अशुभ योग में जन्मा परेशान रहे

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जब बालक का जन्म होता है उस समय के ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही उसके जीवन को ग्रह प्रभावित करते रहते हैं। चौबीस घंटे में बारह लग्न होते हैं और इन्हीं बारह लग्नों में से कोई एक लग्न में बालक का जन्म होता है। इन्हीं में नौ ग्रहों की उपस्थिति वर्तमान के अनुसार होती है।

शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि संबंध में जन्मा बालक अशुभ दौर से बचा रहता है व उसके अनुसार उन्नति करता है। हमने देखा है कोई गरीब परिवार में जन्म लेने पर वो आगे चलकर आईएएस, आईपीएस तक बन जाते हैं तो कोई अमीर घर में जन्म लेने पर भी उन्नति नहीं कर पाते।

धन में खेलने वाला धनहीन हो जाता है तो गरीबी में पला-बढ़ा धनवान बन जाता है। आइए जानें कौन से ग्रहों में जन्मा अशुभ फलदायी होता है।
  शुभ ग्रहों की युति या दृष्टि संबंध में जन्मा बालक अशुभ दौर से बचा रहता है व उसके अनुसार उन्नति करता है। हमने देखा है कोई गरीब परिवार में जन्म लेने पर वो आगे चलकर आईएएस, आईपीएस तक बन जाते हैं तो कोई अमीर घर में जन्म लेने पर भी उन्नति नहीं कर पाते।      


* जन्म लग्न कोई भी हो केतु राहु के मध्य ग्रह नहीं होना चाहिए। ऐसे जातक जीवन में काफी संघर्ष करने के बाद सफल होते हैं और सफलता भी मनमाफिक नहीं होती।
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* पंचम भाव में लग्नेश शनि मंगल के साथ नहीं होना चाहिए, नहीं तो विद्या के क्षेत्र में रुकावटें आती हैं व पूर्ण नहीं हो पाती है।
* द्वितीय भाव में नीच का शनि न हो, ना ही मंगल के इस पर भाव पर दृष्टि पड़ती हो। ऐसी स्थिति जिस बालक की होती है वह धन की बचत नहीं कर पाता। कुटुम्ब वालों का सहयोग नहीं मिलता। वाणी भी दोषपूर्ण होती है।
* लग्नेश भाग्येश का अष्टम में होना भी भाग्य में अवरोध पैदा करता है व लाख प्रयत्न करने पर भी अच्छी सफलता नहीं मिलती। भाग्येश नवम के द्वादश हो जाता है। वही लग्न अष्टम में चला जाता है। इसी कारण सफलता ‍नहीं मिलती।
* सप्तमेश मंगल कहीं भी शनि से मुक्त या दृष्टि संबंध बनाता हो तो उस जातक का दाम्पत्य जीवन नष्ट होता है या आपसी तालमेल नहीं बैठ पाता व अलग रहने की नौबत आ जाती है।
* एकादश भाव में मेष का मंगल दशमेश शनि जब राशि कुंभ के साथ हो तब भी लाख प्रयत्न करने पर भी आय में वृद्धि नहीं होती। आर्थिक लाभ के मामलों में बाधा बनी रहती है।
* शनि-मंगल की युति या दृष्टि संबंध दशम में नहीं होना चाहिए नहीं तो व्यापार में हो तो व्यापार नष्ट हो जाता है। नौकरी पर भी संकट बना रहता है। राजनीति में सफल नहीं हो पाता। पिता का धन बर्बाद हो जाता है।
* चतुर्थ भाव में भी शनि-मंगल का योग या दृष्टि संबंध हो तो पारिवारिक कलह बनी रहती है। माता का सुख नहीं मिलता। मकान भूमि से वंचित रहना पड़ सकता है व जन्म स्थान से दूर रहकर आजीविका ढूँढने जाना पड़ सकता है।
* षष्ट भाव में हो तो ज्यादा नुकसान नहीं होता क्योंकि यह शत्रु भाव है। अत: शत्रु नहीं होंगे, कर्ज भी नहीं होगा। लेकिन नाना, मामा का घर ठीक नहीं होने की आशंका बनी रहती है।
* आयु अष्टम भाव में हो तो कहीं न कहीं चोर अवश्य आते हैं। घुटनों में तकलीफ रहती है। कभी-कभी एक्सीडेंट भी हो सकता है।
* जन्म पत्रिका में सूर्य-चंद्र आदि अमावस्या योग लिए हों तो भी वह जातक काफी परेशान रहता है। जिस भाव में होगा, उस भाव से संबंधित कारक तत्वों को ‍हानि पहुँचाएगा।
* शनि-मंगल की युति या दृष्टि संबंध लग्न में तो नहीं होना चाहिए।

उपरोक्त योग जिसके भी हों तो वो निश्चित ही परेशान होगा। अत: ऐसे योगों से बचना ही बुद्धिमानी होगी। इसके उपाय कर इससे बचा जा सकता है।