अब फैसला जनता के हाथ में

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कहते हैं राजनीति का ऊँट किस करवट बैठता है कुछ कहा नहीं जा सकता। भारत के हृदय मध्यप्रदेश में हमेशा से काँटे की टक्कर में रही भाजपा और कांग्रेस में से कोई एक सत्ता का सुख भोग पाएगी या फिर कोई तीसरा ही दल इनके मुँह का निवाला छिन ले जाएगा, मौजूदा परिवेश में इसका पूर्वानुमान भी करना बहुत मुश्किल है।

लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जहाँ चुनाव के मायने बहुत अलग हैं। कहने को तो चुनाव सत्ता बदल सकता है परंतु आतंकवाद और भ्रष्टाचार के इस माहौल में धीरे-धीरे चुनाव जनता के लिए महज एक औपचारिकता बनते जा रहे हैं। यहाँ चुनाव में सत्ता के लिए नेताओं का धन व ईमान सबकुछ दाँव पर लग जाता है।

हाल ही में आर्थिक मंदी ने जहाँ आम जनता के मुँह से निवाला छीन लिया था वहीं आर्थिक मंदी के साथ अब आतंक के तांडव का असर मतदाताओं के रूझान पर कितना प्रभाव डालता है, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएँगे।

भारत के हृदयस्थल कहे जाने वाले मप्र में 230 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हो चुका है, जिसमें लगभग 3180 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होना है। प्रत्याशियों ने चुनावी समुंदर में पार उतरने के लिए कई बड़े नेताओं को अपनी आमसभाओं में आमंत्रित किया, जिनमें भाजपा के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी, वैंकेया नायडू आदि शामिल हुए तो वहीं कांग्रेस ने सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी आदि का सहारा लिया।

  हाल ही में आर्थिक मंदी ने जहाँ आम जनता के मुँह से निवाला छीन लिया था वहीं आर्थिक मंदी के साथ अब आतंक के तांडव का असर मतदाताओं के रूझान पर कितना प्रभाव डालता है, यह तो चुनाव परिणाम ही बताएँगे।      
* वही पुराने वादे :-
हमेशा की तरह इस बार भी दलगत राजनीति का प्रभाव नेताओं पर स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। एक-दूसरे पर छींटाकशी करने के साथ-साथ नेताओं ने अपने चुनावी मुद्दों में जनता से फिर वही पुराने वादे और विकास का राग अलापा।

इस बार चुनाव प्रचार के ढंग में भी पहले से अधिक परिवर्तन नजर आया। मीडिया के साथ दोस्ताना संबंध कायम कर नेताजी ने जनता को रिझाने की कोशिश की। अब देखना यह है कि विजयी प्रत्याशी जनता के साथ किए वादों को किस हद तक पूरा कर पाता है या फिर हमेशा की तरह जनता के पैसे से अपना घर भरता है?

* सबकुछ लगाया दाँव पर? :-
चुनावी अखाड़े में अपनी किस्मत आजमाने वाले राजनीति के पहलवानों ने चुनावों में विजय का हार पहनने की लालसा में अपना सबकुछ दाँव पर लगा दिया है। चुनाव के मद्देनजर अपने कार्यकताओं व वोटरों को रिझाने के लिए दिल खोलकर उन्होंने अपने खजाने को खोला।

दावतों व सौगातों का जो दौर शुरू हुआ, वह चुनाव के दिन तक बदस्तूर जारी रहा। चुनाव के इस दौर में वोट हासिल करने के लिए रूठों को मनाया गया व परायों को गले भी लगाया गया। इस दरमियान उन घरों के दरवाजों पर भी नेताओं ने दस्तक दी, जहाँ पिछली बार की जीत के बाद वो अब तक पहुँच ही नहीं पाए थे।

अब इंतजार जनता के फैसले का है कि जनता इस चुनाव में स्वीकार करेगी और किसे नकार देगी? क्या इस बार परिवर्तन का आगाज कर पाएगी या योग्य व्यक्ति को सत्ता के सिंहासन पर पहुँचा पाएगी, यह तो वक्त ही बताएगा।

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