पितृदोष का सबसे सरल उपाय श्राद्ध

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जिस कुंडली में दशम भाव में सूर्य-राहु साथ हो तो उसमें पितृदोष माना जाता है। वहीं चतुर्थ भाव में हो तो मातृदोष माना जाएगा। तृतीय भाव में भाई, द्वितीय में कुटुंबजनों का दोष माना जाता है।

वैसे सूर्य-राहू साथ होने पर ही पितृदोष कहा जाता है। इनकी आत्मशांति व तृप्ति हेतु ही श्राद्धपक्ष की मान्यता है। श्राद्धपक्ष में अपने पितरों की तिथि अनुसार श्राद्ध किया जाता है।

जिस कुंडली में दशम भाव में सूर्य-राहु साथ हो तो उसमें पितृदोष माना जाता है। वहीं चतुर्थ भाव में हो तो मातृदोष माना जाएगा। तृतीय भाव में भाई, द्वितीय में कुटुंबजनों का दोष माना जाता है।
जिन पितरों का स्मरण नहीं होता या पूर्व जन्म में कोई त्रुटि हो जाती है तो सर्वपितृ अमावस्या को पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रातः पितरों की सुरुचि अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाएँ और उपले (कंडे) को प्रज्वलित कर शुद्ध घी-गुड़ व बनाए भोजन का थोड़ा-थोड़ा अंश लेकर पितरों के नाम व जिनका स्मरण नहीं उनका भूले-बिसरे कहकर आव्हान कर धूप दें और कहें कि आप सभी आएँ और हमारी ओर से जो भी बन सका उसका सेवन करें। ऐसा कहकर आहुतियाँ दें। फिर पानी का आचमन भरकर अग्नि के चारों तरफ फेरकर जमीन पर विसर्जन करें।

जिन पितरों का स्मरण नहीं होता या पूर्व जन्म में कोई त्रुटि हो जाती है तो सर्वपितृ अमावस्या को पूर्ण श्रद्धा के साथ प्रातः पितरों की सुरुचि अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाएँ और उपले (कंडे) को प्रज्वलित कर शुद्ध घी-गुड़ व बनाए।

हाँ, ध्यान देने वाली बात यह है कि यह धूप दक्षिण की तरफ मुँह करके दी जाए। दक्षिण दिशा पितृ दिशा होती है। शाम को थोड़ा ताजा भोजन बनाकर दहलीज पर धूप दें व सभी पितरों को याद कर कहें कि हे पितृ देवता हमसे कोई गलती हुई हो तो हमें अपना बच्चा समझकर माफ करें व हमारी ओर से भोजन स्वीकार करें।

ऐसा कहकर बनी चीजों का अग्नि में होम करें व जल छोड़ें और अंत में यह कहकर विदा करें कि हे पितृदेव अब आप अपने-अपने लोक पधारें और हमें खुशहाली का आशीर्वाद देकर हमें अपनी कृपा का पात्र बनाए रखें।