विश्व में हिन्दी ने बना ली अपनी पहचान

शुक्रवार, 11 सितम्बर 2015 (18:14 IST)
भोपाल। विश्व हिन्दी सम्मेलन में 39 देशों के 116 हिन्दी प्रेमियों और हिन्दी विद्वानों की भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी ने विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना ली है।

प्रोफेसर जन्मेजय ने यह बात विश्व हिन्दी सम्मेलन में ‘विदेशों में हिन्दी शिक्षण, समस्याएँ और समाधान’ के आरंभिक सत्र में कही। हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने और उसकी संयुक्त राष्ट्र संघ में उपस्थिति की बातें अब महत्व की नहीं रहीं क्योंकि विश्व में अपना विशेष स्थान बनाती जा रही है। सत्र में केन्द्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद के अतिरिक्त विभिन्न देशों से आए हिन्दी के विद्वान उपस्थित थे।
 
सम्मेलन में ये बात सबसे मुखर रही कि विदेशों में भारत में तैयार पाठ्यक्रम की अपेक्षा स्थानीय संस्कृति एवं आवश्यकताओं से तालमेल बैठाते हुए विशिष्ट पाठ्यक्रम तैयार किया जाए।
 
संयोजक सतीश मेहता ने कहा कि भारतीय मूल के विदेशी, हिन्दी के माध्यम से ही अपनी संस्कृति से जुड़ना चाहते हैं। सम्पूर्ण विश्व में भारत को जानने की उत्कंठा बढ़ रही है। विश्व के अनेक विश्वविद्यालय हिन्दी में शिक्षा दे रहे हैं। आस्ट्रेलिया में स्कूलों में भी 10वीं तक हिन्दी की शिक्षा दी जा रही है।
 
हंगरी से आई मारिया नजेशी ने कहा कि 20 लाख की आबादी वाले हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में 2 हिन्दी अध्ययन केन्द्र हैं। यूरोप में पिछले 30-35 वर्ष से हिन्दी की लोकप्रियता और क्षेत्र बढ़ा है। हंगरी में 1873 में भारोपीय भाषा विज्ञान केन्द्र की स्थापना की गई थी। संस्कृत का 140 वर्ष से वहाँ स्थान है और 1956 से भारत विद्या अध्ययन प्रमुख विषय के रूप में शामिल हैं। मारिया ने अनेक पुस्तकों का हंगेरियन से हिन्दी और हिन्दी से हंगेरियन में अनुवाद कर दोनों ही भाषाओं को समृद्ध किया है। यहाँ 10 वर्ष से हिन्दी पत्रिका भी निकल रही है।
 
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से थाईलैंण्ड में पदस्थ करुणा शर्मा ने कहा कि थाई भाषा में संस्कृत-पाली के काफी शब्द मिलते हैं। परन्तु थाई जैसी बोली जाती है, वैसी पढ़ी नहीं जाती। शर्मा ने कहा कि विदेशों में हिन्दी प्रशिक्षण के लिए सीबीएसई की तर्ज पर अंतरराष्ट्रीय बोर्ड हो। 
 
सऊदी अरब के इस्माइल ने बताया वहाँ के अंतरराष्ट्रीय भारतीय विद्यालय में 19 हजार छात्र हिन्दी की पढ़ाई कर रहे हैं। इसके अलावा 25-30 स्कूल में भारतीय छात्र सीबीएसई के माध्यम से पढ़ाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी में भी अन्य विदेशी भाषाओं की तरह अच्छे अंक मिलने चाहिए, जो अभी तुलनात्मक रूप से नहीं मिलते।
 
मिस्र की गुलनाज अब्दुल मजीद ने कहा कि वहाँ संचालित छमाही हिन्दी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के साथ ही अगली प्रतीक्षा-सूची भर जाती है। भारतीय लोगों से लोग हिन्दी सीख रहे हैं। भारतीय फिल्मों की विदेशों में हिन्दी के प्रसार में सशक्त भूमिका पर भी सत्र में चर्चा हुई। 
 

वेबदुनिया पर पढ़ें