क्योंकि मैं आम आदमी हूं...

मैं आम आदमी हूं।
मेरे लिए हर खास आदमी चिंतित है,
पर मेरी चिंता उसे और खास बना देती है।
मैं वहीं का वहीं रह जाता हूं,
क्योंकि मैं आम आदमी हूं!

सारी योजनाओं का केंद्र मैं हूं,
पर योजनाओं के आम का पेड़,
जब फल देने लगता है,
तब उसका स्वाद खास चखता है।
मेरा मुंह खुला का खुला ही रह जाता है-
क्योंकि मैं आम आदमी हूं।

मेरे लिए किया गया चिंतन
चारों कोने चित्त हो जाता है।
और सृजन गहरी निद्रा में लीन,
पुनि-पुनि हर खास के मुंह से,
बजने लगती है आम आदमी की बीन!
क्योंकि मैं आम आदमी हूं!

आम और खास का अंतर मिटाने की कवायदें जारी हैं,
पर इन पर नीयत भारी है।
ये दिखाती हैं, वो लकदक गलियां, जो भ्रष्टाचारी हैं-
पर, मेरी आत्मा मुझे इनसे गुजरने की इजाजत नहीं देती-
इसलिए कि मैं आम आदमी हूं!

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