वैसे तो सच्ची श्रद्धा और समर्पण से श्राद्ध करें तो पितृ प्रसन्न होते हैं, परंतु कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो श्राद्ध के सभी पुण्य प्राप्त होते हैं।
पहला नियम: श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाए तो बहुत अच्छा माना जाता है, क्योंकि पितर-लोक को दक्षिण दिशा में बताया गया है।
दूसरा नियम: पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं।
तीसरा नियम: श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है।
चौथा नियम: पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध या तर्पण करते समय काले तिल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों में इसका बहुत महत्व माना गया है।
पांचवांं नियम: जिस दिन श्राद्ध करें उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें। श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहें।
छठा नियम: पितरों को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग किया जाए तो अच्छा है। केले के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है।