योग और आपका ऑफिस

आपको पढ़कर आश्चर्य लगा होगा कि योग से आपके ऑफिस का क्या संबंध। आप जानते हैं कि आपको काम का कितना बोझ या तनाव रहता है। यह ‍भी कि मेरे सहयोगियों और बॉस से कैसे संबंध हैं या कि वह मेरे बारे में क्या सोचते हैं और ऐसे में जब किसी ऑफिस में अच्छा माहौल न होकर राजनीति के थपेड़े हों तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है। क्या गड़बड़ होती है, कैसे रिलेक्स तथा ऊर्जावान बने रहें, इसे जानने का प्रयास करते हैं।

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कार्य और व्यवहार : यदि आप यह महसूस करते हैं कि आपको किसी से खतरा है या कि आप ऑफिस की राजनीति के शिकार हो रहे हैं, तो निश्चित ही आप के व्यवहार, चरित्र या कार्य में कुछ गड़बड़ है। यदि आप यह सोचते हैं कि कोई आपसे प्रतियोगिता कर रहा है तो ‍यह भी जान लो क‍ि आप भी यही भूल कर रहे हैं, क्योंकि आप सोचते ही तभी हैं, जबकि आप में भी उसके गुण हैं। आपके लिए एक बुरी सूचना है कि इस सबके चक्कर में आप अपना मूल स्वभाव खो रहे हैं। नकली और पाखंडी चेहरे से काम नहीं चलेगा।

सकारात्मकता और आत्मविश्वास : जबकि सारे मैनेजमेंट गुरु यही शिक्षा देते हैं, पीडी क्लासेस भी यही सिखाती हैं, पर आप नहीं जानते कि ओढ़ी या सीखी गई सकारात्मकता या आत्मविश्वास बहुत अच्छे और दूरगामी परिणाम लाने वाले नहीं हैं। अकसर यह सब नाटकीय और अहंकारपूर्ण होते हैं। सिर्फ एक बड़ा झटका और सारी सकारात्मकता तथा आत्मविश्वास धराशायी हो जाता है, फिर आपके लिए कहना होगा कि दिल को खुश रखने के लिए गालिब यह खयाल अच्छा है, लेकिन भीतर के एक कोने में असंतोष की ज्वाला धधकती रहेगी।

घर और ऑफिस : यदि आप ऑफिस में अपने घर जैसी सुविधा चाहते हुए अपने आसपास वैसा ही तामझाम जमाते हैं जैसे कि किसी देवी-देवता का फोटो, कंघा, पर्सनल डायरी, वैसी किताबें जो घर पर पढ़ी जानी चाहिए। सब कुछ बिखरा-बिखरा और जिस पर आपका ही ठप्पा लगा हो वैसा डेस्कटॉप, कुर्सी, टेबल आदि। तो आपको दोबारा सोचना चाहिए कि आखिर इसमें क्या बुराई है। और, यदि आप ऑफिस को अपने घर में ले जाते हैं, तब भी सोचना जरूरी है कि आखिर गड़बड़ कहाँ है, इस सबसे अलग जबकि महत्वपूर्ण होता है सहयोगियों से घर जैसा और घर से खुद के जैसा मिलना।

अब जानें कि उपरोक्त तीनों मुद्दों पर योग आपकी क्या मदद कर सकता है-

कार्य और व्यवहार : कर्मों में कुशलता है योग। कैसे हो कर्मों में कुशलता? अभ्यास से आती है कुशलता। क्या है अभ्यास? जब हम किसी कार्य को सीखने के पीछे पड़ जाते हैं और फिर बार-बार उसे करते हैं तो अभ्यास फलित होता है फिर जब कोई भी नया कार्य दिया जाता है तो उस पर ज्यादा मेहनत नहीं होती। योगांग नियम का तीसरा अध्याय है अभ्यास। इसे तप भी कहते है। अब बात करते हैं व्यवहार की।

कार्य के बाद आपके व्यवहार से तय होती है आपकी गति। गति, दुर्गति भी और सुगति भी हो सकती है। यह मामला सिर्फ ऑफिस या घर का नहीं आपके सांसारिक और आध्यात्मिक सफर के भविष्य का भी है।

कैसे बने व्यवहार श्रेष्‍ठ? व्यवहार श्रेष्ठ बनता है श्रेष्ठ सोच से। कैसे हो श्रेष्‍ठ सोच? इसके लिए योग में स्वाध्‍याय की बात कही गई है। क्या है स्वाध्‍याय? स्वाध्याय अर्थात स्वयं के विचारों, भावों, कार्यों और व्यवहार का अध्ययन कर उसकी समीक्षा करते रहना, जो कि 1000 पुस्तकों से भी ज्ञान नहीं मिलता वह इस अध्ययन से मिलता है।

सकारात्मकता और आत्मविश्वास : यम और नियम का पालन करना कठिन है, लेकिन स्वाध्‍याय और संकल्प को साधा जा सकता है, छोटी-छोटी चीजों का संकल्प लें, बार-बार विचारों को चैक करें। संकल्प से आत्मविश्वास का विकास होता है। श्रेष्‍ठ आत्मविश्वास से सकारात्मकता का जन्म होता है।

क्या है श्रेष्ठ आत्मविश्वास? जो अहंकार या घमंड से ग्रस्त है वह श्रेष्ठ नहीं। दूसरी बात कि जैसे ही कोई नकारात्मक विचार आए तुरंत एक सकारात्मक विचार सोचें, इसका अभ्यास करें। अब जाने की दूसरा यौगिक रास्ता क्या है? कपालभाति करें, पाँच मिनट का विपश्यना ध्यान करें। सूर्यनमस्कार करें।

घर और ऑफिस : आप ऐसा कैसे सोचते हैं कि ऑफिस आपका घर है। निश्चत ही जिम्मेदारियों के मामले में वह आपके घर जैसा है लेकिन आपके पर्सनल कार्यों और तामझाम पर आपको विचार करना होगा। आखिर आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि जो कुछ है वह मेरी संपत्ति है? चाहे वह घर की वस्तु हो या ऑफिस की। योगांग नियम के अंग अपरिग्रह (अनासक्त) भाव का अध्ययन करें इससे आपके मन की ग्रंथियाँ खुलकर मन शां‍त, निर्मल तथा खुला होगा।