विकीलीक्स : घर बैठे चर्चित होने की ग्यारंटी

- अंशुमाली रस्तोग
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आखिर कब आएगा वह आदर्श दिन जब विकीलीक्स मुझ पर मेहरबान होगा? मेरा भी कच्चा-चिट्ठा खोलेगा। मुझे सरेआम चर्चित हस्ती बनाएगा। अखबारों में मेरे चर्चे छपेंगे। शहरों में पर्चे बँटेंगे। खबरिया चैनलों पर मेरी तस्वीरें जारी होंगी। मेरे प्रति सरकार की खलबली बढ़ेगी। खुफिया सूत्र ज्यादा सक्रिय होंगे। प्रशासन का ध्यान मुझ पर जाएगा। संसद में नेता मुझ पर बहस करेंगे। बड़े लोग मेरा नाम लेंगे। बुद्धिजीवी मेरे आचरण पर कलमें तोड़ेंगे।

सारे नाते-रिश्तेदारों के बीच मेरी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। नामी-गिरामी घोटालेबाज, भ्रष्टाचारी, काला धन प्रेमी, मोहल्ले के चोर-उचक्कों के बीच मेरा मान-सम्मान बढ़ेगा। अहा! कितना अद्भुत होगा यह सब। एक दफा विकीलीक्स के केबल पर आप आ गए तो समझिए जिंदगी भर कुछ करने की जरूरत ही नहीं। घर बैठे चर्चित होने की सौ फीसदी ग्यारंटी है यहाँ।

बताइए अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश तक विकीलीक्स से भय खाने लगा है। ओबामा ने बहुतेरी कोशिश कर ली। जूलियन असांजे के कारनामों पर ताला ठोंकने की लेकिन नतीजा कुछ हाथ नहीं आया। यह अंदर की बात है। ओबामा को जितना डर कर्नल गद्दाफी से नहीं लगता, उतना जूलियन असांजे की विकीलीक्स से लगता है।

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दरअसल, छोटे-मोटे काम के वास्ते चर्चित या बदनाम होने का उतना लुत्फ नहीं है, जब तक कि काम बहुत बड़ा न हो। अब हमारी संसद में जिस तरह से नोट के बदले वोट का अद्भुत खेल चला, जिसने भी सुना-देखा बस दीवाना-सा हो गया। विपक्ष के पेट में मरोड़ें पड़ने लगीं। जनता हाय राम करने लगी। बुद्धिजीवियों ने पन्नों को रंगना शुरू कर दिया। यहाँ-वहाँ तमाम चर्चाएँ हुईं। बदनामियाँ हुईं। कोसा-कासी भी खूब हुई। पर लुत्फ भी उतना ही आया।

उधर, संसद में नोट उछाले जा रहे थे, इधर टी.वी. चैनलों की टीआरपी उछल रही थी। बड़ा ही मस्त उछला-उछलाई का वक्त था वह। बस, कुछ ज्यादा नहीं। अपने को भी कुछ ऐसी ही जबरदस्त चर्चाएँ मिल जाएँ। नाम और बदनामी मेरे कदमों में होगी। ससुरा दिन-रात कम्प्यूटर पर खटर-पटर करते रहो। इस-उस संपादक की जी-हुजूरी करते रहो। दिमाग पर जोर डाल-डालकर विचारों को उगलवाते रहो। पत्नी से चैं-चैं, मैं-मैं अलग। फिर भी हाथ-पल्ले कुछ नहीं पड़ता।

इससे तो बेहतर है कि विकीलीक्स के केबल के सहारे बदनाम हो जाना।

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