हिन्दू त्योहार‍ और मौसम, जानिए क्या है संबंध

वेदों में प्रकृति को ईश्वर का साक्षात रूप मानकर उसके हर रूप की वंदना की गई है। इसके अलावा आसमान के तारों और आकाश मंडल की स्तुति कर उनसे रोग और शोक को मिटाने की प्रार्थना की गई है। धरती और आकाश की प्रार्थना से हर तरह की सुख-समृद्धि पाई जा सकती है।
इसीलिए ऋषियों ने प्रकृति अनुसार जीवन-यापन करने की सलाह दी। साथ ही उन्होंने वर्ष में होने वाले ऋतु परिवर्तन चक्र को समझकर व्यक्ति को उस दौरान उपवास और उत्सव करने के नियम बनाए ताकि मौसम परिवर्तन के नुकसान से बचकर उसका लुत्फ उठाया जा सके।
 
वर्ष में 6 ऋतुएं होती हैं- 1. शीत-शरद, 2. बसंत, 3. हेमंत, 4. ग्रीष्म, 5. वर्षा और 6. शिशिर। ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है।
 
वसंत से नववर्ष की शुरुआत होती है। वसंत ऋतु चैत्र और वैशाख माह अर्थात मार्च-अप्रैल में, ग्रीष्म ऋतु ज्येष्ठ और आषाढ़ माह अर्थात मई जून में, वर्षा ऋतु श्रावण और भाद्रपद अर्थात जुलाई से सितम्बर, शरद ऋतु अश्‍विन और कार्तिक माह अर्थात अक्टूबर से नवम्बर, हेमन्त ऋतु मार्गशीर्ष और पौष माह अर्थात दिसंबर से 15 जनवरी तक और शिशिर ऋतु माघ और फाल्गुन माह अर्थात 16 जनवरी से फरवरी अंत तक रहती है।
 
जिस तरह इन मौसम में प्रकृति में परिवर्तन होता है उसी तरह हमारे शरीर और मन-मस्तिष्क में भी परिवर्तन होता है। और, जिस तरह प्रकृति के तत्व जैसे वृक्ष-पहाड़, पशु-पक्षी आदि सभी उस दौरान प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए उससे होने वाली हानि से बचने का प्रयास करते हैं उसी तरह मानव को भी ऐसा करने की ऋषियों ने सलाह दी। 
 
उस दौरान ऋषियों ने ऐसे त्योहार और नियम बनाए जिनका कि पालन करने से व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत कर सके।
अगले पन्ने पर, वसंत ऋतु...
बसंत ऋतु : हिन्दू धर्म के पहले माह की शुरुआत चैत्र माह से होती है। प्राचीन समय से ही यह माह सभी सभ्यताओं में नववर्ष की शुरुआत का माह माना जाता है। चैत और बैसाख में बसंत ऋतु अपनी शोभा का परिचय देती है। यह ऋतु अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मार्च और अप्रैल में रहती है।
 
इस ऋतु में होली, धुलेंडी, रंगपंचमी, बसंत पंचमी, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती और गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें से रंगपंचमी और बसंत पंचमी जहां मौसम परिवर्तन की सूचना देते हैं वहीं नव-संवत्सर से नए वर्ष की शुरुआत होती है। 
 
इसके अलावा होली-धुलेंडी जहां भक्त प्रहलाद की याद में मनाई जाती हैं वहीं नवरात्रि मां दुर्गा का उत्सव है तो दूसरी ओर रामनवमी, हनुमान जयंती और बुद्ध पूर्णिमा के दिन दोनों ही महापुरुषों का जन्म हुआ था। 
 
अगले पन्ने पर, ग्रीष्म ऋतु...
ग्रीष्म ऋतु : ज्येष्ठ और आषाढ़ 'ग्रीष्म ऋतु' के मास हैं। इसमें सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणीमात्र के लिए कष्टकारी अवश्य है, पर तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह ऋतु अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार मई और जून में रहती है।
 
ग्रीष्म माह में अच्छा भोजन और बीच-बीच में व्रत करने का प्रचलन रहता है। इस माह में निर्जला एकादशी, वट सावित्री व्रत, शीतलाष्टमी, देवशयनी एकादशी और गुरु पूर्णिमा आदि त्योहार आते हैं। गुरु पूर्णिमा के बाद से श्रावण मास शुरू होता है और इसी से ऋतु परिवर्तन हो जाता है और वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है।
 
अगले पन्ने पर, वर्षा ऋतु...
वर्षा ऋतु : श्रावण और भाद्रपद 'वर्षा ऋतु' के मास हैं। वर्षा नया जीवन लेकर आती है। मोर के पांव में नृत्य बंध जाता है। संपूर्ण श्रावण माह में उपवास रखा जाता है। यह माह उसी तरह है जिस तरह की मुस्लिमों में रोजों के लिए रमजान होता है। यह माह जुलाई-सितंबर में पड़ता है। इस ऋतु के तीज, रक्षाबंधन और कृष्ण जन्माष्टमी सबसे बड़े त्योहार हैं। 
 
अगले पन्ने पर शरद ऋतु...
शरद ऋतु : आश्विन और कार्तिक के मास 'शरद ऋतु' के मास हैं। शरद ऋतु प्रभाव की दृष्टि से बसंत ऋतु का ही दूसरा रूप है। वातावरण में स्वच्छता का प्रसार दिखाई पड़ता है। यह ऋति अक्टूबर से नवंबर के बीच रहती है।
 
इस ऋतु के त्योहार हैं- श्राद्ध पक्ष, नवरात्रि, दशहरा, करवा चौथ। इस ऋतु में ही शारदीय नवरात्रि की धूम रहती है। जगह-जगह उत्सव का माहौल रहता है। इस ऋतु के अन्य व्रत और उत्सव- छठ पूजा, गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, देवोत्थान एकादशी, बैकुंठ चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा, उत्पन्ना एकादशी, विवाह पंचमी, स्कंद षष्ठी आदि व्रत-त्योहार भी आते हैं।
 
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार मास के लिए योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को चातुर्मास संपन्न होता है और इसी दिन भगवान अपनी योग निद्रा से जागते हैं। भगवान के जागने की खुशी में ही देवोत्थान एकादशी का व्रत इसी ऋतु में संपन्न होता है।
 
अगले पन्ने पर, हेमंत ऋ‍तु...
हेमंत ऋ‍तु : प्राचीनकाल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है। शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्के गुलाबी जाड़े को हेमंत ऋतु का नाम दिया गया है और तीव्र तथा तीखे जाड़े को शिशिर। यह दिसंबर से लगभग 15 जनवरी तक रहती है।

यह ऋतु हिन्दू माह के मार्गशीर्ष और पौष मास मास के बीच रहती है। इस ऋतु में शरीर प्राय: स्वस्थ रहता है। पाचनशक्ति बढ़ जाती है। हेमंत ऋतु में कार्तिक, अगहन और पौष मास पड़ेंगे। कार्तिक मास में करवा चौथ, धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज आदि तीज-त्योहार पड़ेंगे, वहीं कार्तिक स्नान पूर्ण होकर दीपदान होगा। 

अगले पन्ने पर... शिशिर ऋतु...
शिशिर ऋतु : यह ऋतु हिन्दू माह के माघ और फाल्गुन के महीने अर्थात पतझड़ माह में आती है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस ऋतु से ऋतु चक्र के पूर्ण होने का संकेत मिलता है और फिर से नववर्ष और नए जीवन की शुरुआत की सुगबुगाहट सुनाई देने लगती है।
 
अंग्रेजी माह अनुसार यह ऋ‍तु 15 जनवरी से पूरे फरवरी माह तक रहती है।
 
इस ऋतु में मकर संक्रांति का त्योहार आता है, जो हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होना शुरू होता है। इसी ऋतु में हिन्दू मास फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का महापर्व मनाया जाता है।

वेबदुनिया पर पढ़ें