सहस्रार्जुन की इहलीला समाप्त कर दी। प्रायश्चित के लिए सभी तीर्थों में तपस्या की। गणेशजी को एकदंत करने वाले भी परशुराम थे। 17 बार क्षत्रियों से विहीन भूलोक को करने वाले भगवान परशुराम ही थे। दानशीलता उनकी ऐसी थी कि समस्त पृथ्वी ही ऋषि कश्यप को दान कर दी। उनके शिष्यत्व का लाभ दानवीर कर्ण ही ले पाए जिसे उन्होंने ब्रह्मास्त्र की दीक्षा दी।
भगवान परशुराम की सेवा-साधना करने वाले भक्त भूमि, धन, ज्ञान, अभीष्ट सिद्धि तथा दारिद्रय से मुक्ति, शत्रु नाश, संतान प्राप्ति, विवाह, वर्षा, वाक् सिद्धि इत्यादि पाते हैं। बालक, मनुष्य, देश-प्रदेश की रक्षा तथा महामारी इत्यादि से रक्षा कर सकते हैं।
परशुराम गायत्री मंत्र इस प्रकार हैं-
1. 'ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।।'
3. 'ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।।' इत्यादि।
जप-ध्यान कर दशांस हवन पायस-घृत से करें तथा जीवन की समस्त समस्याएं दूर करें।