शनि ग्रह है न कि यमराज

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'जय शनि महाराज' प्रत्येक शनिवाको हर गली-मोहल्ले में यह गूँज सुनाई देती है। शनिदेव को बच्चे, बूढ़क्या यहाँ तक स्त्रियाँ भी हाथ में लिए घूमती हैं। हर कोई शनि के खौफ से डरता है। इसी की वजह से शनि के नाम पर करोड़ों का व्यापार फल-फूल रहा है।

वर्तमान में प्रत्येक नहीं तो कुछ चैनलों पर शनि साधक, उपासक मिल जाएँगे। अपने आपको शनि का साधक बताने वालों की भी कमी नहीं है। आम जनता शनि के खौफ से डराकर अच्छी कमाई करने वालों की कमी नहीं है। शनि क्या है। ‍शनि कब किसे नुकसान पहुँचाते हैं व कब लाभ का कारण बनते हैं। आइए, हम अपने 22 वर्षों के शोध का नतीजा आपको बताते हैं। इसे जानकर आप भी अपने रिश्तेदारों, साथियों को बताएँ कि शनि ग्रह है। इससे डरने की कोई बात नहीं।

शनि आकाश मंडल में अन्य ग्रहों की तरह ही भ्रमण करता रहता है। यह कभी उदय होता है तो कभी अस्त। कभी वक्र गति से घूमता है तो कभी मार्गी भी रहता है। कभी-कभी वक्र गति के कारण जिस राशि पर शनि घूमता है पुन: छोड़ी हुई राशि में पहुँच जाता है। कभी-कभी उसी राशि पर वक्री घूमकर मार्गी हो जाता है।
  'जय शनि महाराज' प्रत्येक शनिवार को हर गली-मोहल्ले में यह गूँज सुनाई देती है। शनिदेव को बच्चे, बूढ़े क्या यहाँ तक स्त्रियाँ भी हाथ में लिए घूमती हैं। हर कोई शनि के खौफ से डरता है। इसी की वजह से शनि के नाम पर करोड़ों का व्यापार फल-फूल रहा है।      


शनि एक खूबसूरत ग्रह है न कि बदसूरत। हमारी धारणा में जड़ दिया गया है कि शनि कुबड़ा, कुरूप, दु:खदायी है। शनि को ग्रह ही माना जाए न कि यमराज। शनि मोक्ष का कारक भी है। शनि-चंद्र जब मिलकर नवम भाव धर्मभाव में होते हैं तो उस जातक को आध्यात्मवादी संत बना देते हैं। इनके उदाहरण जैसे कि अंबू राव महाराज की जन्म लग्न में शनि चंद्र मिथुन में होकर नवम भाव में है। सिखों के गुरु, गुरु नानक साहेब व स्वामी विवेकानंदजी ‍की जन्म लग्न में दशम भाव में शनि-चंद्र थे।

जगजाहिर है कि ये महान संत इस भारतभूमि में अवतरित हुए। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्हें शनि-चंद्र के दृष्टिसंबंध ने महान संतों की श्रेणी में ला खड़ा किया। संत नामदेवजी भी इनमें से एक हैं। संत जीराजी की कुंडली में भी शनि-चंद्र की उपस्थिति देखी जा सकती है। ‍

शनि कब अपना अशुभ फल देता है। इसके लिए जानें। शनि जब मंगल की राशि में हो या शनि-मंगल दृष्टि संबंध बनता है ‍तब नुकसानदायक होता है। मैंने कई विधवाओं की जो शीघ्र या 40 वर्ष पहले हुई, की कुंडली का अध्ययन किया तो पाया कि शनि का संबंध सप्तमेश व मंगल से रहा। सप्तम भाव दाम्पत्य का होता है, वहीं शनि-मंगल की स्थिति हो तो अपने जीवनसाथी को नष्ट कर देती है या फिर जीवन अलग-अलग बिताना पड़ता है। ‍शनि-मंगल जिस भाव से संबंध रखता है, उस भाव के कारकों को नुकसान पहुँचाता है।

शनि मकर का हो व मंगल नीच का हो तो शनि नुकसानदायक न होकर मंगल हानिकारक रहेगा। शनि जिस घर में है उसे हानि नहीं पहुँचाएगा बल्कि मंगल जहाँ है उस घर के कारक को नष्ट करेगा। शनि की कुदृष्टि ही खराब परिणाम देने वाली होती है ‍न कि स्वदृष्टि, मित्र दृष्‍टि, उच्च दृष्टि।

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शनि की साढ़े साती भी तब हानिकारक होती है जब शनि जन्म पत्रिका में शत्रु क्षेत्र में हो या शनि मंगल से युत्त हो या दृष्टि संबंध रखता हो या नीच राशि मेष में हो। शनि की 19 वर्ष की महादशा होती है। शनि मंगल की दशा अंतर दशा में ही कष्टप्रद रहता है। शनि का रत्न नीलम या लोहे का छल्ला हर किसी को शुभ नहीं रहता। अत: किसी योग्य सही जानकार से ही सलाह लेकर पहनें।

शनि के लिए वृषभ, तुला, कन्या, मिथुन, मकर, कुंभ, कर्क राशियों में रहे तो हानिकारक नहीं होता। यहाँ तक कि देव गुरु की राशि धनु, मीन में भी नुकसानप्रद नहीं होता। शनि मेष, वृश्चिक में कष्टकारी होता है। शनि-सूर्य साथ होने पर भी नुकसानप्रद नहीं होता। शनि-सूर्य आमने-सामने हों तो जरूर मतभेद का कारण बनता है।

वर्तमान में शनि सूर्य की राशि सिंह से गोचर भ्रमण कर रहा है। अत: सिंह राशि वालों के लिए थोड़ा कष्टप्रद, मानसिक चिंता का कारण बनता है। जिस भाव में सिंह राशि हो उस भाव से संबंधित कारक तत्वों को कुछ क्षति पहुँचाता है। जबकि इसकी तृतीय दृष्टि उच्च, सप्तम दृष्टि कुंभ पर स्वदृष्टि पड़ेगी वहीं दशम दृष्टि शुक्र की वृषभ राशि को देखेगा। अत: इन राशियों पर अपना अशुभ प्रभाव नहीं डालेगा।
  जैसे चुम्बक लोहे को खींचता है ठीक उसी प्रकार यह काम करता है, जिसके फलस्वरूप काली या आसमानी ओरा कम होती है। जो हमें कष्ट में कभी महसूस होती है। शनि एक प्रकार से मनो‍वैज्ञानिक असर भी डालता है। लग्न व नवांश में शनि-शुक्र हो तो नीलम धारण करें।      


शनि की अष्टम भाव पर दृष्टि आयुवर्धन होती है, हाँ शनि की नीच की दृष्टि अष्टम भाव पर पड़े तो स्वास्थ्य, घुटनों की तकलीफ, एक्सीडेंट आदि हो सकते हैं। फिर भी आय को क्षीण नहीं करता, यदि मंगल वहाँ हो तो फिर आयु को क्षति पहुँचाता है। शनि को मानने वाले, शनि महाराज को लेकर शनि उतारा लेने वाले व शनि मंदिर पर तेल, उड़द, काले कपड़े आदि चढ़ाने का आशय यह है कि अपने शरीर में एक ओरा चक्र चलते रहता है, जिसे सभी वैज्ञानिकों ने माना है।

जब आसमानी या काले रंग की ओरा अधिक हो तो इन वस्तुओं को लेकर उतारने से वह ओरा उसमें आ जाती है। जैसे चुम्बक लोहे को खींचता है ठीक उसी प्रकार यह काम करता है, जिसके फलस्वरूप काली या आसमानी ओरा कम होती है। जो हमें कष्ट में कभी महसूस होती है। शनि एक प्रकार से मनो‍वैज्ञानिक असर भी डालता है। लग्न व नवांश में शनि-शुक्र हो तो नीलम धारण करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।