क्या मुहब्बत है!

विजय कुमार सप्पत्त

अभी-अभी मिले हैं,
पर जन्मों की बात लगती है
हमारा रिश्ता
ख्वाबों की बारात लगती है

आओ... एक रिश्ता हम उगा लें
ज़िंदगी के बरगद पर,
तुम कुछ लम्हों की रोशनी फैला दो,
मैं कुछ यादों की झालर बिछा दूँ ...

कुछ तेरी साँसें, कुछ मेरी साँसें
इस रिश्ते के नाम उधार दे दे...

आओ, एक ख्वाब बुन लें इस रिश्ते में
जो इस उम्र को ठहरा दे
एक ऐसे मोड़ पर ...

जहाँ मैं तेरी आँखों से आँसू चुरा लूँ
जहाँ मैं तेरी झोली, खुशियों से भर दूँ
जहाँ मैं अपनी हँसी तुझे दे दूँ..

जहाँ मैं अपनी साँसों में तेरी खुशबू भर लूँ
जहाँ मैं अपनी तकदीर में तेरा नाम लिख दूँ
जहाँ मैं तुझमें पनाह पा लूँ...

आओ, एक रिश्ता बनाएँ
जिसका कोई नाम न हो
जिसमें रूह की बात हो..
और सिर्फ तू मेरे साथ हो

और मोहब्बत के दरवेश कहें
अल्लाह, क्या मोहब्बत है।।

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