श्री कर्कोटेश्वर महादेव की स्थापना की कथा कर्कोटक नामक सर्प और उसकी शिव आराधना से जुड़ी हुई है। श्री कर्कोटेश्वर महादेव की कथा में धर्म आचरण की महत्ता दर्शाई गई है।पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार सर्पों की माता ने सर्पों के द्वारा अपना वचन भंग करने की दशा में श्राप दिया कि सारे सर्प जनमेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाएंगे। श्राप से भयभीत होकर कुछ सर्प हिमालय पर्वत पर तपस्या करने चले गए, कंबल नामक एक सर्प ब्रह्माजी की शरण में गया और सर्प शंखचूड़ मणिपुर में गया। इसके साथ ही कालिया नामक सर्प यमुना में रहने चला गया, सर्प धृतराष्ट्र प्रयाग में, सर्प एलापत्रक ब्रह्मलोक में और अन्य सर्प कुरुक्षेत्र में जाकर तप करने लगे।
फिर सर्प एलापत्रक ने ब्रह्माजी से कहा कि ‘प्रभु कृपया कोई उपाय बताएं जिससे हमें माता के श्राप से मुक्ति मिले और हमारा उद्धार हो। तब ब्रह्माजी ने कहा आप महाकाल वन में जाकर महामाया के समीप स्थित देवताओं के स्वामी महादेव के दिव्य लिंग की आराधना करो। तब कर्कोटक नामक सर्प अपनी ही इच्छा से महामाया के पास स्थित दिव्य लिंग के सम्मुख बैठ शिव की स्तुति करने लगा। शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि जो नाग धर्म का आचरण करेंगे उनका विनाश नहीं होगा। तभी से उस लिंग को कर्कोटकेश्वर या फिर प्रचलन के हिसाब से कर्कोटेश्वर के नाम से जाना जाता है।
दर्शन लाभ:
माना जाता है कि श्री कर्कोटेश्वरमहादेव के दर्शन करने से कुल में सर्पों की पीड़ा नहीं होती है और वंश में वृद्धि होती है। यहां बारह मास ही दर्शन का महत्व है लेकिन पंचमी, चतुर्दशी, रविवार और श्रावण मास में दर्शन का विशेष महत्व माना गया है। श्री कर्कोटेश्वरमहादेव उज्जयिनी के प्रसिद्ध श्री हरसिद्धि मंदिर प्रांगण में स्थित है। हरसिद्धि दर्शन करने वाले लगभग सभी भक्तगण श्री कर्कोटेश्वर महादेव की आराधना कर दर्शन लाभ लेते हैं।