गुदाद्वारा को बार-बार सिकोड़ने और फैलाने की क्रिया को ही अश्विनी मुद्रा कहते हैं। अश्विनी मुद्रा इतनी आसान है कि इसको करने में किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है।
विधि : कगासन में बैठकर (टॉयलैट में बैठने जैसी अवस्था) गुदाद्वार को अंदर खिंचकर मूलबंध की स्थिति में कुछ देर तक रहें और फिर ढीला कर दें। पुन: अंदर खिंचकर पुन: छोड़ दें। यह प्रक्रिया यथा संभव अनुसार करते रहें और फिर कुछ देर आरामपूर्वक बैठ जाएं।
सावधानी : यदि गुदाद्वार में किसी प्रकार का गंभीर रोग हो तो यह मुद्रा योग शिक्षक की सलाह अनुसार ही करें।
लाभ : इस मुद्रा के निंरतर अभ्यास से गुदा के सभी रोग (जैसे बवासीर, अर्श, भगंदर आदि) ठीक हो जाते हैं। शरीर में ताकत बढ़ती है तथा इस मुद्रा को करने से उम्र लंबी होती है। माना जाता है कि इस मुद्रा से कुण्डलिनी का जागरण भी होता है।