स्वामी विवेकानन्द के वचन

* बालकों, दृढ़ बने रहो, मेरी संतानों में से कोई भी कायर न बने। तुम लोगों में जो सबसे अधिक साहसी है सदा उसी का साथ करो। बिना विघ्न-बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता है? समय, धैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है।


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* गंभीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड़ दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है।

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* बच्चों, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरु तथा ईश्वर में विश्वास - यह तीनों वस्तुएं रहेंगी, तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोंदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूं। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो।


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* हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उनका ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं, हम उनका प्रचार भी करते हैं। अत: दूसरों के धर्म का द्वेष कभी न करना।


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* हमेशा सावधान रहना, दूसरे के अत्यंत छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना- इसी भंवर में बडे़-बडे़ जहाज डूब जाते हैं। पूरी भक्ति, परंतु कट्टरता छोड़कर दिखानी होगी, याद रखना ईश्वर की कृपा से सब ठीक हो जाएगा



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