कबीट : पेट रोगों का विशेषज्ञ

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आयुर्वेद में कबीट को पेट रोगों का विशेषज्ञ माना गया है। इसका जहाँ शरबत इस्तेमाल किया जाता है, वहीं चटनी भी खूब पसंद की जाती है। दक्षिण भारत से लेकर ठेठ उत्तर तक कबीट का साम्राज्य है। मोटे तौर पर कबीट को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। पहले वर्ग में छोटे आकार के कबीट फल होते हैं जो स्वाद में बहुत खट्टे होते हैं साथ ही गले पर भी असर करते हैं। दूसरे वर्ग में वह कबीट है जो आकार में बड़ा होता है। इसका गूदा खट्टापन लिए मीठा होता है।

आयुर्वेदिक चिकित्सक कबीट के गूदे को तरोताजगी प्रदान करने वाला मानते हैं। कच्चे कबीट में एस्ट्रीजेंट्स होते हैं जो मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद साबित होते हैं। यह डायरिया और डीसेंट्री के मरीजों के इलाज में मुफीद माना जाता है। मसूड़ों तथा गले के रोग भी इससे ठीक होते हैं। बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है।

कबीट के गूदे से बहुत ही उम्दा किस्म की जैली बनाई जाती है जो दिखने के साथ ही गुणवत्ता में ब्लैक करंट या एप्पल जैली की तरह होती है। छोटे कबीट की खट्टी तासीर को चटनी बनाकर उपयोगी बना लिया जाता है। इसमें गुड़ या शकर के साथ जीरा मिर्च और काला नमक भी पीस लिया जाता है। यह अम्ल पित्त में औषधि का काम करती है।

चेतावनी : कमजोर शरीर वालों के लिए कच्चा कबीट पेट दर्द का कारण हो सकता है।

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