क्या असफल था भारत का पहला परमाणु परीक्षण?

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013 (16:04 IST)
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वॉशिंगटन। अमेरिका द्वारा वर्ष 1996 में किए गए एक गुप्त मूल्यांकन में भारत द्वारा वर्ष 1974 में किए गए पहले परमाणु परीक्षण को करीब-करीब असफल माना गया था लेकिन अमेरिकी दस्तावेज में इस नतीजे तक पहुंचने के पीछे के कारणों के बारे में नहीं बताया गया।

सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम के तहत अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा पुरालेख द्वारा विदेश मंत्रालय से प्राप्त किए गए इन दस्तावेजों को कल सार्वजनिक किया गया।

एनएसए ने कहा कि अमेरिकी खुफिया समुदाय द्वारा किए गए इस मूल्यांकन का कारण 1974 के परमाणु परीक्षण की विस्फोटक शक्ति कम होना हो सकता है।

‘ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा’ के कूट नाम से राजस्थान के पोखरण फायरिंग रेंज में एक थर्मोन्यूक्लियर उपकरण के द्वारा परमाणु परीक्षण किया गया था। हालांकि इस उपकरण की विस्फोटक शक्ति बहस का विषय रही है लेकिन माना जाता है कि इसकी वास्तविक विस्फोटक शक्ति 8 से 12 किलोटन टीनटी थी।

24 जनवरी, 1996 की तारीख वाले खुफिया मूल्यांकन दस्तावेज में कहा गया कि भारतीय वैज्ञानिक समुदाय तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव पर दूसरे परमाणु परीक्षण के लिए जोर दे रहा था।

दस्तावेज में बिना किसी विस्तृत कारण के निष्कर्ष पर पहुंचते हुए कहा गया कि हो सकता है कि 1974 के करीब-करीब असफल परीक्षण के बाद वैज्ञानिक, राव पर भारत के अप्रमाणित परमाणु उपकरण के और परीक्षण के लिए जोर दे रहे हो।

अमेरिकी वैज्ञानिक संघ ने अपनी वेबसाइट पर दावा किया कि हो सकता है कि 18 मई, 1974 को भारत द्वारा किया गया परमाणु परीक्षण आंशिक रूप से ही सफल हो।

एफएएस ने कहा कि अमेरिकी खुफिया समुदाय ने वास्तविक विस्फोटक शक्ति के चार से छह किलोटन के बीच होने का अनुमान लगाया था। परीक्षण से 47 से 75 मीटर के दायरे में दस मीटर गहराई का गड्ढ़ा हो गया था।

विदेश विभाग के 24 जनवरी 1996 के दस्तावेज में कहा गया था कि प्रधानमंत्री राव संभवत: निकट भविष्य में परमाणु परीक्षण करने का आदेश नहीं देंगे जबकि ऐसे संकेत हैं कि पश्चिमी भारत में इस उद्देश्य के लिए स्थल तैयार किया गया है।

दस्तावेज के अनुसार परमाणु परीक्षण करने से हालांकि अप्रैल में उनके फिर से सत्ता में आने की संभावना बढ़ सकती थी लेकिन इसके कारण निश्चित तौर पर भारत पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगता और सरकार के आर्थिक उदारीकरण के कार्यक्रम को झटका लग सकता था।

इसमें कहा गया है कि क्लिंटन प्रशासन को सबसे पहले नवंबर 1995 में पोखरण क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ने की जानकारी मिलीं। इन गतिविधियों में सुरक्षा का दायरा बढ़ाना, अन्य आधारभूत संरचना को उन्नत बनाने और बड़ी मात्रा में कचरा रखना आदि शामिल है।

समझा जाता है कि इस कचरे का इस्तेमाल परीक्षण के लिए तैयार गड्ढे में उपकरण के रखने के बाद उस स्थल को छिपाने के लिए किया जाना था।

गोपनीय दस्तावेज में इस बात का उल्लेख किया गया है कि राव ने क्यों परमाणु परीक्षण नहीं करने का निर्णय किया। परमाणु परीक्षण के बिना भी ऐसे संकेत थे कि राव की चुनावी संभावना बेहतर हो रही थी।

हाल ही में कांग्रेस पार्टी के भीतर और बाहर राव के विरोधियों के भ्रष्टाचार व घोटालों में नाम सामने आ रहे थे जिससे उन्हें रणनीतिक बढ़त मिल रही थी। (भाषा)

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