महिला सशक्तिकरण के प्रणेता थे शास्त्रीजी

गुरुवार, 24 जनवरी 2008 (16:52 IST)
चरखा और खादी का सूत लेकर विवाह करने वाले तथा सादगी और ईमानदारी के लिए मशहूर चार दशक पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सबसे पहले महिला सशक्तिकरण का बिगुल फूंका था।

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने बताया कि उनके पिता महिला विकास तथा महिला सशक्तिकरण के सबसे बड़े पक्षधर रहे। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि उन्होंने अपने विवाह के समय दहेज के रूप में चरखा और सूत लिया था।

देश की आजादी के बाद उत्तरप्रदेश की सरकार में लाल बहादुर शास्त्री को संसदीय सचिव नियुक्त किया गया था। इसके बाद जब पंडित गोविंद वल्लभ पंत ने मुख्यमंत्री का पद संभाला तो उनकी सरकार में शास्त्रीजी को पुलिस और यातायात मंत्री बनाया गया।

गरीबी में पले बढ़े पूर्व प्रधानमंत्री महिलाओं को पुरुषों की बराबरी में लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। लाल बहादुर शास्त्री ने अपने मंत्रित्वकाल में महिला सशक्तिकरण पर जोर देते हुए बसों में महिला कंडक्टर की भर्ती करने का आदेश दिया था।

शास्त्रीजी हमेशा महिला सशक्तिकरण और महिला विकास के प्रति संवेदनशील थे। उन्होंने ही सबसे पहले इस दिशा में कदम उठाया था। पुलिस मंत्रालय के अतिरिक्त कार्यकाल संभालने के दौरान शास्त्री ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठी चार्ज करने की बजाए पानी की बौछार का इस्तेमाल करने का आदेश दिया था।

स्वाभिमान के पक्के पूर्व प्रधानमंत्री ने अमेरिका को भी अपने आत्मबल से घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। अमेरिका ने जब भारत को पीएल 480 के तहत गेंहू देने से इंकार कर दिया तो शास्त्री जी ने पूरे देश से एक दिन उपवास करने का आह्वान किया था।

सुनील शास्त्री ने पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में एक मजेदार वाकया बताया दादा और दादी के साथ पिताजी मेला देखने गए थे। पिताजी की अवस्था उस समय तीन महीने की थी। वह अचानक दादी के हाथ से फिसल कर एक मछुआरे की डोलची में जा गिरे।

मछुआरिन को कोई बच्चा नहीं था और वह उन्हें गंगा मैया का आशीर्वाद समझकर अपने घर ले गई। बाद में दादा और दादी के कहने पर ही मछुआरिन ने पिता जी को उनके हवाले किया था।

जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले शास्त्रीजी ने भारत के प्रधानमंत्री नियुक्त होने पर 11 जून 1964 को कहा था हर देश कभी न कभी इतिहास के उस मोड़ पर खड़ा होता है जहां से उसे आगे बढ़ने की राह चुननी होती है।

उन्होंने कहा था हमारे लिये आगे बढ़ने का रास्ता चुनने में न तो कोई दिक्कत होनी चाहिये और न ही कोई असमंजसता। हमारा रास्ता सीधा और साफ है। हमें एक ऐसा समाजवादी लोकतंत्र बनाना है जिसमें सबके लिए स्वतंत्रता और समृद्धि तथा सभी देशों के लिए मित्रता हो। हम विश्व शांति को बरकरार रखें।

अपने पिता के निधन के बारे में सुनील कहते हैं मेरा मानना है कि पिता जी की मौत अभी भी रहस्य बनी हुयी है। ताशकंद में जो हुआ उसके बारे में किसी को भी जानकारी नहीं मिली। उनका अस्वाभाविक निधन।

पाकिस्तान ने कच्छ पर दावा करते हुए युद्ध की घोषणा कर दी थी। इस पर शास्त्रीजी ने लोक सभा में बयान दिया था सीमित संसाधनों का उपयोग करते हुए हमने हमेशा आर्थिक विकास की योजनाओं और परियोजनाओं को प्राथमिकता दी है। इससे यह स्पष्ट है कि भारत की दिलचस्पी सीमाई तनाव या कटुता का माहौल बनाने में नहीं है।

उन्होंने कहा था सरकार का ऐसे में स्पष्ट दायित्व है कि वह पूर्ण तत्परता और कारगर तरीके से अपनी जिम्मेदारी पूरी करे। हमें लंबे समय तक गरीबी में रहना पसंद होगा लेकिन हम अपनी आजादी को गँवाने की अनुमति नहीं देंगे।

पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम के बाद देश को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच टकराव समाप्त हो चुका है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र और शांति के समर्थन में खड़े सभी देशों के लिए इस शत्रुता को दूर करना एक महत्वपूर्ण बात है।

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