जनरल सुंदरजी ने धमाका कर दिया था-नटवर

रविवार, 8 फ़रवरी 2009 (19:22 IST)
अरुणाचलप्रदेश में 1986 में जब सुमद्रोंग छू घाटी में भारतीय और चीनी सेनाएँ एक दूसरे के आमने-सामने खड़ी थीं तो तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल केएस सुंदरजी ने यह सुझाव देकर धमाका कर दिया था कि भारत पूर्व में चीन और पश्चिम में पाकिस्तान दोनों से निपट सकता है।

सुंदरजी ने संसद भवन के कमरा नंबर नौ में राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक में यह विचार व्यक्त किए थे जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने की थी। इस बैठक में शीर्ष राजनेता तथा शीर्ष रक्षा अधिकारी मौजूद थे। पूर्व विदेशमंत्री नटवरसिंह ने अपनी नई पुस्तक चाइना डायरी में अपने संस्मरणों में यह बात कही है। वे उस समय विदेश राज्यमंत्री थे।

नटवरसिंह लिखते हैं सेना प्रमुख ने सुमद्रोंग छू और पश्चिमी सेक्टर के बारे में बात की। उन्होंने लापरवाही से कहा कि भारत पूर्व में चीन से और पश्चिम में पाकिस्तान का मुकाबला कर सकता है।

इस चर्चा में भाग लेते हुए चीन में भारत के राजदूत और वरिष्ठ राजनयिक केपीएस मेनन ने जोर देकर भारत-चीन संघर्ष के संदर्भ में कहा कि 1962 में यह अनुभव एक भ्रांति था। नटवरसिंह भारतीय विदेश सेवा के 1953 बैच के अधिकारी रहे हैं और चीन, पाकिस्तान तथा कई अन्य देशों में काम कर चुके हैं।

इस बैठक में पीवी नरसिंहराव, नारायण दत्त तिवारी, केसी पंत तथा बूटासिंह सभी प्रधानमंत्री की ओर देख रहे थे। बैठक में रक्षा राज्यमंत्री अरुणसिंह भी मौजूद थे। सिंह ने कहा कि उन्हें सेना प्रमुख की टिप्पणी सुनकर हैरानी हुई क्योंकि पूर्व में सैन्य हार से संसद में भारी बहुमत में होने के बावजूद सरकार गिर जाएगी।

मनमोहन सिंह सरकार में विदेशमंत्री रहे नटवरसिंह कहते हैं कि उन्होंने सुंदरजी से कहा जनरल 1962 में हमने कृष्ण मेनन का बलिदान दिया। 1986 में हमें किसका बलिदान देना है आपका या प्रधानमंत्री का।

1986 के अंतिम दिनों में भारत को पता चला कि चीनी सेना ने सुमद्रोंग छू घाटी में वानदुंग में हैलीपैड बना लिया है। भारत ने इस पर तत्काल प्रतिक्रिया की और दोनों पक्षों द्वारा आपसी सहमति से अपनी-अपनी सेना को पीछे हटाने से पहले एक सप्ताह बेहद तनावपूर्ण रहा। दोनों पक्षों ने नो मैन्स लैंड सृजित किया।

1986 के अंत में भारत ने अरुणाचलप्रदेश को राज्य का दर्जा दे दिया जिस पर चीन आज भी दावा करता है। त्वांग में सेना की गतिविधियों को चीन ने भड़काऊ कार्रवाई के रूप में देखा।
दोनों पक्षों ने संघर्ष के खतरे को महसूस किया और शुरुआती तैनाती के बाद सैनिकों की तादाद में कमी करने का फैसला किया।

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