महालक्ष्मी व्रत की पौराणिक कथा

महा लक्ष्मी की कथा



 

पुराने समय की बात है। एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह नियमित रूप से श्री विष्णु का पूजन करता था।

उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और अपनी मनोकामना मांगने को कहा- ब्राह्मण ने लक्ष्मी जी का निवास अपने घर में हो ऐसी इच्छा जाहिर की। यह सुनकर विष्णु जी ने लक्ष्मी जी की प्राप्ति का मार्ग सरल ब्राह्मण को बता दिया।

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विष्णुजी ने कहा कि - 'मंदिर के सामने एक स्त्री आती है। जो यहां आकर उपले थापती है। तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वह स्त्री ही देवी लक्ष्मी है। देवी लक्ष्मी जी के तुम्हारे घर आने के बाद तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जाएगा।'

यह कहकर विष्णु जी चले गए। अगले दिन सुबह चार बजे ही ब्राह्मण मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी भी उपले थापने के लिए आईं, तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मी जी समझ गई, कि यह सब विष्णु जी के कहने से हुआ है।

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लक्ष्मी जी ने ब्राह्मण से कहा - तुम महालक्ष्मी व्रत करो, सोलह दिनों तक व्रत करने और सोलहवें दिन रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा।

ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा। लक्ष्मी जी ने अपना वचन पूर्ण किया। उस दिन से यह व्रत पूरी श्रद्वा से किया जाता है। जो भक्त इसे पूर्ण श्रद्धा के साथ यह व्रत करता है उसे अपार धन क‍ी प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है।

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