भारत में क्रिकेट खेल नहीं, उम्मीदों और अवसरों का रूप है

-प्रस्तुति : संदीप तिवारी

FILE
ब्रैडमैन व्याख्यानमाला में मुझे आमंत्रित करने के लिए आपको धन्यवाद। आज रात बोलने के लिए जिस सम्मान और आदर के साथ आमंत्रण दिया गया, उसकी मैं दिल से सराहना करता हूँ। मैं महसूस करता हूँ कि इस व्याख्यानमाला के तहत दस वर्षों में पहले जिन सज्जनों को आमंत्रित किया गया है उनकी बहुत विशिष्ट सूची है। मैं यह भी जानता हूँ कि यह व्याख्यानमाला प्रतिवर्ष एक महान ऑस्ट्रेलियाई और महान क्रिकेटर सर डॉन ब्रैडमैन के जीवन और करियर को कृतज्ञ भाव से याद करने के लिए होती है। मैं समझता हूं कि मुझसे उम्मीद की जाती है कि मैं क्रिकेट और इस खेल से जुड़े मुद्दों पर बोलूं और मैं ऐसा ही करने वाला हूँ।

लेकिन, इन सभी बातों से पहले मुझे कहना चाहिए कि हम जिस आयोजनस्थल पर खुद को पाते हैं उसमें मैं खुद को बहुत ही विनम्र महसूस करता हूँ। हालाँकि यहां कोई न तो पिच नजर आती है, न ही स्टम्स हैं अथवा बल्ले या गेंद हैं, लेकिन फिर भी एक क्रिकेटर के रूप में खुद को आज बड़े पवित्र स्थान पर खड़ा पाता हूं। जब मुझे बताया गया था कि मुझे नेशनल वार मेमोरियल पर भाषण देना होगा, तब मैंने महसूस किया कि क्रिकेट मैचों का वर्णन करने के लिए क्यों अकसर ही और निरर्थक तौर पर उन्हें युद्ध, लड़ाई या मुकाबला बताया जाता है।

हां, यह बात सच है कि हम क्रिकेटर अपने युवा जीवन का एक बड़ा भाग अपने देश के लिए प्रदर्शन करने के लिए तैयारी करते हैं। तैयारी के बाद प्रदर्शन निरंतरता के साथ और अधिकाधिक गहराई से या उससे भी अधिक गहनता से करते हैं। पर यह इमारत उन पुरुष और महिलाओं को पहचानती है जिन्होंने युद्ध, लड़ाई या मुकाबलों को वास्तविक अर्थों में जिया है और अपना सभी कुछ अपने देश को दिया है हालांकि उनके जीवन अधूरे बने रहे और भविष्य की लौ बुझ गई।

हमारे दोनों देशों के लोगों के बारे में अकसर ही कहा जाता है कि क्रिकेट एक ऐसी चीज है जो भारतीयों और ऑस्ट्रेलियाई लोगों को जोड़ती है। वास्तव में, क्रिकेट हमारी सामान्य और समान विशेषता है। एक स्वतंत्र देश के रूप में भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के तीन माह बाद नवंबर 1947 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहली टेस्ट श्रृंखला खेली थी। हालांकि हमारे देशों के इतिहास 1947 से बहुत पहले से और जितना हम सोचते हैं उससे कहीं अधिक गहरे तक जुड़े हुए हैं।

क्रिकेट के अलावा और भी चीज हमें जोड़ती है। एक दूसरे के खिलाफ पहला टेस्ट मैच खेलने से पहले भारत और ऑस्ट्रेलिया के लोगों ने एक ही पक्ष से लड़ाई भी लड़ी थी। गालीपोल्ली में हजारों ऑस्ट्रेलियाई लोगों के साथ ही भारत के 1300 लोगों ने भी अपनी जान गंवाई थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई सैनिक उत्तरी अफ्रीका के अल अलमीन में, सीरिया-लेबनान अभियान के दौरान, बर्मा में और सिंगापुर की लड़ाई में साथ-साथ लड़े हैं। इसलिए प्रतियोगियों से पहले हम साथी अधिक थे।

यह बहुत समुचित है कि इस शाम हम यहां ऑस्ट्रेलियाई युद्ध स्मारक पर हैं, जहां पर क्रिकेटरों और क्रिकेट को सम्मान प्रदर्शित करने के साथ-साथ दोनों देशों के अज्ञात शहीद सैनिकों को भी याद करते हैं। फिर भी यहां एक असमानता है कि मैं ऑस्ट्रेलिया से बाहर का पहला ऐसा भारतीय क्रिकेटर हूं जिसे ब्रैडमैन व्याख्यानमाला में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया है। यह भी इस कारण से नहीं है कि सर डॉन ने लॉर्ड्स पर भोजनकाल से पहले अपना शतक बनाया था और मैंने इस वर्ष लार्ड्स पर शतक बनाने के लिए पूरा एक दिन भी बिता दिया।

लेकिन, कुछ गंभीर होने के साथ कहना चाहूंगा कि सर डॉन ने भारत के खिलाफ केवल पांच टेस्ट मैच खेले। यह वर्ष 1947-48 में पहली भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई श्रृंखला के दौरान की बात है। उनका अपने देश में यह अंतिम सीजन था। उन्होंने भारत में कभी खेला नहीं है, लेकिन इससे बावजूद वे भारत में सर्वाधिक आदरणीय क्रिकेटर हैं। हमें पता है कि उन्होंने मई 1953 में भारत की धरती पर उस समय कदम रखा था, जब वे एक अंग्रेजी समाचार पत्र के लिए एशेज की रिपोर्टिंग करने के लिए इंग्लैंड जा रहे थे। उस समय उनका विमान कलकत्ता हवाई अड्डे पर रुका था।

कहा जाता है कि उस समय उनका स्वागत करने के लिए करीब एक हजार लोगों की भीड़ मौजूद थी। पर जैसा कि आपको पता है कि वे एक बहुत ही एकांतवासी व्यक्ति थे। जब उन्हें इस बात की जानकारी मिली तो वे सेना की जीप में सवार होकर बैरिकेड लगी (अस्थायी तौर पर बाधित) एक इमारत में चले गए। वे इस बात से नाराज थे कि एयरलाइन ने उनकी गोपनीयता संबंधी नियमों का उल्लंघन किया था। बस केवल उस अवसर पर भारतीयों ने ब्रैडमैन को देखा था जो कि ज्यादातर लोगों के लिए एक ऐसे योद्धा थे, जिनके बारे में बहुत सारी काल्पनिक कहानियां हैं।

भारत में क्रिकेट प्रेमियों की एक ऐसी पीढ़ी है जो कि 1930 के दशक में बड़ी हुई और तब भारत ब्रिटिश शासन के अंतर्गत था और तब बैडमैन एक ऐसी क्रिकेटिंग उत्कृष्टता के पर्याय थे जो कि इंग्लैंड से कहीं बाहर मौजूद थी। टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत करने वाले एक देश के लिए उनका होना एक बहुत बड़ी बात थी। उस समय इंग्लैड के खिलाफ उनकी सफलताएं हमें अपनी निजी सफलताएं लगती थीं। वह हम सबके लिए एक ऐसे योद्धा थे जो कि हमारे देशों पर शासन करने वाले एक समान शत्रु के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे। या फिर वे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लोगों द्वारा ब्रिटिश लोगों के लिए प्रयुक्त अपमानजनक शब्द एक पाम (पॉमी या पॉम) थे।

ऐसी दो कहानियां हैं जिन्हें सोचता हूँ जो कि आपके ध्यान में लाई जानी चाहिए। जून 28, 1930 को जिस दिन ब्रैडमैन ने लॉर्ड्स पर इंग्लैंड के खिलाफ 254 रन बनाए थे, उस दिन जवाहरलाल नेहरू को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उस समय नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सर्वाधिक प्रसिद्ध नेताओं में से एक थे जो बाद में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री भी बने थे। इन दोनों घटनाओं के संयोग पर एक युवा केएन प्रभु ने गौर किया था जो कि राष्ट्रवादी, क्रिकेट प्रेमी के साथ-साथ भारत के प्रमुख क्रिकेट लेखक बने।

1930 के दशक में जब नेहरू जेल के अंदर गए और बाहर आए, उस समय ब्रैडमैन अंग्रेजों की गेंदबाजी की खबर ले रहे थे। वे प्रभु के लिए बदला लेने वाले देवदूत बन गए। वर्ष 1933 के एक दिन के बारे में भी मैंने एक और कहानी सुनी है। जब यह खबर भारत में पहुंची कि बैडमैन के टेस्ट मैच में सर्वाधिक रन, 334 रन, का रिकॉर्ड वाली हैमंड ने तोड़ दिया है। हम अपने रिकॉर्ड्‌स को जितना प्यार करते हैं उसी तरह कुछ भारतीय खेलप्रेमियों को ब्रैडमैन के रिकॉर्ड टूटने पर दुख हुआ था। यह भी कहानी है कि कुछ भारतीय खेलप्रेमियों ने रिकॉर्ड के भंग होने के दुख में काली पट्टियां भी पहननी चाही थीं। हमें लगा कि जो रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया का था, वह कुछ हद तक हमारा भी था।

कभी किसी अंग्रेज क्रिकेटर को लेकर ऐसा हुआ हो, हमें कभी नहीं पता चला। कभी काली पट्टियां पहनी गई होंगी, हमें नहीं पता क्योंकि कभी-कभी पत्रकार कहते हैं कि एक अच्छे समाचार के मामले में ऐसे तथ्य बीच में नहीं आना चाहिए। लेकिन ब्रैडमैन से मेरा जुड़ाव ठीक उसी तरह से है जैसा कि ज्यादातर आम भारतीयों के साथ है। इतिहास की पुस्तकें, कुछ पुराने वीडियो फुटेज और उनकी कही गई बातों से। वर्ष 1960-61 के वेस्ट इंडीज के ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले उन्होंने तत्कालीन चयनकर्ता, रिची बेनो से कहा था कि आपने खेल को जिस स्थिति में पाया है, उसे बेहतर हालत में छोड़ें।

उनका मानना था कि क्रिकेट को सकारात्मक रूप में खेलें और खेल की ओर से आम जनता को एक सही संदेश भेजें। वे मानते थे कि खिलाड़ी इस महान खेल के अस्थायी ट्रस्टी हैं, जिसकी उन्हें देखभाल करनी है। हम दोनों (ब्रैडमैन और राहुल द्रविड) के रिकॉर्ड्स में, स्ट्राइक रेट्स में अथवा फील्डिंग में बहुत थोड़ी ही समानता हो सकती है, लेकिन आज मैं एक समानता के बारे में आप सभी को बताना चाहता हूं और वास्तव में मुझे खुशी है कि एक महत्वपूर्ण तथ्य सर डॉन के साथ साझा करता हूं।

मुख्य रूप से वे भी मेरी तरह नंबर तीन के बल्लेबाज थे जो कि बहुत कठिन काम है। हम ऐसे खिलाड़ी रहे हैं जो कि बल्लेबाजी के राजाओं का खेल जीवन सरल बनाते हैं और बल्लेबाजी के मध्य क्रम को मजबूती देते हैं। मेरी तुलना में ब्रैडमैन ने यह काम बहुत अधिक सफलता और विशिष्ट शैली की तरह किया है। उन्होंने गेंदबाजों के आक्रमण की धार कुंद की और दर्शकों को उनकी सीटों पर चिपके रहने के लिए विवश कर दिया। अगर मैं उनकी तरह से लंबे समय तक खेलूं तो ज्यादा संभावना यही है कि लोग बोर होकर सीटों पर ही सो जाएं।

फिर भी यह एक अच्छी बात है कि आपने एक क्रम पर इतने अधिक लंबे समय तक बल्लेबाजी की है जिसके लिए श्रेष्ठता का पैमाना अपने आप में बल्लेबाजी का पैमाना है। मुझे पता है कि अस्सी के दशक में सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेने से पहले उन्होंने सुनील गावसकर की पीढ़ी को ऑस्ट्रेलिया में सीरीज खेलते देखा है।

मुझे याद है कि भारतीय क्रिकेट में उस समय कितना उत्साह भर गया था जब हमने समाचार में सुना कि ब्रैडमैन ने सचिन तेंडुलकर को टीवी पर खेलते देखा और कहा कि वह भी उन्हीं की तरह खेलता है। यह एक महान खिलाड़ी की स्वीकृति नहीं थी वरन एक ऐसी बात थी मानो डॉन ने अंत में अपनी मशाल सचिन को सौंप दी हो। यह मशाल उन्होंने किसी ऑस्ट्रेलियाई अथवा किसी अंग्रेज या वेस्ट इंडियन को नहीं वरन हमारे ही किसी अपने को सौंप दी हो।

ब्रैडमैन ने जो बातें बताई हैं उनमें से एक बात अभी तक मेरे दिमाग में बनी हुई है कि सबसे अच्छे खिलाड़ी के लिए उसकी खेल में कुशलता के साथ कुछेक अन्य गुण भी होने चाहिए-उसे अपना जीवन सम्मान, ईमानदारी, साहस और विनम्रता से चलाना चहिए। जिन बातों पर उन्होंने भरोसा किया वे स्वाभिमान, महात्वाकांक्षा, दृढ़ निश्चय और प्रतियोगी होने के पर्याय हैं। संभव हो तो इन शब्दों को समूची दुनिया के ड्रेसिंग रुम्स में लिख दिया जाना चाहिए।

आप सभी को पता होगा कि डॉन ब्रैडमैन का 25 फरवरी, 2001 को निधन हो गया। इसके दो दिन बाद मुंबई में भारत विरुद्ध ऑस्ट्रेलिया सिरीज शुरू होनी थी। जब क्रिकेट का कोई महत्वपूर्ण खिलाड़ी हमसे सदैव के लिए विदा लेता है तो क्रिकेट का वैश्विक समुदाय मैचों के दौरान कुछ समय का मौन रखा जाता है। इस पर बहस की जाती है कि वह हमारे लिए किस गुण या महानता का प्रतीक था, लेकिन बैडमैन इस मामले में महानता के सर्वोच्च शिखर पर थे।

बैडमैन के निधन के बाद जो सिरीज खेली गई उसे बहुत से लोग क्रिकेट के महानतम मुकाबलों में से एक मानते हैं। मैं विश्वास करता हूँ कि वह एक ऐसी सिरीज थी जिसका आनंद खुद ब्रैडमैन उठाना चाहते। अंतिम टेस्ट के अंतिम दिन के अंतिम सत्र तक गेंद और बल्ले का भीषण संघर्ष देखने को मिला था। मुकाबला एक ऐसी ऑस्ट्रेलियाई टीम से था जो कि अपनी शक्तियों के शिखर पर थी और दूसरी ओर युवा भारतीय टीम थी जो अपने इतिहास के कुछ नए अध्यायों को फिर से लिखने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थी। 2001 की सीरीज में दोनों ओर से ऊंचे दर्जे की क्रिकेट का प्रदर्शन किया गया और इस सिरीज से उन लोगों के करियर पर जबर्दस्त असर पड़ा था, जिन्होंने इसमें भाग लिया था।

नए दशक के पूर्वार्ध में ऑस्ट्रेलिया टीम स्वदेश और विदेशों में लगभग अजेय थी। जब अन्य टीमें इसके सामने लड़खड़ा गई थीं तब भारत एकमात्र ऐसी टीम बनी रही जिसने बराबरी से संघर्ष किया। मुकाबले में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने जो सवाल रखे भारतीय टीम उनका जवाब देती रही और उसने खुद भी विरोधी टीम की परीक्षा ली। इन मुकाबलों के दौरान कभी-कभी दोनों पक्षों में कटुता उभरी तो कभी-कभी खेल का स्तर प्रेरणादायक रहा। भारतीय टीम बढ़ी और ऊंची हुई। व्यक्तियों के तौर पर हमसे अपनी क्षमताओं से कहीं अधिक बढ़कर की मांग की गई और हमने अपनी सीमाओं को बढ़ाया।

अब जब भारत और ऑस्ट्रेलिया टीमों का मुकाबला होता है तो इस बात की संभावना होती है और पूर्वानुमान लगाया जाता है कि दोनों ही टीमों के खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगे। अगले दो महीनों के दौरान बॉर्डर-गावसकर ट्रॉफी के लिए मुकाबला होना है। जब हमने 2007-8 के दौरान ऑस्ट्रेलिया का अंतिम बार दौरा किया था तब ऑस्ट्रेलिया के लोगों ने सोचा होगा कि वे सचिन तेंडुलकर को अपने देश में अंतिम बार खेलता देख रहे हैं। सारे देश में लोगों ने उनको सम्मान दिया। पर हम में से कुछ जंग खाए यंत्रमानवों की तरह फिर से वापस आ गए हैं। इस बार अधिक उम्र के, अधिक बुद्धिमान और उम्मीद करता हूं कि अधिक सुधरे हुए खिलाड़ियों के तौर मौजूद होंगे।

इस बार भी ऑस्ट्रेलिया के खेलप्रेमी सचिन के आउट होने पर उन्हें विदाई देना पसंद करेंगे। लेकिन मैं आपको सचेत करना चाहूँगा कि वे जिस तरह से इन दिनों खेल रहे हैं, उससे इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे खेल से अंतिम विदाई ले लेंगे। पूरी गंभीरता से कहना चाहूँगा कि दुनिया भारत और ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले को देखने के लिए रुकेगी और ध्यान से देखेगी। न्यूजीलैंड के खिलाफ एक सीरीज को बराबर खेलने और 2010 में एशेज मुकाबले में मात खाने के बाद यह पहला मौका होगा जब ऑस्ट्रेलिया को अपनी बादशाहत को चुनौती का सामना करना होगा।

ठीक इसी तरह भारत को इस मौके पर यह सिद्ध करना होगा कि गर्मियों में इंग्लैंड के मुकाबले उसकी हार एक अपवाद थी और हम इससे उबर गए हैं। अगर दोनों टीमें ऑस्ट्रेलिया में अपनी अंतिम और 2007-08 की सिरीज पर फिर से गौर करें तो उन्हें महसूस होगा कि दोनों को ही सिडनी टेस्ट में कुछ बातें थोड़ी बहुत अलग तरीके से करनी चाहिए थीं। पर मैं सोचता हूं कि दोनों टीमें उस स्थिति से काफी आगे जा चुकी हैं। हमने भारत में पहले ही एक दूसरे के खिलाफ दो बार मुकाबला किया है और जहां तक मुझे याद है कि दोनों ही टीमे पहले की तुलना में काफी बेहतर हो चुकी हैं।

आईपीएल का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी ड्रेसिंग रूम्स में भी साथ-साथ रह चुके हैं। भारत में राजस्थान के साथ शेन वाटसन का जुड़ाव, चेन्नई के साथ माइक हसी की भूमिका जैसी कुछेक बातों की लोग बहुत सराहना करते हैं। अब तो शेन वार्न भी भारत को पसंद करने लगे हैं। अंतिम सीजन में मैंने उनके साथ राजस्थान में खेला है और मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अब वे आयातित सेंका हुआ बीन नहीं खा रहे हैं। वास्तव में, अब उन्हें देखकर लगता है कि वे कुछ भी नहीं खा रहे हैं।

अकसर कहा जाता है कि क्रिकेटर अपने देशों के लिए राजदूत होते हैं पर जब कोई मैच जीतना हो तो हम समझते हैं कि यह एक तर्कसंगत मांग नहीं है अगर एक टेस्ट सीरीज का परिणाम पैदल चलने पर निर्भर हो तो ऐसे में राजनयिक क्या करेंगे? पर जैसे जैसे भारत और ऑस्ट्रेलिया के संबंध मजबूत होते गए हैं हमारे देशों के मुकाबले भी अधिकाधिक होने लगे हैं। हम महसूस करते हैं कि भारतीय खिलाड़ियों के तौर पर हम एक विशाल, विविध, अकसर ही अथाह और कभी समाप्त न होने वाले आकर्षक देश का प्रतिनिधित्व करते हैं।

पर, फिलहाल सारी दुनिया में भारतीय क्रिकेट को पैसे और इसकी ताकत के लिए जाना जाता है। यह सही है, लेकिन यह सम्पूर्ण भारतीय क्रिकेट का एक हिस्सा मात्र है और इसकी समूची तस्वीर नहीं है। एक खिलाड़ी और भारतीय क्रिकेट टीम के एक गर्वित तथा विशिष्ट खिलाड़ी के तौर पर मैं आपसे कहना चाहूंगा कि यह एक पक्षीय और लगातार दोहराई जाने वाली घिसी-पिटी तस्वीर है, जो यह नहीं बताती कि भारतीय क्रिकेट असल में क्या है।

मैं आप लोगों को उन कस्बों या गांवों में लेकर नहीं जा सकता जहां से हमारे खिलाड़ी निकलते हैं। इन खिलाड़ियों के परिजनों, अध्यापकों, प्रशिक्षकों, सलाहकारों और टीम के साथियों से आपका परिचय नहीं करा सकता हूं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तक पहचान बनाई है। मैं यहां से आप सभी को उन सैक़डों लोगों का विश्वास, संघर्ष, प्रयास और त्याग नहीं दिखा सकता हूं, जिनसे मिलकर हमारा खेल बनता है। आज मैं यहां आपके सामने खड़ा हूं इसलिए मेरे लिए यह जरूरी है कि मैं आपको भारतीय क्रिकेट और इसके असाधारण होने की कहानी बताऊं।

मैं मानता हूँ कि यह बहुत जरुरी है कि क्रिकेट खेलने वाले देश एक दूसरे को जानने की कोशिश करें, एक दूसरे को समझने का प्रयास करें और जानें कि विभिन्न देशों में क्रिकेट कितनी अलग भूमिका निभाता है क्योंकि अंततः हमारी दुनिया बहुत छोटी है। भारत में क्रिकेट एक सजीव, गूंजता हुआ और चहल-पहल भरा अस्तित्व है जो कि हमारे क्रिकेटिंग इतिहास के किसी भी दौर से अलग एक असाधारण दौर से गुजर रहा है।

इस अंतिम दशक में भारतीय टीम पहले की तुलना में कहीं अधिक विविधता से बनी हुई है। यह ऐसे लोगों की टीम है जिनकी संस्कृति एक दूसरे से बहुत अलग है, जो विभिन्न भाषाएं बोलते हैं, विभिन्न धर्मों के हैं और समाज के अलग-अलग तबकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक बार मैं अपने देश के ड्रेसिंग रूम में गया और मैंने जानना चाहा कि यहां कितनी भाषाएं बोली जाती हैं। इन भाषाओं की संख्या 15 थी और इनमें शोना और अफ्रीकानाज भाषा भी शामिल थी। उल्लेखनीय है कि शोना दक्षिण मध्य अफ्रीकी देशों-जिम्बाब्वे और मोजाम्बीक- के सोथो लोगों की भाषा है, जबकि अफ्रीकानाज डच मूल के दक्षिण अफ्रीका के लोगों की भाषा है।

मैं सोचता हूँ कि ज्यादातर विदेशी कप्तान ऐसी स्थिति को एक हानिकारक स्थिति मानते हों, लेकिन जब मैंने भारतीय टीम का नेतृत्व किया तो ऐसी स्थितियों का भी मजा लिया। मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि विविधता की सीमा बहुत अधिक होने पर भी विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोग कैसे ड्रेसिंग रूम को साझा करते हैं, एक दूसरे को स्वीकार करते हैं, तालमेल बैठाते हैं और विविधता का सम्मान करते हैं। दुनिया में अलग थलग रहने की प्रवृत्ति के बढ़ते जाने के बावजूद यह एक बहुमूल्य योग्यता है जो कि आपके पास जीवन भर रहती है और लोगों को बेहतर तरीके से समझने में मदद करती है। इससे आप दूसरों के महत्व को समझते हैं।

मैं अंडर-19 के दिनों की एक मनोरंजक कहानी आपको बताना चाहूंगा जब भारत की अंडर-19 टीम ने न्यूजीलैंड की जूनियर टीम से मैच खेला था। हमारी टीम में दो गेंदबाज थे जिनमें से एक उत्तर भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश से था और केवल हिंदी बोलना जानता था। आमतौर पर हिंदी भारत में अंग्रेजी से पहले एक सम्पर्क भाषा के तौर पर बोली जाती है। सभी कुछ ठीकठाक था, लेकिन एक बाधा यह थी कि दूसरा लड़का दक्षिण के राज्य केरल से था और राज्य की क्षेत्रीय भाषा मलयालम ही जानता था। अब तक स्थिति पूरी तरह ठीक ही थी क्योंकि दोनों गेंदबाज थे और एक साथ अलग अलग सिरों पर गेंदबाजी कर सकते थे।

लेकिन, एक मैच के दौरान दोनों ही एक साथ क्रीज पर थे। ड्रेसिंग रूम में हमें हंसी आ रही थी और आश्चर्य हो रहा था कि दोनों कैसे पार्टनरशिप करेंगे। कैसे रन बनाने के लिए एक दूसरे को पुकारेंगे या स्ट्राइक साझा कर सकेंगे। दोनों में से एक को भी समझ में नहीं आता था कि दूसरा क्या कह रहा है और इसके बावजूद दोनों बल्लेबाजी कर रहे थे। यह बात केवल भारतीय क्रिकेट में ही संभव हो सकती है। इन सारी बाधाओं के बावजूद इन दोनों ने 100 रनों की साझीदारी की थी। दोनों की भाषा केवल क्रिकेट थी और यह बात भली-भांति काम करती रही।

भारतीय क्रिकेट की दिन प्रतिदिन की सम्पन्नता यहीं निहित है। इसे उन खबरों में नहीं पाया जाता है जो कि आप लाखों डॉलर के सौदों और टेलीविजन प्रसारण अधिकारों के बारे में सुनते हैं। जब मैं भारतीय क्रिकेट में बिताए अपने 25 वर्षों पर निगाह डालता हूँ तो मुझे दो बातें समझ में आती हैं। पहली यह है कि मैं इस खेल का सबसे पुराना खिलाड़ी हूँ। सचिन से भी तीन महीने बड़ा। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समय क्रिकेट वास्तव में हमारे देश की वृद्धि की कहानी है। क्रिकेट हमारे राष्ट्रीय ताने-बाने में कुछ इस तरह गुंथा हुआ है कि देश की अर्थव्यवस्था, समाज और लोकप्रिय संस्कृति के साथ हमारा प्यारा खेल भी जुड़ गया है।

खिलाड़ियों के तौर पर हम भारतीय क्रिकेट की वित्तीय ताकत के प्रशंसनीय लाभों को हासिल करते हैं लेकिन हम इसकी आर्थिक ताकत के पहचान चिन्हों से अधिक हैं। भारतीय क्रिकेट और इसके क्रिकेटरों का शेष दुनिया में अकसर इस बात के लिए मजाक बनाया जाता है कि हम बहुत सिरचढ़े सुपरस्टार हैं। इन्हें बहुत अधिक पैसा मिलता है, बहुत कम काम करना पड़ता है और हमें राज परिवार के लोगों और रॉक स्टार्स के बीच मिलाजुला संस्करण समझा जाता है। हां, पर इसके बावजूद भारतीय टीम को बहुत अधिक लोगों का भावनात्मक समर्थन मिलता है, लेकिन जब हम अपने देश में एक गुट के तौर पर जाते हैं तो हमें भी सुरक्षा की जरूरत होती है।

इसी कारण से हम एक अलिखित कानून के तौर पर हमेशा ही अपने आप को धैर्य और संयम के साथ पेश करते हैं और अपने सारे काम मर्यादा के अंदर करते हैं। इसी तरह दौरों पर हम कभी भी प्रशंसकों पर हमला नहीं करते, न नशीली दवाओं का सेवन करते हैं और शराब पीकर तमाशा भी नहीं करते हैं। भले ही आपने कुछ और सुन रखा हो, अपने देश में भी हम स्विमिंग पूल वाले महलनुमा बंगलों में भी नहीं रहते हैं।

आप लोगों ने सभी बातों पर भारी पैसों के बारे में सुन रखा हो, लेकिन इससे साथ-साथ हमारे क्रिकेट के साथ ऐसी कहानियां भी जुड़ी हैं, जिन्हें बाहरी दुनिया नहीं देख पाती है। भारतीय क्रिकेट को प्रसारण अधिकारों से मिलने वाली मोटी रकम के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है, लेकिन मैं आपको बताता हूं कि इन अति वांछित अधिकारों के चलते हमारा खेल कितना फला-फूला है। एक जमाने में यह खेल मुख्य रूप से राज परिवार के लोगों और सम्पन्न कारोबारियों द्वारा परम्परागत शहरी क्षेत्रों में खेला जाता था और संरक्षित किया जाता था। तब यह बॉम्बे, बेंगलुरु, चेन्नई, बडौदा, हैदराबाद और दिल्ली जैसे शहरों तक सीमित था, लेकिन अब सभी स्थानों से क्रिकेटर सामने आने लगे हैं।

पिछले दो दशकों के दौरान भारतीय क्रिकेट की आय मुख्य रूप से टेलीविजन के कारण बढ़ी है, बीसीसीआई ने इसे देश के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचाया है और जहां हम खेलते हैं उन स्थानों की सूरत बदली है। पहले की तुलना में इसका दायरा बहुत अधिक बढ़ गया है और भारतीय क्रिकेट ने अपना रुख शहरी क्षेत्रों से गाँव और कस्बों की ओर किया है। हमारी राष्ट्रीय चैम्पियनशिप रणजी ट्रॉफी में 27 टीमें भाग लेती हैं। पिछले वर्ष राजस्थान ने इस प्रतियोगिता को अपने इतिहास में पहली बार जीता है। हालांकि राजस्थान को अपने महलों, किलों और पर्यटन आधारित आकर्षणों के लिए जाना जाता है। राष्ट्रीय वनडे चैम्पियनशिप भी पहली बार के विजेता और नव‍गठित राज्य झारखंड ने जीती। झारखंड वह राज्य है जहां से हमारे कप्तान एमएम धोनी आते हैं।

टेलीविजन पर क्रिकेट की बढ़ोतरी और प्रसार ने खेल से जुड़ी जनसंख्या को बढ़ाने का काम किया है। जैसे कि बैडमैन को बोरॉल के लड़के के तौर जाना जाता है, ठीक उसी तरह भारतीय क्रिकेटरों की एक बड़ी संख्या उन क्षेत्रों से आती है जिन्हें आप भारत के ग्रामीण और कम आबादी वाले इलाके कह सकते हैं।

जहीर खान महाराष्ट्र के मध्य भाग के ऐसे कस्बे से आए हैं, जहां एक भी ढंग की टर्फ विकेट नहीं थी। वे पढ़ाई करके एक इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर बन सकते थे, लेकिन उन्होंने टीवी पर क्रिकेट देखकर खेला और वे अपने घर की आलमारी में लगे शीशे में देखकर गेंदबाजी का अभ्यास करते थे। जब उन्होंने एक क्रिकेट बॉल के साथ अभ्यास किया तब उनकी उम्र 17 वर्ष की थी।

इसी तरह गुजरात के एक गांव का लड़का एकाएक सबके सामने आया और भारत का सबसे तेज गेंदबाज बन गया। मुनाफ पटेल के भारत की ओर से खेलने के बाद ही उनके गांव की समीपवर्ती रेलवे स्टेशन की सड़क सुधर सकी क्योंकि तब वहां शहरों के पत्रकार और टीवी चैनलों के लिए काम करने वाले लोग वहां पहुंचने लगे थे।

हमें खुशी है कि उमेश यादव अपनी योजना के अनुसार एक पुलिसकर्मी नहीं बना और क्रिकेट से जुड़ गया। टेस्ट खेलने वाला यह लड़का महाराष्ट्र के विदर्भ की प्रथम श्रेणी टीम से खेलने वाला पहला क्रिकेटर है। आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वीरेन्द्र सहवाग दिल्ली के बाहर पश्चिमी इलाके के एक कस्बे नजफगढ़ से हैं। एक अच्छे क्रिकेट प्रोग्राम में भाग लेने के लिए उन्हें एक कॉलेज में दाखिला लेना पड़ा था। मैच खेलने और प्रैक्टिस करने के लिए उन्हें बस से प्रतिदिन 84 किमी की यात्रा करनी पड़ती थी। इस कमरे में भारतीय टीम का ब्लेजर पहने जितने भी खिलाड़ी हैं, उनमें से प्रत्येक की ऐसी ही कहानी है।

देवियो और सज्जनो, यही भारतीय क्रिकेट की प्रचुर ऊर्जा और उत्साह का स्रोत है। भारत के लिए खेलने से हमारा जीवन पूरी तरह बदल जाता है। इस खेल ने हमें उन सभी लोगों का कर्ज उतारने का मौका दिया है जिन्होंने हमें बेहतर क्रिकेटर बनाने के लिए अपना समय, ऊर्जा और संसाधन लगाए।

हम अपने माता-पिता के लिए नया घर बनवा सकते हैं, अपने भाई-बहिनों का अच्छी तरह से विवाह कर सकते हैं और अपने परिवारों को एक बहुत ही आरामदायक जीवन दे सकते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम वास्तव में अपने बहुत छोटे रूप में एक भारत ही है। एक खेल जो पहले राजा-महाराजाओं द्वारा खेला जाता था, बाद में जिसे उनके अधीनस्थों और शहरी लोगों ने खेला पर अब पूरा भारतवर्ष इसे खेलता है। दो अंडर 19 टीमों के मेरे साथियों ने जो बात साबित की है कि भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा क्रिकेट है।

भारतीय सिनेमा के अपने अपने क्षेत्रीय सितारे हैं। दक्षिण का फिल्मी सितारा उत्तर भारत में लोकप्रिय नहीं हो सकता है, लेकिन क्रिकेट के चाहने वाले और प्रशंसक सभी जगहों पर होते हैं। हालाँकि इसमें आगे बढ़ने के लिए एक कठोर वातावरण का सामना करना पड़ता है। आपकी कटु आलोचना भी की जाती है। जीतने पर आपको अत्यधिक प्रशंसा और हारने पर अत्यधिक आलोचना। आपकी निजता का भी हनन होता है और हारने के बाद कुछ अवसरों पर आपके घरों पर पत्थर भी फेंके जाते हैं।

इन सबका आदी होने में समय लगता है क्योंकि अत्यधिक प्रतिक्रिया हमें भी गुस्से से भर देती है। लेकिन प्रत्येक क्रिकेटर अपने करियर में एक समय पर महसूस करता है कि एक भारतीय क्रिकेटप्रेमी को कुछेक लोगों के काम से नहीं वरन ज्यादातर लोगों की भावनाओं को सबसे अच्छी तरह से समझा जाता है। एक खिलाड़ी के रूप में जिस एक बात ने मुझको सदैव ही ऊंचा उठने में मदद की है वह है टीम की बस से बाहर देखना। हमने भारत में जहां कहीं भी यात्रा की है, लोगों ने खिलाड़ियों की बस को जाते हुए गौर से देखा। वे देखते हैं कि हममें कुछ लोग अपने पर्दे पीछे किए हुए बैठे हैं।

हमेशा ही मुझे आश्चर्य होता है कि हमें देखकर वे कितनी प्रसन्नता से खिल उठते हैं। वे मुस्कराते हैं तो किसी खिलाड़ी को देखकर नहीं बल्कि उन्हें हमारा खेल देखकर खुशी होती है। इसका कोई भी कारण हो, लेकिन यह बात लोगों के जीवन में कुछ न कुछ अर्थ जरूर रखती है। आप हारें या जीतें, आम आदमी मुस्कराएगा और आपका ध्यान आकृष्ट करने के लिए हाथ हिलाएगा।

इस वर्ष जब भारत ने विश्वकप जीता तो लोगों ने हमारे खिलाड़ियों को उतनी बधाइयां नहीं दीं जिनका कि धन्यवाद दिया और कहा कि 'आपने हमें सब कुछ दे दिया। हम सभी जीते हैं।' इसलिए भारत में क्रिकेट एक खेल नहीं वरन संभावनाओं, उम्मीदों और अवसरों का रूप है। हमारे सफर में हम टीम के बहुत सारे खिलाड़ियों के बारे में जानते हैं जो कि यहां बैठे हैं पर उनकी तुलना में बराबरी के या बेहतर प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं जो कि यहां नहीं आ सके हैं।

एक युवा भारतीय के तौर पर जब मैंने शुरुआत की थी तब क्रिकेट पूरी तरह से जुआ था। या तो आपको सब कुछ मिल सकता था या कुछ भी नहीं। आपकी सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं होता था। पर आज भारतीय क्रिकेट की सम्पदा का अर्थ है कि प्रथम श्रेणी के स्तर के क्रिकेटरों की बहुत बड़ी संख्या है, जिन्हें अच्छा भुगतान किया जाता है। पर हममें जो लोग भारतीय टीम में आ जाते हैं, उनके लिए खेल रोजी-रोटी का जरिया नहीं बल्कि हमें दी गई एक ऐसी भेंट है, जो कि बहुत अर्थवान है। बिना खेल के हम लोग भी साधारण आदमी होते और साधारण जीवन बिताते। भारतीय क्रिकेटरों के रूप में हमारे खेलने से हमें अपना जीवन सार्थक बनाने का मौका मिला है और यह बात कितने लोग कह सकते हैं।

यह समय है जब भारतीय क्रिकेट को फलना-फूलना चाहिए। छोटी अवधि के खेल में हम विश्व चैम्पियन हैं और आगामी बारह महीनों के दौरान हमें ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड से मुकाबला करना होगा ताकि तय हो सके कि विश्व की सबसे मजबूत टेस्ट टीम कौन सी है। इसके साथ ही, मैं यह भी अनुभव करता हूँ कि इस समय हमें अपने खेल का न केवल भारत में वरन सारी दुनिया में आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। हमें कुछ चेतावनियाँ भी दी गई हैं और इनका तुरंत जवाब देना चुस्ती-फुर्ती भरा कदम हो सकता है। लेकिन कुछेक महीनों पहले भारत से जुड़ी एक एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सिरीज के दौरान बहुत कम लोगों की मौजूदगी से मुझे आश्चर्य हुआ। इसका यह अर्थ नहीं है कि मैदान पर दर्शकों की संख्या इसकी पूरी क्षमता के अनुरूप नहीं थी। पर मैं सोचता हूँ कि खाली स्टैंड्स देखकर मुझे कुछ चेतावनी-सा आभास हुआ।

भारत ने अपना पहला एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय (ओडीआई) मैच अपने घर में नवंबर, 1981 में खेला था और उस समय मैं नौ वर्ष का था। तब से लेकर अब तक भारत अपने देश में 227 ओडीआई खेल चुका है। इंग्लैंड के खिलाफ अक्टूबर में पांच मैचों की श्रृंखला के दौरान पहली बार देखा गया जब भारत से जुड़े ओडीआई के दौरान भी मैदान पूरी तरह नहीं भरे थे। 1998 की गर्मियों में मैंने कोलकाता में केन्या के खिलाफ एक दिवसीय मैच खेला था और ईडन गार्डन्स पूरी तरह भरा था। हमारा अगला मुकाबला ग्वालियर में 48 डिग्री की गर्मी में खेला गया था, लेकिन तब भी स्टैंड्स पूरी तरह भरे थे।

भारत की विश्वकप जीत के बाद घरेलू मैदानों पर इंग्लैंड के खिलाफ अक्टूबर में पहली सिरीज खेली गई थी जिसे रिवेंज (बदला लेने वाली) सिरीज का नाम दिया गया क्योंकि इंग्लैंड दौरे पर भूल जाने योग्य प्रदर्शन को भुलाने का लक्ष्य था। भारत ने मैच दर मैच जीता, लेकिन तब भी स्टैंड्स पूरे नहीं भरे थे। 5-0 से जीत के बाद भारत की पहली फार्मूला वन रेस देखने के लिए 95 हजार लोग उमड़ पड़े थे। कुछेक सप्ताहों के बाद मैंने कोलकाता में वेस्टइंडीज टीम के खिलाफ एक टेस्ट मैच खेला तब भी ईडन गार्ड्‌न्स के इतिहास में सबसे कम दर्शक मौजूद थे। तब भी हमने मैच जीतना चाहा और हमारे उत्साह में कोई कमी नहीं आई थी। आखिरकार हम भी प्रदर्शन करने और दर्शकों का मनोरंजन करने वाले लोग हैं और हमें भी बड़ी संख्या में दर्शकों से लगाव है।

आप जो कुछ कर रहे हैं, भीड़ उसका उत्साहवर्धन करती है। जितनी ज्यादा भीड़ होती है, उतना ही बड़ा अवसर होता है और उतना ही बड़ा महत्व होता है और उतना ही अधिक जज्बा होता है। इस वर्ष जब मैं ईडन गार्डन्स पर होने वाली भीड़ के बारे में सोचता हूँ तो मुझे आश्चर्य होता है कि अगर दर्शकों में 50 हजार कम दर्शक हमें देख रहे होते तब 2001 के टेस्ट मैच को लेकर हम कैसा अनुभव करते। हाल ही में, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के बीच एक रोमांचक और उत्तेजनापूर्ण टेस्ट श्रंखला खेली गई और दो बड़े टेस्ट मैचों के दौरान दोनों ही टीमों के खिलाड़ियों ने आश्चर्यजनक प्रदर्शन किया, लेकिन दुख की बात है कि इन्हें देखने वाले बहुत कम दर्शक थे।

टेस्ट मैच खेलने वाले खिलाड़ियो को ज्यादा मैचौं की जरूरत नहीं होती है वरन महत्वपूर्ण टेस्ट का माहौल होता है जिसका प्रत्येक खिलाड़ी आनंद लेना चाहता है और इसी से उसे ऊर्जा भी मिलती है। क्रिकेट के घटते दर्शकों पर मेरी पहली प्रतिक्रिया यही थी कि बहुत अधिक क्रिकेट खेला जा रहा है और इस कारण से भी संभवतः दर्शकों की संख्या में कमी आई है। यह एक बहुत हद तक एकपक्षीय विचार हो सकता है। ऐसा कहना सरल बात है लेकिन यही अकेला कारण नहीं हो सकता है।

भारत और इंग्लैंड के बीच ओडीआई सिरीज का कोई औचित्य नहीं था क्योंकि दोनों देश पहले ही चार टेस्ट मैच खेल चुके थे और कुछेक सप्ताहों पहले ही पांच ओडीआई खेल चुके थे। एक महीने बाद जब भारत और वेस्टइंडीज ने ओडीआई खेले तब मैदान पूरी तरह से भरे हुए थे और इस बार मैच छोटे स्थानों पर खेले गए थे जिन पर बहुत अधिक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेला गया था। संभव है कि इन बातों में कुछ संकेत छिपे हो सकते हैं और हमें सतर्क रहना चाहिए।

ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड से अलग भारतीय क्रिकेट को अपनी आय के लिए अन्य खेलों से स्पर्धा नहीं करनी पड़ती है। उसके अंतरराष्ट्रीय मैचों के लिए लोगों के व्यवहार को प्रभावित करने या भीड़ की उपस्थिति को लेकर माथापच्ची नहीं करनी पड़ती है।

भीड़ की कमी से भले ही खेल को होने वाली आमदनी पर असर न पड़े अथवा यह भी निर्धारित नहीं होता हो कि खेल लोगों के लिए कितना महत्वपूर्ण है, लेकिन हमें यह बात स्वीकार करनी पड़ेगी कि पिछले दो वर्षों के दौरान खेल को लेकर जोशोखरोश में कमी आई है। कारण कुछ भी हो-संभव है कि बहुत अधिक क्रिकेट खेला जा रहा हो या दर्शकों को इससे पर्याप्त मनोरंजन न मिल पा रहा हो-खेल प्रेमियों ने हमें संदेश दिया है और हमें इसे सुनना चाहिए।

यह कोरी भावनात्मक बात नहीं है क्योंकि खाली स्टैंड्स टेलीविजन की सेहत के लिए अच्छे नहीं होते हैं। इससे टेलिविजन की रेटिंग प्रभावित होती है और यह बात मीडिया प्लानर्स की नजर में आती है जिसका परिणाम यह होता है कि विज्ञापनदाता दूसरे स्थान पर जाने लगते हैं। अगर ऐसा होता है तो पिछले पंद्रह वर्षों में क्रिकेट के प्रसारण अधिकारों को हासिल करने को लेकर जितनी मांग रही है, वह भी नहीं रहेगी। इससे खेल से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को क्या नुकसान हो सकता है? मैं कोई अर्थशास्त्री या विनाश की भविष्यवाणी नहीं कर रहा हूं। यह तो मैं जैसी स्थिति देखता हूं उसकी जानकारी दे रहा हूं।

मेरा मानना है कि हम वर्तमान में जैसी स्थिति में हैं, उससे संतुष्ट होने की जरूरत नहीं है। जो सौदे और आय हाथ में है, उसे लेकर हमारी दृष्टि को सीमित न बनाएं। जिस प्रत्येक चीज ने क्रिकेट को ताकत दी है और खेलों की दुनिया में इसका प्रभाव बढ़ाया है, वह स्टेडियम में मौजूद दर्शक से शुरू हुई है। उन्हें हमारा सम्मान मिलना चाहिए और हमें उनका सही मूल्य पहचानना चाहिए। खेलप्रेमियों का अनादर खेल का अनादर करना है। खेल के हर दौर में खेलप्रेमियों ने हमारा साथ दिया है। जब हम खेलते हैं तो हमें उनके बारे में सोचने की जरूरत है। खिलाड़ियों के तौर पर प्रतियोगिता और निष्पक्षता के बीच संतुलन बनाना कठिन हो सकता है लेकिन इसे बनाया जाना ही चाहिए।

अगर हम खेल के बुनियादी शिष्टाचारों का पालन करते हैं तो इसके बड़े खतरों का सामना करने में अधिक सरलता होगी। ये खतरा आसान तरीकों से पैसा कमाने का हो या फिर स्पॉट फिक्सिंग की महामारी से प्रभावित होना हो और सट्टेबाजी से किसी प्रकार जुड़े होने के बारे में सोचना हो। क्रिकेट की वित्तीय सफलता का अर्थ है कि इसे खेल के बाहर से खतरों का सामना करना होगा और इसे इनका निरंतर सामना करते रहना होगा। पिछले दो दशकों के दौरान यह बातें बार बार सच साबित हुई हैं। इंटरनेट और आधुनिक टेक्नोलॉजी खेल में बनाए गए प्रत्येक भ्रष्टाचार रोधी उपाय से आगे हों लेकिन खिलाड़ियों के तौर पर खेल से आगे बने रहने का एक तरीका यह हो सकता है कि हम करीबी नियंत्रण और नियमन को मानने के लिए अपने आप ही तैयार हों।

हालांकि इसका अर्थ है कि अगर हमें अपनी निजता और गतिविधियों की स्वतंत्रता का थोड़ा त्याग करना पड़े तो हम करें। अगर इसका अर्थ हो कि हम डोप टेस्ट का सामना करें, तब भी हमें कभी भी ना नहीं कहना चाहिए। अगर इसका अर्थ लाई डिटेक्टर टेस्ट से गुजरना हो तो हम इसकी तकनीक को समझें और जानें कि यह किस काम में आती है और इसे स्वीकार करें। हालांकि अब लाई डिटेक्टर्स परीक्षण भी पूरी तरह परिपूर्ण नहीं है, लेकिन इससे निर्दोष लोगों को अपने को बेदाग साबित करने का मौका मिलेगा।

इसी तरह अगर हमारी वित्तीय जानकारियों के परीक्षण की जरूरत हो तो हमें इस पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए। जब सबसे पहले भ्रष्टाचार निरोधक उपाय अपनाए गए थे तब हमने मान्यताप्राप्त होने और अपने सेलफोन मैनेजर के पास जमा करने पर तनिक भी नाराजगी जाहिर नहीं की। हमें इसे इस तरह लेना चाहिए जैसाकि हम हवाई अड्डों पर सुरक्षा व्यवस्था में सहयोग करते हैं क्योंकि हमें पता होता है कि यह हमारे अपने भले के लिए और सुरक्षा के लिए जरूरी है। जिस खेल ने हमें इतना अधिक दिया है उसकी खातिर खिलाड़ियों को थोड़े से निजी स्थान और आराम को छोड़ने के लिए तैयार होना चाहिए। अगर आपके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है तो आपको डरने की भी जरूरत नहीं है।

अन्य खेलों ने क्रिकेट के भ्रष्टाचार रोधी उपायों से सीख लेकर अपने आचार संबंधी कार्यक्रम बनाए हैं और हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे खेल से जुड़े हैं जोकि पेशेवर और प्रगतिशील है। मैं मानता हूँ कि आज खेल के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक-खेल के तीनों फॉर्मेट्स के लिए-स्पष्ट कार्यक्रम तय किया जाना है। अब हम महसूस करते हैं कि खेल के तीनों फॉर्मेट्स में बराबरी से नहीं खेला जा सकता है। ऐसा होने पर कार्यक्रमों और खिलाड़ियों के वास्तविक विकास के उपाय पूरी तरह से गड़बड़ा जाएंगे। तीनों तरह के फॉर्मेट्स में सभी के लिए स्थान है हालांकि हमारा ही खेल ऐसा है तो तीन तरीकों से खेला जा सकता है।

क्रिकेट को अपनी इस मौलिकता को सहेजकर रखना चाहिए। तीन प्रकार के खेलों में अलग-अलग प्रकार की कुशलताओं की जरूरत होती है। यह वे कुशलताओं हैं जो कि पिछले चार दशकों के दौरान पैदा हुईं, विकसित हुईं और एक दूसरे पर असर डालते हुए बदली हैं। टेस्ट क्रिकेट एक स्वर्णिम पैमाना है और यह ऐसा प्रकार है, जिसे खिलाड़ी खेलना चाहता है। पचास ओवर का खेल एक ऐसा प्रकार है जिसने तीन दशक से अधिक समय तक क्रिकेट की आय को जीवित रखा है। हमारे सामने 20-20 का फॉर्मेट आया है, जिसे दर्शक देखना पसंद करते हैं।

क्रिकेट को बीच का एक रास्ता निकालना होगा और इसे विचारहीन हिंडोले जैसी स्थिति से उबरना होगा जिसमें आज टीमें और खिलाड़ी खुद को फंसा पाते हैं। दो टेस्ट मैचों के दौरे में सात ओडीआई मैचों की श्रंखला हो जिसमें कुछेक 20-20 मैच भी हों। टेस्ट क्रिकेट को बचाए जाने की जरूरत है और यही तरीका है जिससे विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीम का फैसला होगा। मैं इसका प्रबल समर्थक हूं और मानता हूं कि सबसे पहले क्रिकेट में लोगों को एक देश के विरुद्ध दूसरे देश के मुकाबले ने ज्यादा उत्सुकता जगाई है। जब मैं यह समाचार सुनता हूं कि एक देश की टीम अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के बगैर खेल रही है तो मुझे आश्चर्य होता है कि उन खिलाड़ियों के प्रशंसक क्या सोचते होंगे।

लोग टेस्ट क्रिकेट देखने को उत्सुक नहीं हों, लेकिन सभी को स्कोर जानने की उत्सुकता जरूर होती है। टेस्ट मैचों में हम 65 हजार लोगों की क्षमता वाले स्टेडियमों को पूरी तरह भर न सकें, लेकिन हमें सक्रियतापूर्वक अधिक से अधिक दर्शकों को स्टेडियम के अंदर पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए। टेस्ट मैच के लिए एक वातावरण बनाने की कोशिश करनी चाहिए ताकि खिलाड़ियों और खेलप्रेमियों को उनकी खुराक मिल सके। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि टेस्ट मैच खाली स्टेडियमों में न खेले जाएं। इसके लिए हमें ऐसा टेस्ट क्रिकेट खेलना होगा, जिसे लोग देख सकते हों।

मैं नहीं सोचता हूं कि दिन-रात के टेस्ट अथवा टेस्ट चैम्पियनशिप को नकार दिया जाना चाहिए। पिछले वर्ष मार्च में मैंने एमसीसी के लिए अबू धाबी में दिन-रात का प्रथम श्रेणी का मैच खेला और इससे मुझे अनुभव हुआ कि हमें दिन-रात के टेस्ट के विचार को गंभीरतापूर्वक जांचने जाँचने की जरूरत है। जहां कहीं भी ओस होती है वहां कुछ चुनौतियां हो सकती हैं, लेकिन गुलाबी रंग की गेंद की दृश्यता और टिकाउपन को लेकर कोई मुद्दा नहीं है। ठीक इसी तरह से एक टेस्ट चैम्पियनशिप हो जिसे जीतने को लेकर प्रत्येक टीम और खिलाड़ी का प्रयास करें। ऐसा लगता है कि यह प्रत्येक फार्मेट के मामले में महत्वपूर्ण होगा।

टेस्ट मैचों को बनाए रखना विभिन्न देशों के लिए विभिन्न तरह से नई बात होगी। संभव हो तो इसे छोटे शहरों में ले जाएं और ऐसे मैदानों पर खेले जाएं जिनकी क्षमता कम हो। न्यूजीलैड ने ऐसा कुछ करने के बारे में सोचा है। संभव हो तो वेस्ट इंडीज के कुछ पुराने खेल मैदानों को नया जीवन दिया जाए जैसे कि एंटीगा का ओल्ड रिक्रिएशन ग्राउंड को नया बना लिया जाए। जब मैं करीब सात वर्ष का था, उस समय मेरे पिताजी शुक्रवार की छुट्टी ले लेते थे ताकि हम टेस्ट क्रिकेट का लगातार तीन दिन खेल देख सकें। जिन अवसरों पर वे नहीं जा पाते थे तब मैं उनके एक मित्र के साथ जाता था ताकि एक ही दिन का टेस्ट क्रिकेट देख सकूं।

हमें यह तरीका सुनिश्चित करना पड़ेगा कि टेस्ट मैच इक्कीसवीं सदी के जीवन में फिट बैठ सकें और इसके लिए समय सीमा, वातावरण और मैदानों को भी उपयुक्त बनाया जाए। मैं इस बात पर भरोसा करता हूं कि क्षणिक तौर पर ध्यान आकर्षित करने वाली तेज रफ्तार दुनिया में भी यह सब किया जा सकता है। हमसे अकसर कहा जाता है कि टेस्ट मैच आर्थिक दृष्टि से घाटे का सौदा साबित होता है, लेकिन कभी किसी ने टेस्ट क्रिकेट को इसलिए नहीं अपनाया कि उसे एक सफल कारोबारी बनना था। आखिर जीवन के लिए महत्वपूर्ण प्रत्येक चीज को खरीदा नहीं जा सकता है।

50 ओवर वाले मैचों को पूरी तरह से समाप्त करने के प्रस्ताव को लेकर चर्चा हो रही है। निश्चित तौर पर मैं इससे सहमत नहीं हो सकता हूं क्योंकि मैं निश्चित तौर पर मानता हूं कि 50 ओवर वाले खेल ने हमारी बल्लेबाजी में नए स्ट्रोक्स को जोड़ने में मदद की है जिनका हम टेस्ट मैचों में इस्तेमाल करने में सक्षम हुए। हम सभी को पता है कि 50 ओवर वाले खेल से सारी दुनिया में फील्डिंग के स्तर में सुधार आया है। खेल का भविष्य भले ही आईसीसी द्वारा शुरू की गई स्पर्धाओं जैसे चैम्पियन्स ट्रॉफी और वर्ल्ड कप जैसे एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में निहित हो पर इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी 50 ओवरों वाले मैच भी एक दिवसीय मैचों के लिए मददगार साबित होंगे।

ऐसा होने से प्रत्येक वर्ष खेले जाने वाले वन डे इंटरनेशनल्स (ओडीआई) की संख्या में कटौती होगी लेकिन इन मैचों की एक सार्थकता होगी। मैं सोचता हूं कि 1985 के बाद लोग यह कहते रहे हैं कि बहुत अधिक निरर्थक एक दिवसीय खेले जा रहे हैं। संभव है कि यह अंतिम रूप से कुछ करने का समय हो। जैसा कि हम जानते हैं कि 20-20 मैचों के जनता में जितने प्रशंसक होंगे उतनी ही संख्या में इसके आलोचक हैं।
इस बात को मान भी लिया जाए कि इन दिनों करीब 120 टी-20 मैच स्वीकार्य हैं, लेकिन मुझे इससे सबसे ज्यादा शिकायत है। भीड़ और इससे मिलने वाली आय के आंकड़े बताते हैं कि अगर हम टी-20 मैचों को अच्छी तरह नहीं संभाल पाते हैं तो इससे होने वाली आय को देखते हुए निजी खिलाड़ियों की भरमार हो सकती है जो कि खेल के इस स्वरूप से होने वाली आय से भी बड़े साबित हो सकते हैं।

इसलिए मैंने जो हाल में कहा है उसे फिर से दोहराना चाहूंगा कि क्रिकेट के तीनों प्रकारों में संतुलन बैठाना बहुत महत्वपूर्ण है। हमेशा की तरह से देश के खिलाफ देश खेलने वाला टेस्ट क्रिकेट हमारे पास है, लेकिन इसका आयोजन इतनी सावधानी से किया जाए ताकि भीड़ आकृष्ट हो और इनको इतनी निष्पक्षता से नियोजित किया जाए कि प्रत्येक टेस्ट खेलने वाले देश को पर्याप्त संख्या में टेस्ट मैच खेलने को मिलें। साथ ही, यह मुकाबला किसी चैम्पियनशिय या ट्रॉफी के लिए हो, केवल रैंकिंग के लिए नहीं हो।

50 ओवरों वाले फॉर्मेट के तहत संख्या में कम देशों के मध्य चैम्पियनशिप ट्रॉफी और वर्ल्ड कप जैसे हों। चार वर्ष के अंतर से होने वाले वर्ल्ड कप के बीच में ओडीआई कैलेंडर भी तय किया जाए और कुछेक महत्वपूर्ण आयोजनों के आधार पर रैंकिंग को भी युक्तिसंगत बनाया जाए। सात मैचों की ओडीआई सीरीज का कोई अर्थ नहीं है। टी-20 की सर्वाधिक प्रभावी भूमिका अधिकृत लीग के जरिए एक घरेलू प्रतियोगिता के तौर पर हो जोकि क्रिकेटरों के लिए वित्तीय तौर पर भी आकर्षक होगी। इस तरीके से उन देशों में भी क्रिकेट को व्यवहारिक बनाया जा सकता है जिनमें इसके लिए स्थान और लोगों के आकर्षण की कमी है।

चूंकि एक खेल हम सभी खिलाड़ियों से बड़ा है इसलिए हमें पहले से ही सोचना चाहिए कि आज यह कैसी हालत में है। हम इसे 2020 में कैसी स्थिति में देखना चाहते हैं? याकि 2027 में इसे कहां देखना चाहेंगे जो कि पहला टेस्ट मैच खेले जाने के बाद 150 वर्ष बाद की स्थिति होगी। अगर आप इसके बारे में सोचेंगे तो आधुनिक मोटर कार से भी ज्यादा क्रिकेट हमारे पास लंबे समय तक रहेगा जबकि यह आधुनिक हवाई यात्रा के पैदा होने से पहले मौजूद था। क्रिकेट की बढ़ोतरी के लिए इससे होने वाली आय महत्वपूर्ण है, लेकिन भविष्य में इसकी प्रगति के लिए इसकी परम्पराएं और जीवंतता भी अनिवार्य हिस्सा होंगी।

हमें किसी भी फॉर्मेट को खोना नहीं है क्योंकि एक फॉर्मेट बहुत अधिक खेला गया है और दूसरा बहुत कम। मेरी पीढ़ी के क्रिकेटरों को पेशेवर रवैए ने उन्हें विशेषाधिकृत जीवन जीने का मौका दिया है हालांकि आप अक्सर ही क्रिकेटरों को थकान, यात्रा संबंधी तकलीफों और रिकवरी के लिए समय का अभाव होने का रोना रोते पाते हैं। हम जब कभी भी इस तरह के विचारों से खुद को घिरा हुआ पाएं तो हमें ब्रैडमैन के साथ सचिन की बातचीत का एक अंश याद करना चाहिए। सचिन ने सर डॉन से पूछा कि वह बड़े और महत्वपूर्ण मैचों के लिए खुद को किस तरह से मानसिक रूप से तैयार करते थे, सर डॉन का जवाब था-एक मैच से पहले काम पर चले जाते थे और मैच खत्म होने के बाद भी काम पर चले जाते थे।

जब किसी क्रिकेटर को कोई तकलीफ महसूस हो तो उसको यह बात याद कर लेना चाहिए। अपनी बात समाप्त करने से पहले मैं अपने करियर के दौरान अक्सर होने वाले एक अनुभव के बारे में संक्षिप्त में बात करना चाहूंगा। यह व्यक्तियों या घटनाओं से संबंधित बात नहीं है लेकिन मैं इसे साझा करना महत्वपूर्ण मानता हूं। किसी बड़े मैच के दौरान मैंने कभी कभी अपने को स्लिप में खड़ा पाया, अथवा नॉन स्ट्राइकर एंड पर खड़े पाया और फिर एकाएक महसूस किया कि सभी कुछ गायब हो गया है। ऐसे क्षण पर जो कुछ मौजूद रहता है वह मुकाबला है और खेल से पैदा होने वाली वास्तविक अनुभूति।

यह लगभग ध्यान करने जैसा एक अनुभव है। जब आप अपने को खेल से जोड़ते हैं जैसा कि आपने वर्षों पहले शुरुआत की थी, जब आपने पहली बाउंड्री लगाई थी, पहला कैच लिया था, पहला शतक बनाया था अथवा आप एक बड़ी जीत में शामिल रहे हैं तब ऐसा अनुभव होता है। हालांकि यह अनुभव बहुत क्षणिक होता है, लेकिन यह एक अमूल्य क्षण होता है और प्रत्येक क्रिकेटर को इसका अनुभव करना चाहिए। मैं जानता हूं कि यह पूरी तरह काल्पनिक बात होगी कि आप एक पेशेवर क्रिकेटर से उम्मीद करें कि वह नौसिखिए गैर पेशेवर खिलाड़ी की तरह खेले।

पर मैं ऐसा करने की तरकीब जानता हूं और यह है एक गैर पेशेवर खिलाड़ी की भावना रखना। खेल की नई बातों को खोजने, सीखने, आनंद महसूस करने और पूरी ईमानदारी से खेलने में आप किसी नौसिखिए खिलाड़ी जैसा आनंद ले सकते हैं। प्रैक्टिस करने या खेलने जाते समय अपने आप को नया समझें भले ही आपके आसपास समूचे मैदान पर पेशेवर खिलाड़ियों की भरमार हो।

याद रखें कि प्रत्येक क्रिकेटर में एक प्रतियोगी होता है जो कि हारने से नफरत करता है और जीतना ही उसके लिए मायने रखता है, लेकिन जब आप क्रिकेट खेलते हैं तो केवल यही बात आपके लिए अर्थ नहीं रखती है। प्रत्येक टीम के प्रत्येक सदस्य के लिए यह महत्वपूर्ण है कि खेल कैसे खेला जाता है क्योंकि आपका प्रत्येक मैच क्रिकेट के इतिहास में अपना पदचिन्ह छोड़ जाता है। इस बात को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। पेशेवर खिलाड़ियों के तौर पर हम जिस तरह से बल्लेबाजी, गेंदबाजी, फील्डिंग, अपीलिंग, खुशी मनाते हैं, असहमति जाहिर करते हैं अथवा तर्क वितर्क करते हैं, वह आसानी से गैर पेशेवर लोगों के खेल में शामिल हो जाता है।

वर्ष 2027 के खिलाड़ियों में हम इसी समय का और अपना अक्स देखेंगे और तब बेहतर होगा कि हम पचास वर्षीय खिलाड़ियों को नाराज न किया जाए अथवा तकलीफ पहुँचाई जाए। खेल के संरक्षकों के तौर पर यह महत्वपूर्ण है कि हम पीछे की ओर कदम बढ़ाकर थोड़े समय के लिए अनुचित लाभ न उठाएं और तभी हमें एक ऐसी पीढ़ी के तौर पर याद रखा जा सकता है जो कि बहुत बड़ा कदम उठाने में सक्षम थी।

आज की रात आप लोगों को संबोधित करने के आमंत्रण और ध्यानपूर्वक सुनने के लिए धन्यवाद।

वेबदुनिया पर पढ़ें