* इस बदलते दौर में जो कुछ भी हूँ मैं देख लो
कल जो देखोगे तो मंज़र दूसरा हो जाएगा।
* दर्द मेरा तेरी सरकार में पहुँचा कैसे
मेरा आँसू ये तेरी आँख से टपका कैसे।
* तूने चाहा नहीं हालात बदल सकते थे,
तेरे आँसू मेरी आँखों से निकल सकते थे।
तुम तो ठहरे रहे ठहरे हुए पानी की तरह,
दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे।
कोई डिगरी लीजिए, कोई हुनर तो सीखिए,
आपके हाथों में पत्थर आईना हो जाएहा।
सहारा लेना पड़ता है मुझे दरिया के बहने का,
मैं क़तरा हूँ कभी तन्हा तो बेह नहीं सकता।
तुम्हें रेहबर समझना पड़ गया है,
हमारी बेकसी की इंतिहा है।
लोग क्यों खा गए होंटों की हँसी से धोका,
हम तो हँसने की फ़क़त रस्म अदा करते हैं।
चले तो फ़ासला तै हो न पाया लम्हों का,
रुके तो पाँव के नीचे निकल गईं सदियाँ।
बेइल्म भी हम लोग हैं, ग़फ़लत भी है तारी,
अंधे भी हैं हम लोग, मगर सो भी रहे हैं।