करते हैं ऐसे में आपका आत्मविश्वास भी कम होने लगता है, लेकिन प्राणायाम का एक छोटा-सा प्रयास आपके भीतर ऑक्सीजन के लेवल को इस कदर बढ़ा देता है कि आप एक और जहां अपनी खोई हुई ताकत फिर से हासिल कर लेते हैं वहीं आप दवाइयों के साइड इफेक्ट से भी बच जाते हैं। दूसरी ओर मेडिटेशन आपके दिमाग को शांत रखकर आपकी सोच को सकारात्मक बनाता है।
महिमा का कहना है कि जिन लोगों को कुछ नहीं हुआ है, नार्मल हैं या जो हेल्दी हैं वे लोग तो योग करते ही हैं लेकिन मेरा मानना है कि जिन लोगों का ट्रीटमेंट चल रहा है उनको जरूर योग करना चाहिए। हालांकि अकसर लोग यह सोचते हैं कि अभी तो ट्रीटमेंट चल रहा है तो ऐसे में कैसे योग कर सकते हैं। जब ठीक हो जाएंगे तब योग करेंगे, तो मेरा ऐसे लोगों से कहना है कि योग आपके ट्रीटमेंट में मदद करेगा। ऐसे समय ही आपको योग करने की ज्यादा जरूरत होती है।
जब उनसे पूछा गया कि योग करने से आपको कितना फायदा हुआ तो उन्होंने कहा कि इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है। डिप्रेशन पूरी तरह से खत्म हो गया है। कीमोथैरेपी से होने वाले साइट इफेक्ट से भी सुरक्षित रही। मेरी ऊर्जा का लेवल पहले की तरह ही है और मैं आज भी आम लोगों की तरह काम करती हूं। पहले की अपेक्षा अब में जिंदगी को ज्यादा एंजॉय करती हूं।