जीवन बंद मुट्ठी नहीं खुला हाथ है

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जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं। या तुम कह सकते हो कि जीवन खुला रहस्य है। सब कुछ उपलब्ध है, कुछ भी छिपा नहीं है। तुम्हारे पास देखने की आंख भर होनी चाहिए।

यह ऐसा ही है जैसी कि अंधा आदमी पूछे कि 'मैं प्रकाश के रहस्य जानना चाहता हूं।' उसे इतना ही चाहिए कि वह अपनी आंखों का इलाज करवाए ताकि वह प्रकाश देख सके। प्रकाश उपलब्ध है, यह रहस्य नहीं है। लेकिन वह अंधा है- उसके लिए कोई प्रकाश नहीं है। प्रकाश के बारे में क्या कहें? उसके लिए तो अंधेरा भी नहीं है- क्योंकि अंधेरे को देखने के लिए भी आंखों की जरूरत होती है।

एक अंधा आदमी अंधेरा नहीं देख सकता। यदि तुम अंधेरा देख सकते हो तो तुम प्रकाश भी देख सकते हो; ये एक सिक्के के दो पहलू हैं। अंधा आदमी न तो अंधेरे के बारे में कुछ जानता है न ही प्रकाश के बारे में ही। अब वह प्रकाश के रहस्य जानना चाहता है।

अब हम उसकी मदद कर सकते हैं उसकी आंखों का ऑपरेशन करके। प्रकाश के बारे में बड़ी-बड़ी बातें कह कर नहीं- वे अर्थहीन होंगी। जिस क्षण अहंकार बिदा हो जाता है, उसी क्षण सारे रहस्य खुल जाते हैं। जीवन बंद मुट्ठी की तरह नहीं है; यह तो खुला हाथ है।

लेकिन लोग इस बात का मजा लेते हैं कि जीवन एक रहस्य है- छुपा रहस्य। अपने अंधेपन को छुपाने के लिए उन्होंने यह तरीका निकाला है कि छुपे रहस्य हैं कि गुह्य रहस्य है जो सभी के लिए उपलब्ध नहीं हैं, या वे ही महान लोग इन्हें जान सकते हैं जो तिब्बत में या हिमालय में रहते हैं, या वे जो अपने शरीर में नहीं हैं, जो अपने सूक्ष्म शरीर में रहते हैं और अपने चुने हुए लोगों को ही दिखाई देते हैं।

और इसी तरह की कई नासमझियां सदियों से बताई जा रही है सिर्फ इस कारण से कि तुम इस तथ्य को देखने से बच सको कि तुम अंधे हो। यह कहने की जगह कि 'मैं अंधा हूं', तुम कहते हो, 'जीवन के रहस्य बहुत छुपे हैं; वे सहजता से उपलब्ध नहीं हैं। तुम्हें बहुत बड़ी दीक्षा की जरूरत होती है।'

जीवन किसी भी तरह से गुह्य रहस्य नहीं है। यह हर पेड़-पौधे के एक-दूसरे पत्ते पर लिखा है, सागर की एक-एक लहर पर लिखा है; सूरज की हर किरण में यह समाया है- चारों तरफ जीवन के हर खूबसूरत आयाम में। और जीवन तुम से डरता नहीं है, इसलिए उसे छुपने की जरूरत ही क्या है?

सच तो यह है कि तुम छुप रहे हो, लगातार स्वयं को छुपा रहे हो। जीवन के सामने अपने को बंद कर रहे हो क्योंकि तुम जीवन से डरते हो। तुम जीने से डरते हो- क्योंकि जीवन को हर पल मृत्यु की जरूरत होती है। हर क्षण अतीत के प्रति मरना होता है।

यह जीवन की बहुत बड़ी जरूरत है- यदि तुम समझ सको कि अतीत अब कहीं नहीं है। इसके बाहर हो जाओ, बाहर हो जाओ! यह समाप्त हो चुका है। अध्याय को बंद करो, इसे ढोये मत जाओ! और तब जीवन तुम्हें उपलब्ध है।

अभी के द्वार में प्रवेश करो और सब कुछ उदघाटित हो जाता है- तत्काल खुल जाता है, इसी क्षण प्रकट हो जाता है। जीवन कंजूस नहीं है। यह कभी भी कुछ भी नहीं छुपाता है, यह कुछ भी पीछे नहीं रोकता है। यह सब कुछ देने को तैयार है, पूर्ण और बेशर्त। लेकिन तुम तैयार नहीं हो।

- ओशो
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन

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