साईबर संसार में राजनीति के निशाने पर युवा

-ऋषि गौतम

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यंग इंडिया को सबसे ज्यादा मोहब्बत अपने स्मार्ट फोन और इंटरनेट से है। यह उसकी पहली जरूरतें हैं। इस जानी हुई हकीकत को हाल में कराए गए एक यूथ सर्वे ने फिर से पक्का किया है। इसके साथ ही यह खबर भी जोड़ लीजिए कि पहली बार स्मार्ट फोन की बिक्री ने फीचर फोन को पीछे छोड़ दिया है। सोशल नेटवर्क आज जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। यह दोस्त तो नहीं है,लेकिन फ्रेंडशिप'का एक नया संसार जरूर है। जो अब राजनीति का भी अड्डा बन गया है। कुछ साल पहले शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह तो एक शुरूआत भर है और एक दिन यह एक नए समानांतर समाज की रचना कर देगा। लेकिन ऐसा हुआ। देखते-देखते कुछ ही दिनों में फेसबुक पर एक नईदुनिया खड़ी हो गई। सोशल नेटवर्किंग ने एक नया समाज गढ़ा है।

अब यह जो माहौल बन रहा है,उसमें नेतागिरी पीछे कैसे रह सकती है,आखिर यह यंग इंडिया की दुनिया जो है। कहने का आशय यह कि सोशल मीडिया ने अब हमारी सोशल लाइफ में ही नहीं,पॉलिटिकल लाइफ में भी हलचल मचा दी है। सोशल मीडिया में यंग इंडिया की जमात को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों ने इसे टॉरगेट करना शुरू कर दिया है। पूरी तैयारी के साथ इस वर्चुअल दुनिया में इन्होंने मोर्चाबंदी भी शुरू कर दी है। आखिर बस एक क्लिक ही तो करना है। एक क्लिक पर ही यहां पसंद नापसंद तय हो जाती है। यहां पूरी दुनिया बस एक क्लिक पर सिमटी है।

भारतीय जनता पार्टी को हमेशा से टेक्नोलॉजी के प्रति सजग पार्टी के रुप में जाना जाता रहा है। जाहिर है कि पार्टी ने इंटरनेट और सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति को चिन्हित भी किया है। पार्टी का अपना आईटी सेल है यानी सूचना प्रौद्योगिकी इकाई जो पार्टी का डिजिटल काम देखती है। फेसबुक पर पार्टी का पन्ना है जिस पर लोखों लोगों ने लाईक किया है। ट्विटर पर भी पार्टी सक्रिय है जहां फॉलोअर्स की संख्या 52 हज़ार से ऊपर है।

पार्टी के कई आला नेता ट्विटर पर सक्रिय हैं। चाहे वो सुषमा स्वराज़ हों या नरेंद्र मोदी। ट्विटर पर पार्टी के राज्यवार हैंडल्स भी हैं। फेसबुक पर पार्टी न केवल विभिन्न मुद्दों पर लोगों की राय आमंत्रित करती है बल्कि पार्टी से जुड़ी जानकारी भी देती है। क्विज़ आयोजित करती है और पार्टी का सदस्य बनने के लिए लोगों को प्रेरित भी करती है। इससे पहले भी पार्टी ने पूर्व में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश जैसे मुद्दों पर फ़ेसबुक पर लाइव चैट्स भी आयोजित किए थे।


इसी तरह देश की सबसे पुरानी,सबसे बड़ी और शायद सबसे हठधर्मी राजनीतिक पार्टी ने हमेशा अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाले दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में 10 सदस्यों वाली संचार और प्रचार समिति कमेटी बनाई है। इनके अलावा इस टीम में मनीष तिवारी, अंबिका सोनी,ज्योतिरादित्य सिंधिया,दीपेंदर हड्डा,राजीव शुक्ल,भक्त चरण दास,आनंद अदकोली,संजय झा और विश्वजीत सिंह शामिल हैं। उनकी भी जंगी योजना तैयार हो चुकी है और अब मैदान में उतरने के लिए आला कमान की ओर से हरी झंडी मिलने का इंतजार किया जा रहा है


आज हालत यह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी जैसे लोगों ने अनपी चुनावी जंग के लिए इसी मैदान को चुना है। आगे भी यह उम्मीद की जा रही है कि 2014 का लोकसभा का चुनाव साइबर संसार में ही लड़ा जाएगा। 2014 के चुनाव को देखते हुए अभी से सभी पाटिर्यों ने एफबी और ट्विटर पर मोर्चाबंदी शुरू कर दी है। देश की हर बड़ी राजनैतिक पार्टी ने टेक्नोलॉजी से लैस एक ऐसी टीम बनाई गई है जिसका काम है इंटरनेट की दुनिया में उसकी ब्रांडिंग करना। आज यह मीडिया किताना सशक्त बनकर उभरा है इसका एक ताजा उदाहरण कुछ दिन पहले ही हमारे सामने आया है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब ट्वीटर पर जाने-माने लेखक चेतन ने गिरते रूपये की तुलना बलात्कार से क्या कि,लोग उनके पीछे पड़ गए।



सूचना क्रांति के सफर पर अगर हम नजर दौड़ाएं तो रेडियो को कुल 73 साल हुए हैं,टीवी को 13 साल और आईपॉड को 3 साल। लेकिन,इन सब मीडिया को पीछे छोड़ते हुए सोशल मीडिया ने अपने चार साल के बहुत कम समय में 60 गुना अधिक रास्ता तय कर लिया है,जितना अभी तक किसी मीडिया ने तय नहीं किया था।

वैसे,इस मीडिया का जन्म आई-टी और इंटरनेट से हुआ है। मुख्य रूप से वेबसाइट,न्यूज पोर्टल,सिटीजन जर्नलिज्म आधारित वेबसाईट,ई-मेल,ब्लॉग,सोशल-नेटवर्किंग वेबसाइटस,जैसे माइ स्पेस,आरकुट,फेसबुक आदि,माइक्रो ब्लॉगिंग साइट टिवटर,ब्लॉग्स,फोरम,चैट सोशल मीडिया का हिस्सा है।

यह एक ऐसा मीडिया है जिसने अमीर,गरीब और मध्यम वर्ग के अंतर को समाप्त किया है। अब हम सिर्फ श्रोता,पाठक या दर्शक नहीं रहे। आज का आम नागरिक एक लेखक,पत्रकार और प्रस्तोता की तरह ही ताकतवर हो गया है। और यह सब किया है,आज की डिजिटल दुनिया ने-सोशल या न्यू मीडिया ने। इससे मुख्यधारा का मीडिया समृद्ध ही हुआ है। उसके सूचना के स्रोत का विस्तार हुआ है। प्राकृतिक आपदा या किसी आपातकालीन परिस्थितियों में सोशल मीडिया से प्राप्त संदेश व सूचनाएं प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सुर्खियां बनी हैं।



इसके अलावा भारत में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के और भी कई उदाहरण हैं। बात चाहे भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की हो,इंटरनेट के सेंशरशिप के खिलाफ असीम त्रिवेदी का प्रदर्शन, गुवाहाटी में महिला के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन हो जिसके कारण सभी 11 अभियुक्त पकड़े गए पश्चिम बंगाल में जाधवपुर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर औऱ उसके पड़ोसी सुब्रतो रॉय की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कार्टून बनाए जाने और सर्कुलेट करने पर गिरफ्तारी पर पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज, अशोक कुमार गांगुली ने स्वत: संज्ञान लेते हुए, अपने आदेश में, दोनों को 50 हजार रुपये का हर्जाना देने और जाधवपुर थाना के ऑफिसर-इन-चार्ज और सब-इंस्पेक्टर जिन्होंने अरेस्ट किया था, ऑफिशियल जांच का आदेश दिया और अंत में, साल के अंत में हमने देखा कि गैंगरेप के विरोध में किस तरह से पूरा देश जल उठा और नए साल में भी इस पर मामला शांत नहीं हुआ है।

इसके अलावा,मुंबई में बाल ठाकरे की मौत पर फेसबुक पर टिप्पणी करने और उसे लाइक करने पर शाहीन और रेणु श्रीवास्तव की गिरफ्तारी से ना सिर्फ महाराष्ट्र सरकार और पुलिस के कामकाज के खिलाफ पूरे देश में आवाज उठी,बल्कि संविधान द्वारा दिए गए‘राइट टू स्पीच’(भाषण की स्वतंत्रता)पर देश भर में एक बहस खड़ी हो गई।



जानिये सोशल मीडिया के उभार की 10 अहम वजहें-

1. जनगणना के मुताबिक पिछले 10 बरसों में शहरी आबादी कुल आबादी का लगभग 32 फीसदी है। इनमें 52 फीसदी मिडिल क्लास है।
2. पूरे विश्व में सबसे तेजी से बढ़ने वाली मिडल क्लास की आबादी चीन और भारत में ही है।

3. देश में 35 फीसदी आबादी 25 साल से कम उम्र के युवाओं की है।

4. पिछले चंद बरसों में चुनाव में वोटिंग फीसदी बेहद तेजी से बढ़ा है। एक्सर्पट्स का मानना है कि मिडल क्लास और युवाओं ने ज्यादा दिलचस्पी दिखाई है।

5. लोकसभा की लगभग 150 ऐसी सीटें हैं,जहां युवा और मिडल क्लास वोटर सीधे तौर पर चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।

6. 2001 से 2011 के बीच देश में 2875 नए शहर बने। शहरी आबादी बढ़ी। आधुनिक टेक्नॉलॉजी और संचार की सुविधाएं बढ़ीं। गांवों की सीटें शहरी सीटों में तब्दील हो गईं।

7. पिछले पांच सालों में मीडिया और सूचना तंत्र का तेजी से विकास हुआ है। इस विकास के असर में 23 फीसदी लोग आए हैं।

8. एक हालिया सर्वे के मुताबिक देश में 163 ऐसी लोकसभा सीटें है, जिन्हें सोशल मीडिया पर मौजूद लोग प्रभावित कर सकते हैं। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 17 सीटें, उत्तर प्रदेश में 14, कर्नाटक में 12 और तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में 11 सीटें इस दायरे में आती हैं।

9. देश में लगभग 25 करोड़ लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं।

10. सोशल मीडिया से निकली सूचना काफी तेजी से हर तरफ फैलती है।




कब- कब हुआ सोशल मीडिया की ताकत का अहसास-

1. 2011 में हुए अन्ना मूवमेंट का पूरा ताना-बाना सोशल मीडिया पर बुना गया। तब देश को पहली बार इसकी ताकत का अहसास हुआ।

2. पिछले साल दिसंबर में हुए दिल्ली गैंगरेप के बाद सोशल मीडिया पर आया लोगों का गुस्सा पहली बार हकीकत की जमीन पर उतरा और सरकार हैरान रह गई।

3. हाल के दिनों में कई शहरी मुद्दे सोशल मीडिया पर उठे, जिससे सरकार को एक्शन के लिए हरकत में आना पड़ा।

4. दूसरी बार ओबामा के राष्ट्रपति बनने में सोशल मीडिया पर चलाए गए उनके चुनावी अभियान को बड़ा क्रेडिट दिया गया। पहली बार कोई चुनावी अभियान पूरी तरह सोशल मीडिया से संचालित हुआ था।

5. पहली बार इजिप्ट आंदोलन के दौरान विश्व राजनीति को हिलाने का दमखम सोशल मीडिया ने दिखाया।


सोशल मीडिया की एजेंडा सेटिंग इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया से मिले ताजा आंकड़ों के मुताबिक,भारत में इस समय 13.7 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं,6.8 करोड़ फेसबुक एकाउंट हैं और 1.8 करोड़ ट्विटर आइडी हैं। कई लोगों के लिए यह सूचना का पहला स्रोत बन चुका है।

एक बात तय है कि सोशल मीडिया का सीधा असर मुख्य धारा के मीडिया पर पड़ रहा है। कई बार इसका प्रभाव इतना अधिक हो जाता है कि यह सामाजिक परिवर्तन का वाहक बन जाता है। राजनीतिक दल भी अब इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। लाइक,ट्वीट,कमेंट,शेयर और टैगिंग के दौर में असल क्या बचेगा। लेकिन यह बातें वोट में तब्दील हो पाएंगी या नहीं यह कहना तो मुश्किल है।







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