हर मनुष्य की तमन्ना होती है कि वह हमेशा निरोगी रहे, लेकिन इसके विपरीत हमें ख्वाहिश थी कि सिर्फ एक बार छोटी-सी बीमारी हम पर हमला कर दे और हमें पूरे समय बिस्तर पर आराम मिल जाए।
पता नहीं बचपन में माँ ने हमें कौन-सी घुट्टी पिलाई कि कोई बीमारी हमारे पास नहीं फटकती थी। हर साल बरसात के बाद पूरे शहर को डेंगू चढ़ता था, महरी से लगाकर पड़ोस की वर्माइन-शर्माइन तक चार-पाँच दिन ठाठ से बिस्तर पर आराम करती थीं। और हमें एक सभ्य पड़ोसन के नाते सबकी खैरियत पूछने जाना पड़ता था। चाहे ईर्ष्या के कारण हमारे तन-बदन में आग लग रही हो।
किसी को बीमार देखकर हमारी रातों की नींद उड़ जाती और हम सोचा करते कि हमने पिछले जन्म में कौन से अच्छे (बुरे) कर्म किए होंगे कि इतनी तंदुरुस्त काया पाई है। पिछले महीने महरी को बुखार चढ़ा था। अच्छी होकर काम पर आने पर बताया मेरी बीमारी पर मेरे मरद ने भी काम से छु्ट्टी ले रखी थी, मुझे तो बिस्तर से उठने भी न दिया। सुनते ही हम अपनी किस्मत को कोसने लगे।
वैसे एक बात हम स्पष्ट कर देते हैं कि किसी बड़ी बीमारी की हमें लालसा नहीं। इंजेक्शन एवं गोलियों से हमें वैसे भी डर लगता है। हम तो एक छोटी-मोटी बीमारी चाहते हैं, जिससे चार-छः दिन का आराम मिल जाए। घर के लोग हमारे नाज-नखरे उठाएँ। पड़ोसनें आकर कहें- अरे तुमने ये क्या हाल बना रखा है? कुछ लेती क्यों नहीं? कोई कहे- अरे दो दिन के बुखार में कितनी दुबली हो गई हो। चाहे मन ही मन हमारी भारी-भरकम काया देखकर हँस रही होगी।
सच, बड़ी कोफ्त होती है अपनी बोरिंग दिनचर्या देखकर। गृहस्थी की भागदौड़ से भरी सब बातों से परेशान होकर सिर्फ एक अदद छोटी-सी बीमारी चाहते थे। कभी सोचते क्यों न झूठमूठ की बीमारी का बहाना बनाकर चादर तानकर सो जाएँ, लेकिन आगे-पीछे सोचने पर लगता कि चेहरे पर वो भाव नहीं आएँगे। मजा नहीं आएगा बीमार पड़ने का। पकड़े गए तो सचमुच का बीमार होने पर भी कोई पूछने नहीं आएगा।
कैसा सुखद संयोग था कि एक दिन हमारे बदन में सचमुच का दर्द शुरू हो गया। छींकें आने लगीं, सिर दर्द के मारे फटने लगा, लेकिन मन में न जाने क्यों गुदगुदी सी होने लगी। मनोकामना पूरी होती देख हमने ईश्वर को धन्यवाद दिया और कंबल ओढ़कर सो गए। बेसब्री सेपतिदेव व पड़ोसनों का इंतजार होने लगा। शाम को पतिदेव आए और आते ही बड़ी लापरवाही से बोले- बुला लिया न जुकाम को। कोई बात नहीं मैं डॉक्टर से दवाई ले आता हूँ, कल तक ठीक हो जाएगा। अरे हाँ, कुछ खाना बनाया या नहीं। अगर तुमसे नहीं बना हो तो कोई बात नहीं हम लोग बाहर होटल में खा लेंगे।
वैसे भी होटल का खाना खाए बहुत समय हो गया है। कुछ टेस्ट चेंज हो जाएगा। रोज तुम्हारे हाथ का खाना ही खाना पड़ता है। तुम्हारे लिए खिचड़ी बना दी जाएगी। वैसे आज उपवास कर लो तो ज्यादा अच्छा रहेगा, पेट को थोड़ा आराम मिल जाएगा आदि। उधर हमारे बीमार पड़ते ही महरी के यहाँ से खबर आई कि उसके पैर में मोच आ गई है और वह आठ दिन की छुट्टी पर है, सुनकर हमें बड़ा धक्का लगा कि अब हमारे बीमार होने की खबर मोहल्ले में कौन पहुँचाएगा।
तीन दिन हम खिचड़ी खाकर बिस्तर पर लेटे रहे। आँखें दरवाजे पर लगी रहीं। जो पड़ोसनें वक्त-बेवक्त हमारे घर में आकर जम जाती थीं, उन्होंने भी तीन दिन से हमारे घर में नहीं झाँका। शायद उन्होंने सुन रखा हो कि जुकाम छूत का रोग हो। पतिदेव और बच्चे हमारे सामने ही होटल के खाने की चटखारे ले-लेकर तारीफ करते रहे और हम मन मसोसकर करवट फेरकर अनसुना करते रहे।
चौथे दिन हमें लगा कि आज तो खिचड़ी खाना मुश्किल है। उठकर मनपसंद खाना बनाया जाए। जैसे-तैसे हिम्मत करके हम उठे, लेकिन उठते ही जो घर की हालत देखी हमारा सिर घूमने लगा। पूरा बाथरूम गंदे कपड़ों से अटा पड़ा था। रसोई में झूठे कप-प्लेट तथा बर्तन हमारी ओरटुकुर-टुकुर देख रहे थे। जहाँ-तहाँ घर में कचरा पड़ा था, क्योंकि तीन दिन से घर में झाडू नहीं लगी थी। हमारे सिर से बीमार पड़ने का शौक काफूर हो चुका था। हमने सबसे पहले हाथ जोड़कर भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान आज के बाद किसी गृहिणी को बीमार मत करना।