ज्योतिष शास्त्र में गंडमूल नक्षत्र के अंतर्गत अश्विनी, रेवती, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र को रखा गया है।
ज्योतिषियों का मानना है कि अगर बच्चे का जन्म गंडमूल नक्षण में हो तब एक महीने के अंदर जब भी वही नक्षत्र लौटकर आए तो उस दिन गंडमूल नक्षत्र की शांति करा लेनी चाहिए अन्यथा इसका अशुभ परिणाम प्राप्त होता है।लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है।
FILE
शतपथ ब्राह्मण और तैत्तरीय ब्राह्मण नामक ग्रंथ में बताया गया है कि कुछ स्थितियों में यह दोष अपने आप समाप्त हो जाता है और इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति खुद के लिए भाग्यशाली होते हैं।
FILE
व्यक्ति का जन्म अगर वृष, सिंह, वृश्चिक अथवा कुंभ लग्न में हो, तब मूल नक्षत्र में जन्म होने पर भी इसका अशुभ फल प्राप्त नहीं होता है।
गंडमूल नक्षत्र में जन्म लेने पर भी अगर लड़के का जन्म रात में और लड़की का जन्म दिन में हो, तब मूल नक्षत्र का प्रभाव समाप्त हो जाता है। गंडमूल नक्षत्र मघा के चौथे चरण में जन्म लेने वाला बच्चा धनवान और भाग्यशाली होता है।
FILE
गंडमूल का प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। बच्चे का जन्म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में, रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में, आश्लेषा के चौथे चरण में, मघा एवं मूल के पहले चरण में एवं ज्येष्ठा के चौथे चरण में हुआ है, तब मूल नक्षण हानिकारक होता है।
बच्चे का जन्म अगर मंगलवार अथवा शनिवार के दिन हुआ है तो इसके अशुभ प्रभाव बढ़ जाते हैं।