भविष्य का विश्वास जगातीं थीं तेजी

शनिवार, 22 दिसंबर 2007 (13:57 IST)
पहली पत्नी श्यामा के निधन के बाद 1941 में डॉ. हरिवंशराय बच्चन ने सिख परिवार में जन्मी तेजी सूरी से शादी की थी। तेजी बच्चन अच्छी गायिका भी थीं और उन्होंने कई बार मंच पर अपनी कला का जौहर भी दिखाया था। हरिवंशराय ने शेक्सपियर के कई नाटकों का अनुवाद किया था और तेजी ने कई नाटकों में अभिनय किया था।

श्यामा के निधन के बाद हरिवंशराय बच्चन की सूनी जिंदगी को तेजी के विश्वास और प्रेम ने पोषित किया। डॉ. बच्चन की अनेक अविस्मरणीय रचनाओं की प्रेरणा तेजी ही थीं। डॉ. बच्चन ने अपनी 'सतरंगिनी' पुस्तक यह लिखतेहुए- जिसने मुझे अमिताभ जैसा पुत्र मेरी गोदी में दिया उस तेजी को सस्नेह- कहकर समर्पित की थी। दोनों की मुलाकात एक मित्र के घर पर हुई थी, वहाँ डॉ. बच्चन से कविता पाठ करने के लिए कहा गया।

डॉ. बच्चन ने 'क्या करूँ संवेदनाएँ लेकर तुम्हारी...' कविता सुनाई। उनके स्वर की मार्मिकता और कविता के भावों ने तेजी की भावनाओं को गहराई तक स्पर्श किया। कविता पाठ के बाद दोनों रोने लगे थे और इस तरह एक लंबे सफर की शヒआत हुई। डॉ. बच्चन ने चार खंडों में लिखी अपनी आत्मकथा में विस्तार से तेजी बच्चन काजिक्र किया है। प्रस्तुत है उनकी आत्मकथा 'दशद्वार से सोपान तक' के चुनिंदा अंश, जिसमें उन्होंने अपने जीवन की प्रेरणा 'तेजी' के बारे में लिखा है।

धैर्य और निःसंशय वाणी : ऐसे समय में जब अमिताभ की फिल्में लगातार फ्लॉप हो रही थीं, अजिताभ भी अपनी नौकरी छो़ड़ चुके थे और मैं एक तरह से बेकार बैठा था। महीनों से अर्जन समर्थ लिखने के लिए कलम तक न उठाई थी, तेजी का हमारे साथ होना बहुत ब़ड़ा वरदान था। अमित जब हताश निराश दिनभर का थका-मांदा घर आता तो वे उसे अपने पास बैठातीं, उसके माथे पर अपना आशीर्वादी हाथ फेरतीं, उसे ढाँढस देतीं, धैर्य बँधाती और अपनी करुण मधुर पर निःसंशय वाणी से एक दिन उसकी सुनिश्चित सफलता और यशोज्जवल भविष्य का उसमें विश्वास जगातीं।

अजिताभ को वे अपनेप्रयत्नों में अधिक योजनाबद्घ, अधिक व्यवहारिक, अधिक सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित करतीं और मुझे कुछ लिखने-प़ढ़ने के लिए प्रेरित करतीं। अपने तीस बरस के वैवाहिक जीवन के अनुभवों से उन्होंने यह जाना था कि मैं तभी सामान्य व स्वस्थ रहता हूँ जब मैं पठन-लेखन में व्यस्तहो जाता हूँ।

भरोसे का करार : हम पति-पत्नी एक-दूसरे के निजी जीवन को निजी रखना अधिकार मानते हैं। हम एक-दूसरे का पत्र व्यवहार नहीं देखते हैं, न उसके बारे में पूछते हैं। हम एक-दूसरे से मिलने वाले के विषय में जितना एक-दूसरे का बता दें, उससे अधिक न जानने की इच्छा प्रकट करते हैं, न जाननेकी कोशिश करते हैं। आने-जाने के विषय में भी अपनी अपनी स्वतंत्रता रखते हैं। कहाँ गए थे? किस काम से गए थे? ऐसे सवाल हम नहीं पूछते लेकिन हमारे बीच एक जबर्दस्त करार है, जब कभी हममें से कोई सीधा और सुनिश्चित प्रश्न पूछेगा दूसरा उसका सीधा और सच्चा जवाब देगा। हमारे इस करार ने हमारे व्यवहार और संबंध को क्या शक्ल दी है। हमने ऐसा ही एक करार अपने बेटों से किया है। हमारे बीच गलतफहमी की कोई गुंजाइश नहीं।

संस्कारों में पली-पगी : तेजी से जब मेरा विवाह हुआ वे सिख धर्म के संस्कारों में पली-पगी थीं। उनके पास एक गुटका रहता था, गヒमुखी लिपि में, जिसमें संभवतः जपुजी, सुखमनी साहब आदि संग्रहित थे। जिन्हें वे सस्वर प़ढ़ती थीं। मुझे याद है जब अमित-अजित हुए तो उनको टब में नहलाते समय वे अपने मधुरस्वर से गुटका पाठ करतीं जो उन्हें कंठस्थ था। तेजी पर हिन्दू सहेलियों के संग साथ से हिन्दू संस्कार भी पढ़ने लगे थे। अपनी सहेलियों के साथ तेजी शिवरात्रि, जनमाष्टमी, रामनवमी के व्रत भी रख लेंती, मंदिर भी चली जातीं।

प्रतीक्षा माँ की : अमिताभ के मकान का नामकरण करने का समय आया तो मुझे तेजी का लेख याद आया, जिसमें उन्होंने लिखा था कि -'किसी एकांत-शांत जगह पर हमारा एक छोटा-सा, सुंदर-सा घर है, चारों ओर खूब खुली जगह है। बच्चनजी ने तो कल्पना के उस घर का नामकरण भी कर डाला है।कहते हैं उस घर का नाम होगा- प्रतीक्षा।' मैं अमिताभ के घर का नाम प्रतीक्षा ही रखना चाहता हूँ। अब मैं सोचता हूँ प्रतीक्षा किसकी? मैं तो इस घर में बैठकर एक ही की (तेजी की) प्रतीक्षा कर सकता हूँ। घर को मैंने प्रतीक्षा नाम दिया तो अमिताभ को बहुत पसंद आया। मैंने उससे पूछा तुमने क्यों 'प्रतीक्षा' नाम पसंद किया? तुम्हें किसकी प्रतीक्षा है? अमिताभ बोले 'माँ की'।

अंत में तेजी बच्चन को समर्पित हरिवंशराय की कविता की पंक्तियाँ-
क्यों न हम लें मान, हम हैं
चल रहे ऐसी डगर पर,
हर पथिक जिस पर अकेला
दुख नहीं बँटते परस्पर...

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