हुजूर आपने बहुत देर तो नहीं कर दी...

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कांग्रेस के दिग्गजों की बैठक बुलाकर प्रियंका गांधी ने उन कार्यकर्ताओं की उम्मीदें जरूर बढ़ा दी हैं, जो 128 साल पुरानी इस पार्टी के गौरव के सर्वोत्तम क्षणों को एक बार फिर अपनी आंखों से दीदार करना चाहते हैं।

कांग्रेस के गौरवपूर्ण इतिहास की वापसी की उम्मीद देश के करोड़ों कार्यकर्ताओं को अब भी है। 2004 में सारे पूर्वानुमानों को दरकिनार करते हुए जब सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को जैसे ही अपनी विरासत थमाई, कांग्रेस कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग को निराशा हाथ लगी थी। तब कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कुछ पत्रकारों को अपना प्लान समझाया था। उनका कहना था कि दरअसल मैडम (कांग्रेस में यह शब्द सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी के लिए इस्तेमाल होता है) को अपनी विरासत राहुल को देने के लिए उन्होंने ही समझाया था।

आज वे नेता राहुल गांधी के बेहद नजदीक माने जाते हैं। यह बात और है कि राहुल गांधी के सरकारी आवास 12, तुगलक लेन में जिन नेताओं को प्रियंका ने तलब किया, उनमें उस नेता का नाम नहीं था।

बहरहाल, इस एक कदम से तय हो गया है कि प्रियंका गांधी अपनी राजनीतिक सक्रियता को रायबरेली और अमेठी से बाहर ले जाने की तैयारी कर चुकी हैं। 2014 के महारण में कांग्रेस को पछाड़कर केंद्रीय सत्ता पर काबिज होने का भारतीय जनता पार्टी ने जो सपना देख रखा है, उसे भी अब चिंता होने लगी है।

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आम आदमी पार्टी (आप) के उभार के पहले तक अगर भाजपा को अपने सिंहासनारूढ़ होने की राह में कोई बाधा नजर आती रही है तो वह प्रियंका की आशंकित सक्रियता ही रही है।

आखिर क्या वजह है कि प्रियंका को लेकर भाजपा में हल्की-सी घबराहट नजर आ रही है तो इसकी बड़ी वजह है प्रियंका की अपनी छवि। वे खूबसूरत हैं, युवा हैं, नपा-तुला, लेकिन सधा हुआ बोलती हैं और अमेठी और रायबरेली के आम लोगों के बीच उनका घुलना-मिलना कभी बनावटी नहीं लगा।

रायबरेली के 2004 के चुनाव में अपनी ही पार्टी के कभी दबंग रहे अखिलेशसिंह को अपने बिल से निकल भागने के लिए उन्होंने मजबूर कर दिया था। इस देश में अब भी एक हद तक खूबसूरत और जवान चेहरा भी राजनीति का बेहतर विकल्प माना जाता रहा है।

प्रियंका में इसके साथ एक छवि राजनीतिक ग्लैमर वाली भी है। कुल वोटरों में 62 फीसदी युवाओं वाले देश में ऐसी राष्ट्रीय छवि किसी राजनीतिक दल की कामयाबी की मुकम्मल गारंटी होती है इसलिए लोगों की उम्मीद बढ़ना स्वाभाविक भी है।

लेकिन सवाल यह है कि क्या आज का भारत इसके लिए तैयार है? क्या बदलते दौर का युवा मतदाता अब भी ग्लैमर और सादगी के छौंक वाली वंशानुगत राजनीति के लिए तैयार है?

पिछले विधानसभा चुनावों में दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उभार और राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने जैसी बढ़त हासिल की और कांग्रेस को और कमजोर किया, उससे लगता नहीं कि भारतीय वोटर अब प्रियंका जैसी शख्सियतों पर भरोसा करने के लिए तैयार है।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और इंटरनेट के जरिए लगातार सूचनाओं के प्रति बढ़ती ललक से आज युवाओं की आंखें धीरे-धीरे खुल रही हैं। आज के युवाओं को लगता है कि आखिर अमेरिका और यूरोप के मुकाबले हमारे यहां लोकतंत्र कमजोर क्यों है? हमारे यहां लोगों को इतने भ्रष्टाचार और अभाव में क्यों जीना पड़ता है?

मुश्किलें भी कम नहीं हैं प्रियंका के सामने... पढ़ें अगले पेज पर...


जाहिर है कि इन सवालों के पीछे जो जवाब छुपे हैं और उन जवाबों में जो कारण हैं उसमें एक बड़ा कारण अपने लंबे समय के शासन के चलते कांग्रेस भी है। प्रियंका न सिर्फ उस कांग्रेस के सत्ता केंद्र और प्रथम परिवार की प्रतिनिधि हैं, बल्कि उनके पति रॉबर्ट वाड्रा पर भी इन दिनों जमीन सौदों को लेकर विवाद हो रहे हैं।

उन पर अनाप-शनाप तरीके से गांधी परिवार का दामाद होने के चलते पैसे बनाने का आरोप है। यूं तो दिल्ली के राजनीतिक हलकों में उनके खिलाफ आरोप दबे सुर से लगते थे, लेकिन आम आदमी पार्टी के चलते उनके रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ सवाल उठने लगे हैं।

हरियाणा के एक आईएएस अशोक खेमका को हरियाणा सरकार जिस तरह लगातार परेशान कर रही है, उसका मतलब यही निकाला जा रहा है कि इसकी वजह राबर्ट वाड्रा ही हैं और हरियाणा सरकार अपने आका के दामाद के लिए ईमानदार अफसर को परेशान कर रही है।

जाहिर है कि जैसे ही चुनाव मैदान में प्रियंका अपनी पार्टी की तारणहार के तौर पर उतरेंगी, रॉबर्ट से जुड़े सवाल उनसे भी पूछे जाएंगे और इनका माकूल जवाब भी तलाशने की कोशिश होगी। फिर कांग्रेस के युवराज के राजनीतिक प्रदर्शन और रॉबर्ट वाड्रा पर लगते आरोपों के कोलाज के बीच प्रियंका कांग्रेस के लिए तारणहार बन पाएंगी, कहना मुश्किल ही होगा।

बीआर चोपड़ा ने एक फिल्म बनाई थी 'तवायफ'। उसमें नायक आते-आते देर कर देता है। हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी। यह बात और है कि फिल्म में वह अपनी नायिका को उबार लेता है।

लेकिन क्या प्रियंका कांग्रेस को उबार पाएंगी। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि कांग्रेस का उबर पाना चमत्कार ही माना जाएगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर प्रियंका को लेकर सवाल उठेंगे ही। हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी।
(लेखक टेलीविजन पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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