अच्‍छाई को बोया कर...

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घर से बाहर निकला कर
दुनिया को भी देखा कर

फसलें काट बुराई की
अच्‍छाई को बोया कर

नेकी डाल के दरिया में
अपने आपसे धोखा कर

सबको पढ़ता रहता है
अपने आप को समझाकर

बूढ़े बरगद के नीचे
दिल टूटे तो बैठा कर

मेहफिल-मेहफिल हंसता है
तनहाई में रोया कर

दुनिया पीछे आएगी
देख तो दुनिया ठुकराकर

पढ़के सब कुछ सीखेगा
देख के भी कुछ सीखा कर

दुश्मन हों या दोस्त 'अजीज'
सबको अपना समझा कर।

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