आजकल नमस्कार करने की परिभाषा बदल रही है, ऐसे में हम बच्चों को संस्कारित कैसे करें। अत: यह बताना आवश्यक है कि नमस्कार कब, क्यों और कैसे करें। एक समय था कि नमस्कार की एक विशेष प्रथा थी जिस कारण प्राय: सभी स्वस्थ रहते थे। जब घरों में कोई अतिथि आते हैं तो कुछ खाना-पीना अवश्य होता है। उन अतिथि के साथ परिवार के सदस्य भी खाते हैं, जो कि विशेष रूप से मेहमान के लिए बनाया जाता है, जबकि दैनिक दिनचर्या में हम सात्विक एवं हल्का भोजन ही खाते हैं। इस विशेष रूप से बनाए जाने वाले भोजन को पचाने के लिए व्यायामयुक्त नमस्कार करने की प्रथा बनाई गई है।
नमस्कार करने से हमारा अहंकार नष्ट होता है। विनय गुण नम्रता विकसित होती है एवं मन शुद्ध होता है।
अत: प्रथम नमस्कार अपनी ओर से ही करना चाहिए। बड़ों को प्रणाम अथवा चरण स्पर्श करने से आयु, सम्मान, तेज और शुभ कार्यों में वृद्धि होती है।
संत-महात्माओं के दर्शन मात्र और चरण स्पर्श से तीन जन्मों के पाप नष्ट होते हैं। हमारा कल्याण होता है। संत-महात्माओं ने जिस तप को बड़ी मेहनत करके एवं त्याग-तपस्या से प्राप्त किया है, उस तप को वे खुले दिल से देने के लिए तैयार बैठे हैं। कोई लेता है तो खुश होते हैं। ठीक उसी प्रकार से जैसे दुकानदार का जितना भी माल बिकता है वह उतना ही खुश होता है। संत-महात्मा जग का कल्याण होने से प्रसन्न होते हैं।
जानिए, सूर्य नमस्कार के लाभ
सूर्य नमस्कार का संबंध योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा से भी जुड़ा हुआ है। सूर्य की ऊष्मा एवं प्रकाश से स्वास्थ्य में अभूतपूर्व लाभ होता है और बुद्धि की वृद्धि होती है। सूर्य नमस्कार की विधियां मुख्य रूप से हस्तपादासन, प्रसरणासन, द्विपाद प्रसरणासन, भू-धरासन, अष्टांग, प्रविधातासन तथा सर्पासन इन आसनों की प्रक्रियाएं अनुलोम-विलोम क्रम से की जाती हैं।
सूर्य के प्रकाश एवं सूर्य की उपासना से कुष्ठ, नेत्र आदि रोग दूर होते हैं। सब प्रकार का लाभ प्राप्त होता है। अर्थात मनुष्य भगवान जनार्दन विष्णु से मोक्ष की अभिलाषा करनी चाहिए। सूर्य अशुभ होने पर उक्त राशि वाले को अग्निरोग, ज्वय बुद्धि, जलन, क्षय, अतिसार आदि रोगों से ग्रस्त होने की संभावना बढ़ती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य समस्त ग्रह एवं नक्षत्र मंडल के अधिष्ठाता है तथा काल के नियंता हैं।
आप किसी और को ऐसा नमस्कार करें या न करें, परंतु प्रत्येक दिन प्रात:काल कम से कम सूर्य नमस्कार अवश्य करें, क्योंकि सूर्य नमस्कार ही षाष्टांग नमस्कार है। इस करने से मानव निरोग, वैभवशाली, सामर्थ्यवान, कार्यक्षमतावान, पुर्णायु होता है और व्यक्तित्व प्रतिभाशाली होता है।