कौन सा शहर था दिल्ली से पहले देश की राजधानी और क्यों हुआ बदलाव?

WD Feature Desk

बुधवार, 30 जुलाई 2025 (13:41 IST)
which city served as india's capital before delhi: भारत की राजधानी दिल्ली, जो आज अपनी ऐतिहासिक भव्यता और आधुनिक पहचान के लिए जानी जाती है, हमेशा से देश का केंद्र नहीं थी। एक समय था जब देश की राजधानी एक और महानगर था, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान भारत के राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार दिया। यह बदलाव केवल एक भौगोलिक स्थानांतरण नहीं था, बल्कि इसके पीछे गहरे ऐतिहासिक, राजनीतिक और रणनीतिक कारण छिपे थे। आइए जानते हैं कौन सा शहर था दिल्ली से पहले देश की राजधानी और क्यों हुआ यह महत्वपूर्ण बदलाव।

दिल्ली से पहले की राजधानी था कोलकाता
ब्रिटिश शासन के समय, यानी ईस्ट इंडिया कंपनी के दौर में, कोलकाता (जिसे पहले 'कलकत्ता' कहा जाता था) भारत की राजधानी थी। 1772 में जब वॉरेन हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर जनरल बनने के बाद कलकत्ता को ईस्ट इंडिया कंपनी की राजधानी बनाया, तब से लेकर 1911 तक यही शहर भारत की राजधानी रहा। कोलकाता ब्रिटिश भारत का एक प्रमुख वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र था। यह एक बंदरगाह शहर होने के कारण व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था और अंग्रेजों ने इसे अपनी शक्ति का गढ़ बनाया था।

क्यों लिया गया राजधानी बदलने का ऐतिहासिक निर्णय
भारत की नई राजधानी की नींव 12 दिसंबर, 1911 को ब्रिटिश सम्राट किंग जॉर्ज पंचम द्वारा रखी गई थी। यह घोषणा दिल्ली दरबार में की गई थी, जहां ब्रिटिश राजशाही ने भारत के सभी राजाओं और नवाबों को आमंत्रित किया था। इसके बाद दिल्ली आधिकारिक तौर पर 13 फरवरी, 1931 को भारत की राष्ट्रीय राजधानी बन गई।

कोलकाता से दिल्ली क्यों हुआ राजधानी का स्थानांतरण?
कोलकाता से दिल्ली राजधानी बदलने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे, जो ब्रिटिश शासकों की राजनीतिक और रणनीतिक सोच को दर्शाते हैं:
1. दिल्ली का ऐतिहासिक महत्व: दिल्ली कई साम्राज्यों का वित्तीय और राजनीतिक केंद्र था, जिन्होंने पहले भारत पर शासन किया था। यह मुगलों, दिल्ली सल्तनत और अन्य प्राचीन भारतीय साम्राज्यों की राजधानी रही थी। अंग्रेजों को यह बात समझ आ गई थी कि 'जो दिल्ली पर शासन करता है, वह भारत पर शासन करता है।' इस ऐतिहासिक और प्रतीकात्मक महत्व ने दिल्ली को एक आदर्श राजधानी के रूप में प्रस्तुत किया।
2. भौगोलिक स्थिति और कनेक्टिविटी: कोलकाता देश के पूर्वी कोने में स्थित था, जिससे पूरे भारत पर प्रशासनिक नियंत्रण रखना मुश्किल होता था। इसकी तुलना में दिल्ली का स्थान अधिक केंद्रीय और सुलभ था, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों से बेहतर कनेक्टिविटी मिलती थी। यह सैन्य और प्रशासनिक दृष्टिकोण से अधिक रणनीतिक स्थान था।
3. बढ़ता राष्ट्रवाद और राजनीतिक अशांति: 20वीं सदी की शुरुआत में कोलकाता में राष्ट्रवादी आंदोलन तेजी से बढ़ रहा था। बंगाल विभाजन (1905) के बाद यहां राजनीतिक अशांति और विरोध प्रदर्शन चरम पर थे। अंग्रेजों को लगा कि एक नए और अधिक शांत स्थान पर राजधानी स्थानांतरित करने से वे राष्ट्रवादी भावनाओं को नियंत्रित कर पाएंगे।
4. मुस्लिम समर्थन हासिल करने की उम्मीद: दिल्ली मुस्लिम शासकों की एक ऐतिहासिक राजधानी रही थी। अंग्रेजों को उम्मीद थी कि दिल्ली को राजधानी बनाने से वे मुस्लिम समुदाय का समर्थन हासिल कर पाएंगे, जो बंगाल विभाजन के बाद कुछ हद तक उनसे नाराज थे।
5. नए शहर का निर्माण: अंग्रेजों को एक ऐसे नए शहर का निर्माण करने का अवसर मिला जो पूरी तरह से उनकी प्रशासनिक और वास्तुकला संबंधी आवश्यकताओं के अनुरूप हो।

किसने किया देश की राजधानी के रूप में नई दिल्ली का निर्माण
नई दिल्ली के बड़े हिस्से को ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था, जिन्होंने 1912 में पहली बार शहर का दौरा किया था। उनके साथ हर्बर्ट बेकर ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई थी। दोनों 20वीं सदी की वास्तुकला के प्रमुख व्यक्ति थे और उन्होंने मिलकर एक ऐसे शहर की कल्पना की जो ब्रिटिश साम्राज्य की भव्यता और शक्ति को दर्शाता हो।

अंग्रेजों ने यहां वायसराय हाउस (जो आज राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाता है) और नेशनल वॉर मेमोरियल (जिसे आज हम इंडिया गेट के नाम से जानते हैं) जैसी कई भव्य इमारतें भी बनवाईं। इन इमारतों ने नई दिल्ली को एक विशिष्ट पहचान दी और इसे एक आधुनिक राजधानी के रूप में स्थापित किया।

कोलकाता से दिल्ली राजधानी का स्थानांतरण ब्रिटिश राज के एक महत्वपूर्ण निर्णय था, जिसने भारत के राजनीतिक और शहरी परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल दिया। यह केवल एक शहर से दूसरे शहर का बदलाव नहीं था, बल्कि यह एक साम्राज्य की रणनीतिक चाल थी जिसने भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। आज भी नई दिल्ली की भव्य इमारतें और उसकी केंद्रीय स्थिति इस ऐतिहासिक बदलाव की कहानी कहती हैं।
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