संसार की समस्त वस्तुएं नाशवान हैं। यहां तक कि जीव की देह एवं उनके द्वारा किए गए सभी कर्मों का फल भी नश्वर अर्थात नष्ट हो जाने वाला है। मनुष्य के द्वारा किए सत्कर्म एवं दुष्कर्म के फल भुक्त होने पर नष्ट हो जाते हैं। इस नश्वर संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है किन्तु हमारी सनातनी परम्परा में एक दिन ऐसा आता है जब हमारे द्वारा किए कर्म व साधनाएं अक्षय फलदायी हो जाती और सदा-सर्वदा स्थायी हो जाती हैं, यह शुभ दिवस है- अक्षय तृतीया।
अक्षय अर्थात् जिसका कभी क्षय ना हो, अक्षय तृतीया के दिन की गई सभी साधनाएं, दान व सत्कर्म, दुष्कर्म अक्षय होकर सदा-सर्वदा अपना फल प्रदान करते हैं। अत: इस दिन भूलकर भी कोई अशुभ कर्म नहीं करना चाहिए। अक्षय तृतीया का पूरा दिन देव-आराधना, पूजा अर्चना, दान व धार्मिक साधनाएं संपन्न करके व्यतीत करना चाहिए।
अक्षय तृतीया के दिन से ही सतयुग का प्रारंभ हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का प्राक्ट्य हुआ था। अक्षय तृतीया साढ़े तीन स्वयं मुहूर्त में से एक है। वर्तमान युग अर्थप्रधान युग है। आज प्रत्येक व्यक्ति येन-के-प्रकारेण धन पाना चाहता है। धन की प्राप्ति के लिए वह कभी-कभी अनैतिक कर्म तक करने में संकोच नहीं करता जबकि ऐसा करना सर्वथा अनुचित है।
हमारे शास्त्रों में ऐसे कई धनदायक प्रयोग हैं जिनके अक्षय तृतीया के दिन संपन्न करने से आप धनाभाव दूर कर धन की प्राप्त कर सकते हैं। आज हम वेबदुनिया के पाठकों को कुछ ऐसे ही दुर्लभ धनदायक प्रयोगों की जानकारी देगें जिनके अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण श्रद्धाभाव से सम्पन्न करने अर्थाभाव से मुक्ति प्राप्त होकर धनलाभ होता है।
1. अक्षय तृतीया के दिन अपने पूजा स्थान में एकाक्षी नारियल को लाल वस्त्र में बांधकर स्थापित करें। व्यापारीगण एकाक्षी नारियल को लाल वस्त्र में बांधकर अपनी तिजोरी में रखें।
2. अक्षय तृतीया के दिन चांदी की डिब्बी में शहद और नागकेसर भरकर अपनी तिजोरी में रखें।
3. अक्षय तृतीया के दिन गूलर की छोटी जड़ स्वर्ण ताबीज में भरकर अपने गले में धारण करें।
4. अक्षय तृतीया 11 गोमती चक्र को लाल वस्त्र में लपेटकर धन स्थान में रखें।
5. अक्षय तृतीया के दिन लक्ष्मीकारक कौड़ियों को पीले वस्त्र में लपेटकर अपनी तिजोरी में रखें।
6. अक्षय तृतीया के दिन प्रात:काल 3 या 5 गोमती चक्रों का चूर्ण बनाकर अपने घर के मुख्य द्वार के सामने बिखेर दें।
7. अक्षय तृतीया ललिता सहस्त्रनाम व श्रीसूक्त का पाठ कर मां त्रिपुरसुन्दरी एवं माता लक्ष्मी का अर्चन करें।
उपर्युक्त प्रयोगों को पूर्ण श्रद्धाभाव एवं विधि-विधान से संपन्न करने पर अर्थाभाव से मुक्ति प्राप्त होकर धनलाभ की संभावना प्रबल होती है।