शनि रत्न नीलम

SUNDAY MAGAZINE

सारे ब्रह्मांड में ऊर्जा शक्ति का मुख्य रूप है। मानव शरीर की आत्मा भी ऊर्जा रूप है। सूर्य से सात रंगों की किरणें निकलती हैं, जिसमें नीले रंग की किरणें शनि ग्रह की होती हैं। मानव शरीर में रक्त का रंग लाल होता है, रक्त संचालन से ही मानव की क्रियाशीलता दृष्टिगोचर होती है।

आकाश मंडल में शुक्र यानी राहु आपस में मित्र हैं तथा सूर्य चन्द्र, मंगल, गुरू, केतु आपस में मित्र हैं, बुध ग्रह सूर्य के साथ ही रहता है। वैसा ही स्वभाव प्रदर्शित करता है, सूर्य का रंग बैंगनी, चन्द्र का श्वेत, मंगल का लाल, गुरू का पीला, बुध का हरा, शुक्र का श्वेत-नीला, शनि का गहरा नीला, राहु का काला तथा केतु का रंग चितकबरा होता है।

जब हम किसी भी ग्रह के रत्न को धारण करते हैं, तब आकाश मंडल से उन ग्रहों की शुभ किरणें धारण किए हुए रत्न के माध्यम से शरीर में पहुँचती हैं। इन किरणों का रक्त से मेल होता है। जन्मकुंडली में ग्रहों के सामंजस्य के अनुसार वह रत्न मानव के तंत्र को शुभ या अशुभ रूप में प्रभावित करता है या रत्न शास्त्र का विज्ञान।

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नीलम रत्न शनि का रत्न है। शनि ग्रह की किरणें नीली होती हैं, जब किसी व्यक्ति पर विष का प्रभाव होता है, तब उस व्यक्ति का खून नीला पड़ जाता है अर्थात्‌ शनि ग्रह मंगल अर्थात्‌ रक्त की क्रियाशीलता को नष्ट करता है। सूर्य, मंगल, चन्द्र, गुरू आपस में मित्र हैं। अर्थात्‌ नीलम रत्न हर कोई नहीं पहन सकता। जिस व्यक्ति की पत्रिका में शनि शुभ ग्रह का स्वामी हो।

शनि का जन्मांक में किसी अन्य शुभ ग्रहों अथवा शुभ भावेशों से प्रतियोग अथवा दृष्टि संबंध न हो साथ ही किसी विद्वान व्यक्ति की देखरेख हो तभी व्यक्ति को नीलम धारण करना चाहिए।

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