ध्यान पर ध्यान दें

गुरुवार, 28 मई 2009 (12:45 IST)
-श्री स्वामी ज्योतिर्मयानं
''ध्यान से मन को विशिष्टता प्राप्त होती है। पृथ्वी, स्वर्ग, समस्त ब्रह्मांड, जलतत्व, पर्वत, मनुष्य और देवगण सभी ध्यान करते हैं। और केवल ध्यान के द्वारा ही ये सभी अपनी महानता और दिव्यता प्राप्त करते हैं।

परंतु दुर्जन; जो ध्यान नहीं करते विवाद, कलह, लंपटता और चुगली करने के प्रेमी होते हैं। शक्ति, साहस और क्षमता केवल ध्यान से ही प्राप्त होती है। अत: ध्यान को ब्रह्मन् मानकर अराधना करें। जो कोई भी इस तरह से ध्यान करता है वह ध्यानास्थ विस्तृत क्षितिज में स्वेच्छा से विचरण करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।'- छांदोग्योपनिषद ।।6।।

ध्यान : राजयोग में अष्टांग साधना का वर्णन है जिसमें मन, अपनी निरभ्रता और परिशुद्धता प्राप्त कर आत्मा के स्वरूप पर गहन चिंतन करने में समर्थ होता है। ये साधना इस प्रकार हैं- 'यम-अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह इत्यादि। नियम- शौच, संतोष, तप, ईश्वर प्राणिधान इत्यादि। आसन- (शारीरिक स्थिरता)। प्राणायाम- प्राणों का नियंत्रण। प्रत्याहार- इंद्रिय निग्रह। धारणा, ध्यान और समाधि।

योग - दर्शन में अनेक महत्वपूर्ण शब्दों की उत्पत्ति 'धी'- जिसका अर्थ प्रज्ञा है, से हुई है। बुद्धि इसी से बनी है। ध्यान 'धी' की ही व्युत्पत्ति है। 'जैन' ध्यान से ही निकला है। धारणा भी उसी धातु से उत्पन्न है। श्रद्धा का भी आधार वही 'धी' है। ईश्वर की सार्वभौमिकता पर चिंतन करने वाली बुद्धि, तार्किक प्रामाणिक सिद्धि करने में असमर्थ होते हुए भी आंतरिक विश्वास से पूर्ण होती है।

यहाँ बुद्धि शब्द को अच्छी तरह समझ लेना आवश्यक है। ‍बुद्धि विवेक और भाव की समन्वित क्रिया है जो शुष्क विश्वविद्यालीन ज्ञान ऊपर है।

योग की सभी प्रणालियों में ध्यान का विस्तृत प्रयोग होता है; परंतु राजयोग में इस शब्द का एक विशेष अर्थ और मूल्य है।

साभार : धारणा और ध्यान (Concentration And Meditation)
सौजन्य : योगिरत्न डॉ. शशिभूषण मिश्र, इंटरनेशनल योग सोसाइटी लालबाग, लोनी-201 102।

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