नानक ने दिया था हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश

गुरु नानक जयंती पर विशेष

 
सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव ने जीवन भर हिन्दू और मुस्लिम धर्म की एकता का संदेश दिया और यातायात के बेहद कम साधनों वाले उस दौर में भी पूरे भारत ही नहीं आधुनिक इराक के बगदाद और सउदी अरब के मक्का मदीना तक की यात्रा की।

पंजाब के गुरू नानक देव विश्वविद्यालय के गुरु नानक अध्ययन विभाग के पूर्व संकाय अध्यक्ष डॉ. जसवीर सिंह तावर ने बताया कि गुरु नानक ने अपने जीवन काल में पूरे भारत की यात्रा की थी। उनके असम तक जाने का कई बार उल्लेख आता है। साथ ही वे उड़ीसा के पुरी भी गए थे और उन्होंने भगवान जगन्नाथ मंदिर के दर्शन भी किए थे।

डॉ. जसवीर ने बताया कि इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि गुरु नानक मक्का मदीना और बगदाद तक गए थे और उन्होंने कई अरब देशों की यात्रा की थी। मक्का में ही उनके साथ वह प्रसिद्ध घटना हुई जिसमें उनसे किसी ने काबे की तरफ पैर करके नहीं सोने को कहा था। इसके जवाब में गुरु नानक ने यह प्रसिद्ध सवाल किया था कि वह दिशा या जगह बता दो जिसमें खुदा मौजूद न हो।

उन्होंने बताया कि गुरु नानक की यात्राओं का उल्लेख उदासियाँ में मिलता था। उदासियाँ का अर्थ है कि वह उदासीन अवस्था में यात्राओं पर निकल जाते थे। इन यात्राओं के दौरान वह अपने संदेश का प्रचार-प्रसार करते थे और उस दौर के साधु-संतों और फकीरों से मुलाकात करते थे।

 
डॉ. जसवीर कहा कि गुरु नानक सिख संप्रदाय के प्रथम गुरु हैं। साथ ही हिन्दू साधु-संन्यासियों के कई संप्रदाय गुरु नानक की परंपरा से अपने को जोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु नानक की शिक्षाओं का स्वरूप सार्वभौम है इसलिए हर धर्म, पंथ और संप्रदाय का व्यक्ति इससे जुड़ाव महसूस करता है।

गुरू नानक की शिक्षाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह केवल आध्यात्मिक दर्शन न होकर बेहद व्यावहारिक दर्शन है। उनकी शिक्षाओं में मुख्यत: तीन बातें हैं- पहला जप यानी प्रभु स्मरण, दूसरा कीरत यानी अपना काम करना और तीसरा जरूरतमंदों की मदद।

उन्होंने कहा कि गुरु नानक की शिक्षा में सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने हमेशा लोगों को प्रेरित किया कि वह अपना काम करते रहे। आध्यात्मिक व्यक्ति होने का यह अर्थ नहीं है कि व्यक्ति को अपना काम-धंघा छोड़ देना चाहिए।

जसवीर सिंह ने कहा कि गुरु नानक ने हमेशा समाज के निचले तबके के लोगों को सम्मान दिया और उनके लिए काम किया। यह बात इसी से साबित हो जाती है कि उनके पहला साथी मरदाना भाई भी समाज के निचले तबके से थे।


 
गुरु नानक का जन्म आधुनिक पाकिस्तान में लाहौर के पास तलवंडी में 15 अप्रैल 1469 को एक हिन्दू परिवार में हुआ जिसे अब ननकाना साहब कहा जाता है। पूरे देश में गुरु नानक का जन्मदिन प्रकाश दिवस के रूप में कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

बचपन से ही गुरु नानक में आध्यात्मिकता के संकेत दिखाई देने लगे थे। बताते हैं कि उन्होंने बचपन में उपनयन संस्कार के समय किसी हिन्दू आचार्य से जनेऊ पहनने से इंकार किया था। सोलह वर्ष की उम्र में उनका सुखमणि से विवाह हुआ। उनके दो पुत्र श्रीचंद और लक्ष्मीचंद थे। जीवन भर देश-विदेश की यात्रा करने के बाद गुरु नानक अपने जीवन के अंतिम चरण में अपने परिवार के साथ करतापुर बस गए थे। उस दौरान तमाम श्रद्धालु उनसे मिलने और उनसे मार्गदर्शन लेने आते थे। इसी दौरान उनसे मिलने के लिए लैणा नामक एक श्रद्धालु आया।

गुरु नानक से मिलने से पहले लैणा देवी दुर्गा का भक्त था। लेकिन बाद में वह गुरु नानक के मार्ग का अनुयायी बन गया। गुरु नानक ने जब लैणा को पहली बार देखा तो सांकेतिक ढंग में कहा था कि मुझे लैणा का रिण चुकाना है। पंजाबी भाषा में लैणा का अर्थ रिण या लेना होता है।

गुरु नानक ने लैणा की तमाम तरह से परीक्षाएँ ली और हर कसौटी पर खरा उतरने के बाद उन्हें अंगद नाम प्रदान करते हुए अगला गुरु बनाया। गुरु नानक ने 25 सितंबर 1539 में अपना शरीर त्यागा। जनश्रुति है कि नानक के निधन के बाद उनकी अस्थियों की जगह मात्र फूल मिले थे। इन फूलों का हिन्दू और मुसलमान अनुयायियों ने अपनी अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया। (भाषा)

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