नवग्रहों में शनि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ज्योतिष शास्त्र के फलित में शनि की महती भूमिका होती है। शनि को शास्त्रानुसार सूर्यपुत्र एवं दण्डाधिकारी माना गया है। शनि न्यायाधिपति भी हैं जो जीव को अपने कर्मानुसार कर्मफल या कर्मदंड देने जीवन में शनि दशा के रूप में आते हैं।
इन दशाओं को शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या के नाम से जाना जाता है। शनि मंद गति से चलने वाले ग्रह है उनकी इस धीमी गति के कारण उनका एक नाम शनैश्चर भी है। शनि एक राशि में सर्वाधिक ढाई वर्षों तक रहते हैं। शनि का नाम सुनते ही जनमानस के मन-मस्तिष्क में एक भय व्याप्त होने लगता है।
जब भी शनि का राशि परिवर्तन होता है लोग यह जानने को उत्सुक होते हैं कि उनके लिए यह राशि परिवर्तन क्या फ़ल देने वाला है लेकिन शनि सदैव ही अशुभ या कष्टदायक नहीं होते। यदि किसी की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावेश होकर शुभ भावों में स्थित होते हैं तो वे उस जातक सफलता के शिखर पर पहुंचा देते हैं। शनि सत्ता व न्याय के कारक भी होते हैं। यदि कुंडली में शनि अतीव शुभ हैं तो वे जातक को सत्ताधीश व न्यायाधिपति तक बना देते हैं। आज हम वेबदुनिया के पाठकों को लिए विशेष जानकारी देंगे कि किन लग्नों के जातकों की जन्मपत्रिका में शनि कब शुभ फलदायक होते हैं।
1. मेष- मेष लग्न में शनि दशमेश व लाभेश होने के कारण विशेष शुभ होते हैं। यदि मेष लग्न वाले जातकों की कुंडली में शनि शुभ भावों जैसे केन्द्र, त्रिकोण या लाभ भाव में स्थित हैं तो वे विशेष शुभ माने जाते हैं। यदि मेष लग्न में शनि शुभ भावों में उच्चराशिस्थ हों तो यह स्थिति अतीव शुभ हो जाती है किन्तु यदि शनि अशुभ भावों में या नीचराशिस्थ अथवा निर्बल हैं तो ऐसे में वे अपनी शुभता में कमी कर देते हैं। मेष लग्न में शुभ शनि लाभेश होने के कारण जातक की आय में विशेष वृद्धि करते हैं।
2. वृषभ- वृषभ लग्न में शनि नवमेश व दशमेश होने के कारण अतिशुभ होते हैं। यदि वृषभ लग्न वाले जातकों की कुंडली में शनि शुभ भावों जैसे केन्द्र या त्रिकोण या लाभ भाव में स्थित हैं तो वे विशेष शुभ माने जाते हैं। यदि वृषभ लग्न में शनि शुभ भावों में उच्चराशिस्थ हों तो यह स्थिति अतीव शुभ हो जाती है किन्तु यदि शनि अशुभ भावों में या नीचराशिस्थ अथवा निर्बल हैं तो ऐसे में वे अपनी शुभता में कमी कर देते हैं। वृषभ लग्न में शनि भाग्य के अधिपति भी होते हैं। अत: वृषभ लग्न वाले जातकों को शुभ शनि भाग्य का साथ व सहयोग प्रदान कराते हैं।
3. मिथुन- मिथुन लग्न में शनि अष्टमेश व नवमेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं। मिथुन लग्न वाले जातकों की पत्रिका में शनि यदि शुभ भावों में स्थित हैं तो वे जातक को दीर्घायु व भाग्यवान बनाते हैं किन्तु अष्टमेश होने के कारण कुछ परेशानियां भी उत्पन्न करते हैं। मिथुन लग्न के जातकों को शनि की दशा के उत्तरार्द्ध में लाभ होता है बशर्ते कुंडली में शनि की स्थिति अनुकूल हो।
4. कर्क- कर्क लग्न में शनि सप्तमेश व अष्टमेश होने के कारण अशुभ होते हैं। कर्क लग्न के जातकों की कुंडली में यदि शनि केंद्र या त्रिकोण में स्थित होते हैं तब वे अशुभ फलित करते हैं, इसके विपरीत यदि की स्थिति अशुभ भावों में है तो वे अशुभ फल में कमी करके शुभता प्रदान करते हैं। सप्तमेश होने से यहां शनि मारकेश भी होते हैं।
5. सिंह- सिंह लग्न में शनि षष्ठेश व सप्तमेश होने के कारण अशुभ होते हैं सिंह लग्न के जातकों की कुंडली में यदि शनि केन्द्र या त्रिकोण में अथवा उच्चराशिस्थ स्थित होते हैं तब वे अशुभ फलित करते हैं, इसके विपरीत यदि शनि की स्थिति अशुभ भावों में है तो वे अशुभ फल में कमी करके शुभता प्रदान करते हैं। सप्तमेश होने से यहां शनि मारकेश भी होते हैं।
6. कन्या- कन्या लग्न में शनि पंचमेश व षष्ठेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं। कन्या लग्न वाले जातकों की पत्रिका में शनि यदि शुभ भावों में स्थित हैं तो वे जातक को मेधावी बनाते हैं किन्तु षष्ठेश होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं व रोग उत्पन्न करते हैं। कन्या लग्न के जातकों को शनि की दशा के पूर्वार्द्ध में लाभ होता है यदि कुंडली में शनि की स्थिति अनुकूल हो।
7. तुला- तुला लग्न में शनि चतुर्थेश व पंचमेश होने के कारण शुभ होते हैं। यदि तुला लग्न वाले जातकों की कुंडली में शनि शुभ भावों जैसे केंद्र या त्रिकोण या लाभ भाव में स्थित हैं तो वे विशेष शुभ माने जाते हैं। यदि तुला लग्न में शनि शुभ भावों में उच्चराशिस्थ हों तो यह स्थिति अतीव शुभ हो जाती है किन्तु यदि शनि अशुभ भावों में या नीचराशिस्थ अथवा निर्बल हैं तो ऐसे में वे अपनी शुभता में कमी कर देते हैं। तुला लग्न में शनि भूमि, भवन, वाहन व उच्चशिक्षा के अधिपति होते हैं। अत: तुला लग्न वाले जातकों को शुभ शनि उच्चशिक्षा, भूमि, भवन व वाहन सुख प्रदान करते हैं।
8. वृश्चिक- वृश्चिक लग्न में तृतीयेश व चतुर्थेश होने के कारण शुभ होते हैं क्योंकि तृतीय भाव साहस व पराक्रम का होता है। इस भाव के अधिपति यदि शनि जैसे क्रूर ग्रह हों तो ऐसा जातक साहसिक कार्यों जैसे सेना, पुलिस आदि में विशेष सफलता प्राप्त करता है। यदि वृश्चिक लग्न वाले जातकों की कुंडली में शनि शुभ भावों जैसे केन्द्र या त्रिकोण या लाभ भाव में स्थित हैं तो वे विशेष शुभ माने जाते हैं। यदि वृश्चिक लग्न में शनि शुभ भावों में उच्चराशिस्थ हों तो यह स्थिति अतीव शुभ हो जाती है किन्तु यदि शनि अशुभ भावों में या नीचराशिस्थ अथवा निर्बल हैं तो ऐसे में वे अपनी शुभता में कमी कर देते हैं।
9. धनु- धनु लग्न में शनि द्वितीय व तृतीयेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं। धनु लग्न के जातकों की कुंडली में यदि शनि केंद्र या त्रिकोण में अथवा उच्चराशिस्थ स्थित होते हैं तब वे धन व प्रारंभिक शिक्षा के क्षेत्र में शुभ फलित करते हैं किन्तु द्वितीयेश होने से यहां शनि मारकेश भी होते हैं। मारकेश का शुभ भावस्थ होना जातक के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। धनु लग्न वाले जातकों के लिए शनि की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फलदायक होती है।
10. मकर-मकर लग्न में शनि लग्न व दिवितीयेश होने के कारण अन्तिम रूप से शुभ ही माने जाते हैं क्योंकि लग्नेश कभी भी अशुभ फलित नहीं करता है। यदि मकर लग्न वाले जातकों की कुंडली में शनि शुभ भावों जैसे केन्द्र या त्रिकोण या लाभ भाव में स्थित हैं तो वे विशेष शुभ माने जाते हैं। यदि मकर लग्न में शनि शुभ भावों में उच्चराशिस्थ हों तो यह स्थिति अतीव शुभ हो जाती है किन्तु यदि शनि अशुभ भावों में या नीचराशिस्थ अथवा निर्बल हैं तो ऐसे में वे अपनी शुभता में कमी कर देते हैं। मकर लग्न में यदि शनि लग्नस्थ हों और चन्द्रमा भी क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हो तो वे जातक को क्रूर स्वभाव वाला बना देते हैं। मकर लग्न वाले जातकों शनि की दशा लाभदायक अधिक रहती है किन्तु दशा के उत्तरार्द्ध में कुछ कष्टदायक भी हो जाती हैं क्योंकि शनि यहां मारकेश भी होते हैं।
11. कुंभ- कुंभ लग्न में शनि लग्नेश व द्वादशेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं क्योंकि बारहवें भाव को सबसे कम अशुभता प्राप्त है। कुम्भ लग्न के जातकों की कुंडली में यदि शनि केंद्र या त्रिकोण में अथवा उच्चराशिस्थ स्थित होते हैं तब वे मिश्रित अर्थात् शुभाशुभ फलित करते हैं, इसके विपरीत यदि शनि की स्थिति अशुभ भावों में है तो वे अशुभ फल में कमी करके शुभता प्रदान करते हैं। द्वादशेश होने से यहां शनि व्यय के अधिपति भी होते हैं, यदि शनि स्वराशिस्थ हैं तो ऐसा जातक खूब व्यय करता है।
12. मीन- मीन लग्न में शनि लाभेश व द्वादशेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं। मीन लग्न के जातकों की कुंडली में यदि शनि केन्द्र या त्रिकोण में अथवा उच्चराशिस्थ स्थित होते हैं तब वे मिश्रित अर्थात् शुभाशुभ फलित करते हैं, इसके विपरीत यदि शनि की स्थिति अशुभ भावों में है तो वे अशुभ फल में कमी करके शुभता प्रदान करते हैं। लाभेश होने से यहां शनि लाभ के अधिपति भी होते हैं, यदि शनि स्वराशिस्थ हैं तो ऐसा जातक खूब लाभ प्राप्त करता है। मीन लग्न में यदि शनि द्वादश भाव में स्थित हो तो वे जातक को विदेश यात्राएं करवाते हैं। मीन लग्न वाले जातकों के लिए शनि की पूर्वार्द्ध दशा विशेष लाभ प्रदान करने वाली होती है।