मंगेतर से ज्यादा मेलमिलाप से बचें

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सगाई और शादी के बीच का वक्त बहुत रोमांच भरा होता है। हर वक्त अपने उनसे बात करने का मन करता है। मगर क्या कभी आपके सोचा है कि मंगेतर से लगातार बातचीत करना परेशानी का सबब भी बन सकता है? जी, हाँ! बात हैरान जरूर कर देती है। लेकिन यह सौ फीसद सच है कि मंगेतर कई बार सिरदर्द भी हो जाता है।

बेवजह की बहस
कभी बदकिस्मती से बातचीत के दौरान किसी एक विषय में दोनों का एकमत न होना, ऐसी स्थिति पैदा करता है जिसकी कल्पना भयावह हो सकती है। क्योंकि ऐसी स्थिति में दोनों के बीच अंतहीन बहस छिड़ जाएगी। इससे बचें।

मंगेतर बनाम सिरदर्द?
हर लड़की अपने मंगेतर का पहला तोहफा एक मीठी याद के तौर पर अपने पास सुरक्षित रखती है। लेकिन जब मंगेतर तोहफे प्यार का इकरार करने के लिए नहीं बल्कि दिखावे के तौर पर देने लगे तो परिस्थितियाँ काफी खतरनाक रूप ले लेती हैं। ध्यान रहे प्यार जताने का यही एक तरीका नहीं है। अगर वह हमेशा खुद को सुपीरियर मानने लगता है तो ऐसे मंगेतर को सिरदर्द बनने में वक्त नहीं लगता है।

क्या मेरा फैसला सही है?
हालाँकि किसी भी शख्स पर भरोसा करना आसान नहीं है। विशेष तौर पर तब जब उसकी किसी अनजान व्यक्ति से शादी तय हो चुकी है। ऐसे में लड़कियों के मन में कई बार यह सवाल पनप सकता है कि क्या वे इस शादी से खुश रहेंगी? क्या उसका यह फैसला सही है? कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो जाएगी? वगैरह-वगैरह। दरअसल यह तमाम सवाल उठना जायज है। लेकिन ऐसे सवाल आपसी रिश्तों को बिगाड़ सकते हैं। इसलिए भरोसा करना भी सीखिए।

मेरी मर्जी मानो
मान लीजिए कि आप अपनी मंगेतर के साथ कहीं बाहर गई हैं। वहाँ उसे बर्गर खाने का मन है और आपको गोलगप्पे। ऐसे में आप चाहती हैं कि वह आपकी पसंद का खाए और वह चाहता है कि आप उसकी पसंद का खाएँ। हालाँकि यह बहुत छोटी बात है। लेकिन अगर मंगेतर की बात न मानी जाए तो वह मुँह फुलाकर घर को लौट जाता है। इसका यह मतलब है कि स्थितियाँ कभी भी, कहीं भी आसानी से बिगड़ सकती हैं। वह अपने हर छोटे-छोटे फैसले आप पर थोपना चाहता है। अतः यहाँ यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि किसी को भी अपना पार्टनर ऐसा चुनना चाहिए जो कि अपनी मर्जी थोपे नहीं बल्कि आपकी भी सुने।

ऐसा नहीं, वैसा करो
पिछले दिनों अनु को अपने दफ्तर के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार करना था। खुशकिस्मती से वह और नितिन एक ही प्रोफेशन से जुड़े हैं। इसलिए अनु को लगता है कि नितिन उसको बेहतर ढंग से समझ सकता है। कुछ ऐसी ही सोच नितिन की भी है। लेकिन जब अनु अपना प्रोजेक्ट तैयार कर रही थी तो नितिन उसे बार-बार अपने सुझाव दे-देकर लगातार परेशान कर रहा था। दरअसल वह खुद को उससे बेहतर साबित करने की कोशिश कर रहा था। इससे अनु को नितिन की सहायता तो नहीं मिली बल्कि उसकी मदद माँगने के कारण उनके आपसी संबंधों में खटास आ गई।

पास होकर भी दूर हो तुम
पहली बार लड़की अपने मंगेतर के साथ बाहर गई है और उसके साथ अंतहीन बातें करने की योजना बनाकर आई है। लेकिन उसके साथ पार्क या मॉल या फिर थिएटर में पहुँचने के बाद उसके पास होने के बावजूद उसके साथ होने का एहसास न हो तो रिश्ते कभी भी अच्छे नहीं बन सकते। यहाँ बातचीत नहीं, भावनाओं को समझने की आवश्यकता है।

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