26/11 मुबंई ही नहीं बल्कि देश के इतिहास का वो काला पन्ना है, जिसे पलटते ही मौत का तांडव हमारी आँखों के सामने आ जाता है और हम खो जाते है, उस काले दिन की यादों में, जो खौफ और बेरहमी का पर्याय बना था। लगभग तीन दिनों तक चले आतंक के इस खौफनाक मंजर ने हम सभी को यह सोचने पर विवश कर दिया कि हम सुरक्षा के चाहे कितने भी दावें कर ले पर हर बार कुछ इक्के-दुक्के आतंकी देश में घुसकर सौ करोड़ जनता को हिला कर रख देते हैं।
मुंबई आतंकी हमले की कड़वी यादों से अगर हम दूर हो गए तो मानो सच से भी दूर हो जाएँगे। यह हमला हमारी स्मृति में सदैव के लिए एक कड़वी याद बनकर अंकित रहे। इसके लिए जरूरी है, मौत के उस दहला देने वाले मंजर को याद करके कुछ ऐसा करने का प्रयास करें जिससे कि आतंकियों के हमले नेस्तनाबूत हो जाएँ और ऐसे हमले दोबारा कभी नहीं हो। मुबंई आतंकी हमलों को लेकर कुछ ऐसी ही सोच बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं की रही, जिन्होंने इस हमले केंद्रित फिल्में बनाकर आतंकवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाने का प्रयास किया।
मुंबई कभी रूकती नहीं : कहते है मुंबई कभी रूकती नहीं लेकिन 26/11 को मुंबई की सड़कों पर अचानक सन्नाटा पसर गया और दिन-रात चलने वाली मुंबई खून से रंग गई। यहाँ की होटल ताज, होटल ओबेरॉय, नरीमन हाउस आदि स्थानों पर आतंकियों ने अपना कब्जा किया और राहगीरों व यात्रियों पर अंधाधुंध गोलीबारी करना शुरू किया।
दो दिनों से अधिक समय तक चलने वाली इस गोलीबारी के दृश्य को टेलीविजन पर देखकर हर दर्शक दहल उठा और उसके दिल से मुंबईवासियों की सलामती की दुलाएँ निकलने लगी। अब आप ही स्वयं ही सोच सकते है कि इस हमले में उन लोगों का क्या हाल हुआ होगा, जो घर से निकले तो परिवार के साथ थे पर घर आएँ तो अकेले, जिन्होंने अपने बाप, बहन और बेटे को आँखों के सामने मरते देखा पर वो बेबस चाहते हुए भी उनकी जान नहीं बचा पाएँ।
हमले पर आधारित फिल्में : बॉलीवुड को मायानगरी मुंबई का दिल कहा जाता है। मुंबई पूरे देश की फिल्म इंडस्ट्री का गढ है। यहाँ हर प्रकार की और हर भाषा की फिल्मों का निर्माण होता है। भारत में बनने वाली इन बॉलीवुड की फिल्मों के विषय भी हमारे आसपास घटित होने वाली घटनाओं पर केंद्रित होते हैं।
मुंबई हमलों ने जहाँ हमसे सब कुछ छीन लिया वहीं इस हमले ने बॉलीवुड फिल्मकारों को फिल्म बनाने का एक सुनहरा मौका भी दिया। 'मौका देखकर चौका मारने वाले' बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाया और इस खौफनाक मंजर को अपनी फिल्मों में कैद कर 26/11 को अमरता प्रदान की।
'इमोशन' और 'एक्शन' दोनों के मिक्सअप ने इस हमले के विषय को फिल्मकारों के लिए मसालेदार बनाया। इस घटना को लेकर कई फिल्मकारों ने भारी बजट की फिल्मों पर अपनी किस्मत आजमाई और सफलता भी पाई। हमले के तुरंत मुंबई आतंकी हमले पर केंद्रित लगभग 30 फिल्मों का ताबड़तोड़ रजिस्ट्रेशन इसी बात का सबूत है कि आज बॉलीवुड भी आमजन के दु:खों का साक्षी बनना चाहता है तथा इस हमले की यादों को अपनी फिल्मों के दृश्यों में समेटना चाहता है। 26/11 के मुंबई आतंकी हमले पर केंद्रित तैयार फिल्मों में 'टोटल टेन' और 'उन हजारों के नाम' प्रमुख है।
हर हादसे पर बनी है फिल्में : मुंबई बम ब्लास्ट हो या देश में नक्सली हमला, अवैध वस्तुओं की तस्करी हो या हत्या की वारदात आदि हर विषय को बॉलीवुड फिल्म निर्माताओं की पैनी निगाह ने पकड़कर उन पर फिल्में बनाई है। घटना विशेष को लेकर बनाई गई इन फिल्मों का आमजन पर भी गहरा प्रभाव देखने को मिला है।
हॉलीवुड आगे बॉलीवुड पीछे : हमलों व घटनाओं पर केंद्रित फिल्मेंं बनाने में हॉलीवुड, बॉलीवुड से दो कदम आगे हैं। हर घटना, दुर्घटना या त्रासदी का जिस तरह से चित्रण हॉलीवुड करता है वह सच में काबिले तारीफ है। यदि हम मुबंई आतंकी हमले की भी बात करें तो इस हमले को लेकर भी हॉलीवुड फिल्म 'टैरर इन मुंबई' रिलीज के लिए तैयार है।
हालाँकि अब बॉलीवुड भी सच्ची घटनाओं के चित्रण पर आधारित फिल्में बनाने में हॉलीवुड से प्रेरणा ले रहा है और यह प्रयास कर रहा है कि आतंकवाद, अपराध व प्राकृतिक आपदा से संबंधित अधिक से अधिक फिल्में बनाई जाए। यही कारण है कि फिल्म 'अ वेडनेसडे', 'बॉम्बे', 'मुंबई मेरी जान' और 'तुम मिले' आदि फिल्में हादसों के नाम रही।
मुंबई हमले में हमने बहुत कुछ खोया, जिसका मलाल हमें आज भी है। हम बस इस बात पर संतोष कर सकते हैं कि देश की मीडिया व फिल्मकार हमारे सामने इस घटना को हमेशा जीवित बनाए रखेंगे तथा हमें इस बात की प्रेरणा देते रहेंगे कि हममें से किसी के भी साथ कहीं भी कुछ भी हो सकता है इसलिए यदि हमें हमले का शिकार नहीं बनना है तो हमें देश की सुरक्षा के बारे में गंभीरता से सोचना होगा।
अब 26/11 की बरसी आ गई है, मतलब हम सभी के लिए 'विचार-मंथन' का वो दिन आ गया है, जब हम फिर से अपनी खामियों और उपलब्धियों का जिक्र करेंगे। हर हमले की तरह इस हमले की भी शोकसभा होंगी परंतु साथ ही होगा उम्मीद का वो नया सवेरा, जो हमारे लिए खुशियाँ, उपलब्धियाँ, बेहतर सुरक्षा व्यवस्था व प्रगति का सूचक होगा।