रक्षा उपग्रह जीसैट-7 का सफल प्रक्षेपण, जानिए क्या है खास...
बेंगलुरु। भारत के पहले खास रक्षा उपग्रह जीसैट-7 को शुक्रवार को फ्रेंच गुयाना के कोरू प्रक्षेपण स्थल से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया गया। इसे योरपीय अंतरिक्ष एजेंसी एरियन स्पेस के एरियन-5 रॉकेट के जरिए छोड़ा गया।
PR
इससे देश को समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में काफी मजबूती मिलेगी। भारतीय नौसेना देश में निर्मित इस मल्टीबैंड संचार उपग्रह का इस्तेमाल करेगी, जिसका सितंबर के अंत तक परिचालन शुरू हो जाने की उम्मीद है। इस उपग्रह के निर्माण में 185 करोड़ की लागत से आई है। इसे लांच करने में करीब 470 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। यह देश का पहला उपग्रह है जो रक्षा क्षेत्र के लिए समर्पित है।
अगले पन्ने पर, हिन्द महासागर पर करेगा रक्षा...
जीसैट-7 उपग्रह पर 185 करोड़ रुपए की लागत आई है। यह देश का पहला उपग्रह है, जो रक्षा क्षेत्र के लिए समर्पित है यह उपग्रह अपनी जगह पर स्थिर रहकर काम करेगा। इस उपग्रह के दायरे में जो भी जहाज आएगा, उससे इसका संपर्क रहेगा।
PR
दो हज़ार पचास किलोग्राम वजनी इस उपग्रह से नौसेना को अपनी गोपनीयता बनाए रखने में मदद मिलेगी। नौसेना पूरे हिन्द महासागर में अपने विभिन्न अंगों से सुरक्षित संचार आसानी से कर सकेगी।
उपग्रह के प्रक्षेपण की प्रक्रिया तड़के 2 बजे शुरू हुई जो 50 मिनट तक चली। करीब 34 मिनट की उड़ान के बाद इसे 249 किलोमीटर ‘पेरिजी’ :कक्षा में धरती का सबसे करीबी बिन्दु (और 35,929 किलोमीटर ‘अपोजी’) कक्षा में धरती का सबसे दूरतम बिंदु (के ‘जीओसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट’ में भेज दिया गया।
31 अगस्त से 4 सितंबर तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) उपग्रह को भूमध्य रेखा के 36,000 किलोमीटर उपर ‘जीओस्टेशनरी ऑर्बिट’ में पहुंचाने के लिए इसे कक्षा में ऊपर उठाने के तीन अभियान चलाएगा। यह तकनीक अब तक केवल अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन के पास थी। अब भारत भी इस ग्रुप में शामिल हो गया है। इसे भारत में विकसित तकनीक से बनाया गया है।
अगले पन्ने पर, प्रक्षेपण की पूरी प्रक्रिया.......
चौदह सितंबर तक यह उपग्रह 74 डिग्री पूर्वी देशांतर की अपनी कक्षा में स्थापित हो जाएगा और फिर इसके ट्रांसपोंडर चालू हो जाएंगे। जीसैट-7 के फ्रीक्वेंसी बैंड अंतरिक्ष आधारित समुद्री संचार में मदद करेंगे। इसरो के एक अधिकारी ने कहा कि यह सुरक्षा एवं निगरानी के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
PR
एक वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक के अनुसार जहां तक अंतरिक्ष आधारित संचार की बात है तो अब तक नौसेना के पास कई तरह की सीमाएं थीं। महसूस किया गया कि नौसेना के खास इस्तेमाल के लिए एक एकीकृत मंच की बेहद आवश्यकता है। इससे पूर्व, जहाजों में उपग्रह संचार वैश्विक मोबाइल उपग्रह संचार सेवा प्रदाता ‘इनमैरसैट’ के जरिए होता था।
अत्याधुनिक उपग्रह में यूएचएफ, एस, सी और क्यू बैंड्स में संचालित होने वाले उपकरण लगे हैं। इसका प्रक्षेपण भार 2625 किलोग्राम था और यह एंटीना सहित कुछ नई प्रौद्योगिकियों के साथ इसरो की 2500 किलोग्राम की उपग्रह बस पर आधारित है।
इसरो जीसैट-7 जैसे भारी उपग्रहों का प्रक्षेपण नहीं कर सकता क्योंकि देश में देश में विकसित क्रायोजनिक चरण के साथ इसके जीएसएलवी रॉकेट पर अब भी काम चल रहा है और इसके संचालन की घोषणा किए जाने से पहले इसकी दो सफल उड़ानों की आवश्यकता है। एरियन 5 ने जीसैट-7 के अतिरिक्त एक दूसरे उपग्रह यूटेलसैट25बी ईएसहेल को भी प्रक्षेपित किया। यूटेलसैट25बी (ईएसहेल 1) उड़ान के 27 मिनट बाद एरियन 5 से अलग हो गया।
करीब 34 मिनट की उड़ान के बाद निचला यात्री जीसैट-7 कक्षा में चला गया। इसके साथ मिशन पूरा हुआ। फ्रांस में भारत के राजदूत अरूण सिंह और बेंगलूर स्थिति इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक एसके शिवकुमार उन लोगों में शामिल थे और इस लम्हे के साक्षी बने। सिंह ने कहा कि प्रक्षेपण भारत और फ्रांस के बीच रणनीतिक भागीदारी का प्रतिबिंब भी है। (एजेंसियां) (Photo courtesy: isro.org & arianespace.com)