हिन्दी के जाने-माने साहित्यकार हरिवंशराय बच्चन ने जब शेक्सपीयर के नाटक मैकबेथ का अनुवाद किया था तो उन्होंने सोचा तक न था कि उस नाटक में लेडी मैकबेथ का किरदार निभाने वाली तेजी सूरी एक दिन उनके सूने संसार को खुशियों से भर देंगी।
सिख परिवार में 1914 में जन्मी तेजी सूरी ने हालाँकि इस नाटक में एक त्रासद भूमिका निभाई थी लेकिन इस किरदार की परिणति वर्ष 1941 में हरिवंशराय बच्चन के साथ उनकी शादी के रूप में हुई।
उन दिनों हरिवंश राय बच्चन के जीवन में काफी अकेलापन था। पहली पत्नी श्यामला की 1936 में मौत के बाद उन्हें जीवन का एकाकीपन सालता था। इस दौरान उन्होंने शेक्सपीयर के नाटक 'मैकबेथ' का अनुवाद किया और इसमें लेडी मैकबेथ की भूमिका निभाई तेजी सूरी ने।
इसी दौरान उन्होंने 'निशा निमंत्रण' लिखी जो उनके जीवन में आए खालीपन का झरोखा है। जबकि तेजी के आने के बाद रची गई 'मधुशाला' उनके बदले मन-मस्तिष्क और मिजाज का आईना है। यानी बच्चन का जीवन जहाँ तेजी के आने से पहले निशा को निमंत्रित कर रहा था, वहीं उनके आने के बाद वह मधुशाला-सा सरस हो गया।
डॉ. बच्चन ने लिखा- इस पार प्रिय मधु है, तुम हो उस पार न जाने क्या होगा।
हरिवंशराय बच्चन और तेजी बच्चन को युवावस्था में संगीतबद्ध काव्य पाठ के लिए जबर्दस्त शोहरत हासिल थी। तेजी बच्चन का यह संगीतमय सरोकार हरिवंशराय बच्चन के लेखन और कृतियों में भी झलकता है।
तेजी के हरिवंशराय बच्चन के जीवन में आने के बाद हिन्दी साहित्य जगत को कई अमूल्य रचनाएँ मिलीं और जहाँ तक बात हरिवंशराय बच्चन की है तो उनके जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ।
इसे उन्होंने अपनी कलम के माध्यम से भी अभिव्यक्त किया है- तीर पर कैसे रुकूँ मैं, आज लहरों में निमंत्रण, आज सपनों को मैं सच बनाना चाहता हूँ, दूर किसी कल्पना के पास जाना चाहता हूँ।
वर्ष 2003 में 96 वर्ष की उम्र में डॉ. बच्चन के निधन के बाद से ही तेजी का स्वास्थ्य गिरता गया। यहाँ तक कि वह अपने पौत्र अभिषेक बच्चन के विवाह समारोह में शामिल नहीं हो पाईं। लम्बी बीमारी के बाद आज शुक्रवार को मुम्बई के लीलावती अस्पताल में उनका निधन हो गया।